देश के हर कोने में दिवाली की रौनक दिख रही है. हर साल के तरह इस साल भी दिवाली के मौके पर पूरा देश रौशनी से नहाया नजर आएगा. दीवाली को लेकर देश के हर हिस्से में तैयारियां चल रही है. इस खास मौके को देखते हुए दिवाली के दो दिन पहले धनतेरस के मौके पर हजर निज़ामुद्दीन औलिया दरगाह (Hazrat Nizamuddin Auliya Dargah) को लाइटों और दीयों से अच्छी तरह से सजाया गया. इस दरगाह पर हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग आते हैं और दुआ करते हैं.


समाज के लिए मिसाल है निज़ामुद्दीन औलिया दरगाह


महान सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया सर्व धर्म के सौहार्द का प्रतीक माना जाता था. आज जब देश में आए दिन धर्म के नाम पर जंग होती है. ऐसे में निजामुद्दीन औलिया दरगाह पर दिवाली के पहले हुई यह सजावट समाज के लिए मिसाल का काम करेगी. दरगाह पर जलाए गए दिए से समाज में फैले नफरत के बीज को जलाकर खत्म करना इस दीवाली का खास संदेश है.


कौन थे हजरत निजामुद्दीन


हजरत निजामुद्दीन चिश्ती घराने के चौथे संत थे. ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया का जन्म 1238 में उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में हुआ था. निजामुद्दी औलिया के पांच वर्ष के उम्र में अहमद बदायनी की मृत्यु हो गई थीय उसके बाद से वह बीबी जुलेखा के साथ दिल्ली आ गए थे. उन्होंने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की थी. अपने इस व्यवहार के कारण निजमुद्दीन सभी धर्मों के लोगों के बीच लोकप्रिय हो गए. हजरत निजामुद्दीन का देहांत 92 वर्ष के उम्र में  हो गया. उनके देहांत के बाद ही उनके मकबरे का काम प्रारंभ हो गया था. पर यह पूरी तरह से 1562 में जाकर बना. निजामुद्दी औलिया की जीवनी के बारे में आइन-ए-अकबरी में लिखा गया है. जो मुगल सम्राट अकबर के एक नवरत्न मंत्री ने लिखा था.


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