लोकसभा में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया. इसके बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा कि विपक्ष को अपने अविश्वास प्रस्ताव पर भरोसा नहीं था. उनके बयान अविश्वसनीय थे और देश ने उन पर विश्वास नहीं किया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश के साथ विश्वासघात करके ये लोग बैठे हैं. एक-एक करके वो फसलफा सामने आया. इसके कारण एक हाउस जिसके अंदर 272 की मेजॉरिटी है और 303 सांसद एक ही पार्टी के हैं और वे उस पार्टी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं. इनको तो रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए ताकि हनुमान जी इनको बल, बुद्धि और ज्ञान दें.


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने नौ सालों के अपने अब तक के कार्यकाल में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया. यह अविश्वास प्रस्ताव भी विफल रहा जिसका पहले से अनुमान था. इस प्रस्ताव को लोकसभा ने ध्वनिमत से खारिज किया. इस पर मतदान नहीं हुआ क्योंकि विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी के जवाब देने के समय ही सदन से बहिर्गमन कर गया था.  इससे पहले, जुलाई, 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था. इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट दिया था. इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय था क्योंकि संख्या बल स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में है और निचले सदन में विपक्षी दलों के 150 से कम सदस्य हैं. लेकिन उनकी दलील थी कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए धारणा से जुड़ी लड़ाई में सरकार को मात देने में सफल रहेंगे.


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 अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए जरूरी है कि उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की तिथि तय करने के संदर्भ में 10 दिनों के भीतर फैसला करना होता है.  सदन की मंजूरी के बाद इस पर चर्चा और मतदान होता है. अगर सत्ता पक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हार जाता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है