Harayana News: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने बाल विवाह (child marriage) को पूरी तरह अमान्य करने वाले हरियाणा के कानून को अपनी मंजूरी दे दी है. साथ ही इस तरह 15 से 18 साल के लड़के और लड़की के बीच वैवाहिक संबंध पूर्ण रूप से अवैध माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद बाल विवाह प्रतिषेध (हरियाणा संशोधन) विधेयक 2020 लाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया था कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012 एक विशेष कानून होने के नाते भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 और 15 से 18 वर्ष की आयु की नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध पर लागू होता है. इसमें कहा गया था कि आईपीसी की धारा 375 का प्रचलित अपवाद-2 मनमाना और संविधान का उल्लंघन है. इसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 के मौजूदा अपवाद-2 को अमान्य कर दिया. इसके तहत 15 से 18 वर्ष की आयु के पुरुष और उसकी पत्नी के बीच यौन संबंध धारा 375 के तहत परिभाषित बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. लेकिन पॉक्सो अधिनियम की धारा-6 के प्रावधान के तहत यह बलात्कार की परिभाषा के अंतर्गत आता है.
बाल विवाह मामले में कर्नाटक से सीखें
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी राज्य विधायीकाओं के लिए यह बुद्धिमानी होगी कि वे बाल विवाह को शून्य (पूर्ण निषेध) बनाने के लिए कर्नाटक के मार्ग को अपनाएं. साथ ही यह सुनिश्चित करें कि किसी नाबालिग लड़की और उसके पति के बीच यौन संबंध पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी के तहत एक दंडनीय अपराध हो. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा इसके तहत बाल विवाह प्रतिषेध (हरियाणा संशोधन) विधेयक 2020 लाया गया था और कानून को अब राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हो गई है. इसके बाद राज्य में बाल विवाह अब पूरी तरह निषेध होगा और नाबालिगों की शादी को उनके बालिग होने पर भी अदालत से मान्यता नहीं मिलेगी.
तमिलनाडु संशोधन विधेयक को मंजूरी
राष्ट्रपति ने जाली दस्तावेजों और प्रतिरूपण के पंजीकरण को रोकने तथा जाली दस्तावेजों के आधार पर किए गए पंजीकरण को रद्द करने के लिए पंजीकरण अधिनियम 1908 में और संशोधन करने के लिए पंजीकरण (तमिलनाडु संशोधन) विधेयक 2021 को भी अपनी मंजूरी दे दी है. वहीं विधेयक के अधिनियमन के बाद रजिस्ट्रार कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछ सकता है कि पंजीकरण रद्द क्यों नहीं किया जाना चाहिए उत्तर पर विचार करने के बाद पंजीकरण रद्द कर सकता है. इसमें एक और प्रावधान है जो रजिस्ट्रार के आदेश से असंतुष्ट किसी भी व्यक्ति को 30 दिन के भीतर महानिरीक्षक के पास अपील दायर करने की अनुमति देता है.