Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने 12 अक्टूबर को ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली आप सांसद राघव चड्ढा (Raghav Chadha) की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. राघव चड्ढा ने सरकारी बंगला खाली (Raghav Chadha Bunglow Row) करने को लेकर ट्रायल कोर्ट के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि राघव चड्ढा को पंडारा रोड पर सरकारी टाइप-7 बंगले में रहने का वैध अधिकार नहीं है. यह बंगला लुटियंस के अंतर्गत आता है और इसका आवंटन रद्द हो चुका है. इसलिए बंगले में रहने का अधिकार उनके पास नहीं है. 


ट्रायल कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आप सांसद राघव चड्ढा ने तीन दिन पहले दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. ​अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया था कि राज्यसभा सचिवालय की कार्रवाई सलेक्टिव है. पहली बार चुने गए ऐसे सांसद हैं, जिनके पास उनकी पात्रता से ऊपर समान आवास है, लेकिन उन्हें निशाना नहीं बनाया गया. दरअसल, बीते सप्ताह पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश सुधांशु कौशिक ने अपने अंतरिम आदेश रद्द कर दिया था, जिसमें राज्यसभा सचिवालय को उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना उन्हें बंगले से बेदखल करने से परहेज करने का निर्देश दिया गया था. टाइप-7 बंगला उन सांसदों को आवंटित किए गए हैं जिन्होंने मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्यपाल के रूप में कार्य किया है. 


ट्रायल कोर्ट का आदेश निष्पक्ष नहीं


गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट के जज अनूप जयराम भंभानी ने चड्ढा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और राज्यसभा सचिवालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रम बनर्जी को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. सिंघवी ने अदालत को बताया कि उन्हें शुक्रवार को सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत शुरू की गई कार्यवाही में संपदा अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है. वह इस आदेश को रद्द करने की अदालत से अपील करते हैं. सिंघवी ने ये भी कहा कि सरकारी आवास रद्द करने का चड्ढा के राज्यसभा से निलंबन से कोई सीधा संबंध नहीं है, जो महीनों बाद हुआ. उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट का आदेश "कानूनी द्वेष" से प्रेरित है. सिंघवी ने तर्क दिया कि पिछले साल सितंबर में उपराष्ट्रपति द्वारा सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद चड्ढा को बंगला आवंटित किया गया था और चड्ढा ने आवंटन स्वीकार कर लिया था.


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