Ramlila Maidan Protest: देश के कोने-कोने से आज लाखों लोगों की भीड़ राजधानी दिल्ली के रामलीला ग्राउंड (Ramlila Ground) पहुंची. यहां पहुंचे लोग किसी राजनैतिक रैली या पार्टी के समर्थन के लिए नहीं आये थे, बल्कि ये देश के आम नागरिक हैं, जो मध्यम और निम्न माध्यम वर्गीय परिवारों से आते हैं. भले की देश के अलग-अलग राज्यों से आए हैं लेकिन इन सबकी एक ही समस्या है. ये सभी अलग-अलग संस्थाओं से लिए कर्ज (Debt) के बोझ से दबे हुए हैं और लाख कोशिशों के बाद उससे उबर नहीं पाए. और अब सरकार से कर्ज माफी (Loan Waiver) की आस लगाए बैठे हैं, जिससे उन्हें उस कर्ज के दलदल से छुटकारा मिल सके.
इन लोगों ने कर्ज न अदायगी करने की नीयत से कर्ज नहीं लिया था, लेकिन नोटबंदी, लॉकडाउन और लंबे कोरोना काल ने उनकी सारी योजनाओं पर पानी फेर कर उन्हें हर तरह से नाकाम कर दिया. किसी का व्यापार चौपट हो गया तो किसी की नौकरी चली गई और कई तो लोग भी नहीं रहे. लेकिन उनका कर्ज बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ गया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली.
ये मौत का सिलसिला शायद उतने पर ही नहीं रुकता अगर शाहनवाज चौधरी जैसे शख्स इनकी आवाज बन कर नहीं खड़े होते और अगर उन्हें इसके लिए संगठित नहीं करते. रामलीला ग्राउंड में कोई अंडमान-निकोबार से आया है तो कोई मध्य प्रदेश से तो कोई कहीं से. सब की एक ही मांग है कि सरकार उनके कर्जे को माफ कर दे और कर्ज माफी नहीं हो सकती हैं तो अदायगी के लिए पर्याप्त समय दे दे. जिससे रिकवरी के डर के साए में जिंदगी जीने को मजबूर न रहें.
पूंजीपतियों का कर्ज माफ तो हमारा क्यों नहीं- शाहनवाज
शाहनवाज चौधरी ने एबीपी लाइव से बातचीत में बताया कि देश में कई लाख लोग कर्ज के बोझ के नीचे दबे हुए हैं, जिनमें से लगभग 7 लाख लोग उनकी इस "कर्ज मुक्ति अभियान" से जुड़ चुके हैं और हर दिन लोग जुड़ते ही जा रहे हैं. उनका कहना है कि जब सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों के कर्जों को माफ कर सकती है तो उन आम लोगों का क्यों नहीं जो समय के मारे हैं और इनकी कुल कर्जे की रकम भी बड़े-बड़े उद्योगपतियों के कर्जों के सामने मामूली रकम जैसी है. उन्होंने बताया कि महज लाख-दो लाख के कर्ज के बोझ से दबे सैकड़ों लोगों ने कर्जे से परेशान हो कर अपनी जान ले ली. कर्ज के बोझ तले दब कर अपनी जान लेने वालों में एक बड़ा नाम बॉलीवुड से भी जुड़ा हुआ है.
नितिन देसाई ने हाल ही में की थी खुदकुशी
बॉलीवुड के मशहूर आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई पर 180 करोड़ रुपये का कर्ज था, जिसे उन्होंने 2016 और 2018 में लिया था, लेकिन नोटबंदी और लॉकडाउन की मार ने उन्हें कर्ज के दलदल में धकेल दिया और जब लाख कोशिशों के बाद भी वो उससे निकल नहीं पाए तो बीते बुधवार को उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म कर डाली. ऐसे ही न जाने कितने लोग होंगे जो कर्ज से परेशान हो कर जीने से बेहतर मौत को गले लगाना समझ कर गलत कदम उठा लेते हैं.
जो पार्टी करेगी मदद, करेंगे उसका समर्थन
शहनवाज ने बताया लोगों की फरियाद को 7 बार प्रधानमंत्री कार्यालय और 7 बार वित्त मंत्रालय को भेजा गया है लेकिन अब तक इसे लेकर सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं किया गया है. लेकिन अब जब तक सरकार उनकी सुध नहीं लेती है तब तक उनका यह अभियान जारी रहेगा. उन्होंने यह भी कहा कि जो भी पार्टी इन लोगों की मदद करने का आश्वासन देती है वे लोग उनका समर्थन करेंगे.
नोटबंदी-लॉकडाउन ने किया सबकुछ चौपट
यहां कोई किसान है, तो कोई रेहड़ी और दुकान लगाता है तो कोई छोटा-मोटा व्यापारी है. सभी ने बुरे वक्त में कर्ज लेकर अपनी स्थिति को संभालने की कोशिश की लेकिन आज ये कर्ज ही उनके लिए बुरा समय लेकर आ गया है, जिस कारण उन्हें दर-दर भटकना पड़ रहा है. रामलीला मैदान पहुंचे एक पीड़ित ने बताया कि उसका होलसेल बिजनेस था, उसने फैक्ट्री खोलने के लिए बैंक से कर्ज लिया था लेकिन लॉकडाउन होने के कारण उसका सारा बिजनेस चौपट हो गया. आज हालात ये हो गई है कि दिल्ली आने के लिए भी उसे कर्ज लेना पड़ा.
वहीं एक ने बताया कि कोरोना के पहले उसने 4.5 लाख रुपये बैंक से कर्ज लिया था, जिसमें से लॉकडाउन से पहले लगभग चार लाख रुपये उसने बैंक को किस्तों में भुगतान भी कर दिया था, लेकिन बाद में उसे कोरोना हो गया ओर वह बाकी रकम की अदायगी नहीं कर पाया जिसे बैंक ने आज ब्याज पर ब्याज लगा कर साढ़े आठ लाख से ऊपर बना दिया है और आज उसका घर तक नीलाम होने की नौबत आ गई है.
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