Delhi Pollution: प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त, कहा- राज्यों ने निर्देशों का पालन नहीं किया तो बनाएंगे टास्क फोर्स
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर नियंत्रण को लेकर सिर्फ बातें की जा रही हैं.
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है. वहीं सोमवार को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर नियंत्रण को लेकर सिर्फ बातें की जा रही हैं और इसे नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि केंद्र की तरफ से गठित आयोग सिर्फ कोर्ट के निर्देशों को राज्यों को भेज दे रहा है, लेकिन राज्य उसका पालन नहीं कर रहे हैं. चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह सारी प्रक्रिया बेअसर साबित हो रही है. ऐसे में कोर्ट को अपनी तरफ से एक टास्क फोर्स का गठन करना पड़ सकता है जो सभी निर्देशों का पालन सुनिश्चित करे.
केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा
बता दें कि पिछले हफ्ते हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि वह प्रदूषण का स्तर बढ़ने के बाद ही कदम उठाती है. इसके जवाब में केंद्र सरकार ने एक लंबा चौड़ा हलफनामा दाखिल किया. इस हलफनामे में दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण नियंत्रण आयोग की तरफ से पिछले 1 साल में राज्यों को भेजे गए दिशानिर्देशों की जानकारी दी गई थी. केंद्र की और से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "यह सभी निर्देश राज्यों के अधिकारियों से चर्चा करने के बाद ही तैयार किए गए. इन्हें अक्टूबर-नवंबर में होने वाले प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था और कई महीनों पहले ही भेज दिया गया था. लेकिन कुछ निर्देशों का बिल्कुल ही पालन नहीं हुआ और कुछ को आधा-अधूरा लागू किया गया."
स्वतंत्र टास्क फोर्स का गठन करना पड़ेगा
इस जवाब से असंतुष्ट चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की बेंच ने कहा, "हम नहीं समझ पा रहे कि आयोग आखिर क्या करता है? वह कोर्ट की तरफ से दिए गए निर्देशों को राज्यों को ट्रांसफर कर देता है. इसके बाद उनका पालन हुआ या नहीं, इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. अगर स्थिति यही रही तो हमें एक स्वतंत्र टास्क फोर्स का गठन करना पड़ेगा जो यह सुनिश्चित करे कि सभी राज्य निर्देशों का पालन करें."
राज्य स्थिति के प्रति गंभीर लेकिन रह जाती हैं कमियां
सॉलिसीटर जनरल ने इसके जवाब में कहा, "हम यह नहीं कह रहे हैं कि राज्य गंभीर नहीं हैं. पर उनकी तरफ से कमियां रह जा रही हैं. इसमें दिल्ली, यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे सभी राज्य शामिल हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से निर्देशों के पालन को लेकर मांगा जवाब
दिल्ली सरकार के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने राज्य सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की जानकारी देने की कोशिश की. लेकिन जजों ने उन्हें रोकते हुए कहा, "हम चाहते हैं कि सभी राज्य यह बताएं कि उन्होंने आयोग के निर्देशों का कितना पालन किया है. सभी राज्य केंद्र की तरफ से दाखिल हलफनामे को देखें और एक-एक बिंदु पर जवाब दें. हम गुरुवार 2 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई करेंगे. राज्यों के जवाब को देखने के बाद यह तय किया जाएगा कि आगे किस तरह का आदेश दिए जाने की जरूरत है."
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम जारी रखने पर उठे सवाल
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता आदित्य दुबे के लिए पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम जारी रखे जाने पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, "पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने आवश्यक निर्माण को छोड़कर सभी तरह के निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगा दिया था. छोटे निर्माण प्रदूषण को अधिक नहीं बढ़ाते. केंद्र सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर सेंट्रल विस्टा का निर्माण क्यों जारी रखे हुए हैं? मैं वीडियो दिखा सकता हूं कि वहां कितनी धूल उड़ रही है. हम नहीं समझते यह कोई ऐसा बेहद जरूरी निर्माण कार्य है, जिसे रोका नहीं जा सकता है."
2 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई
वरिष्ठ वकील विकास सिंह की बातों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि वह सॉलिसिटर जनरल से इस पहलू पर भी जवाब मांग रहे हैं. गुरुवार को होने वाली सुनवाई में इस पर भी चर्चा की जाएगी. कोर्ट ने आज सभी राज्यों से यह भी कहा कि वह निर्माण कार्य रोके जाने के चलते प्रभावित हुए मजदूरों को मुआवजा देने को लेकर उठाए गए कदमों की जानकारी भी उसके सामने रखें.
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