नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने गुजरात काडर के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी राकेश अस्थाना की शहर के पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा, ''रिट याचिका और लंबित अर्जियां खारिज की जाती हैं.''
अस्थाना 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी है. वह सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक के तौर पर सेवाएं दे रहे थे. लेकिन 31 जुलाई को सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले ही 27 जुलाई को राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था. उनका राष्ट्रीय राजधानी के पुलिस प्रमुख के तौर पर कार्यकाल एक साल का होगा.
याचिकाकर्ता एवं वकील सद्रे आलम ने अस्थाना को अंतर-काडर प्रतिनियुक्ति और सेवा विस्तार देते हुए दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त करने का गृह मंत्रालय का 27 जुलाई का आदेश रद्द करने का अनुरोध किया था.
याचिका में कहा गया था, ''(गृह मंत्रालय का) संबंधित आदेश प्रकाश सिंह मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है, क्योंकि प्रतिवादी संख्या दो (अस्थाना) के पास छह महीने का न्यूनतम कार्यकाल शेष नहीं था; दिल्ली पुलिस आयुक्त की नियुक्ति के लिए यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) की कोई समिति नहीं बनायी गई थी और दो साल के न्यूनतम कार्यकाल के मानदंड को नजरअंदाज किया गया.''
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में कानून-व्यवस्था से जुड़ी विविध चुनौतियों के मद्देनजर अस्थाना की नियुक्ति और उनके सेवा कार्यकाल में विस्तार का निर्णय जनहित में लिया गया है. केंद्र ने अपने हलफनामे में यह भी कहा था कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में अस्थाना की नियुक्ति में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई है और उनकी नियुक्ति सभी नियम-कायदों को ध्यान में रखकर की गई है.
अस्थाना की नियुक्ति का बचाव करते हुए केंद्र ने यह भी कहा था कि उसे दिल्ली के पुलिस प्रमुख के रूप में किसी ऐसे अधिकारी की नियुक्ति करने की आवश्यकता महसूस हुई जिसके पास किसी बड़े राज्य में किसी बड़े पुलिस बल का नेतृत्व करने एवं राजनीतिक एवं लोक व्यवस्था से जुड़ी समस्या से निपटने तथा किसी केंद्रीय जांच एजेंसी और अर्धसैनिक बलों में काम करने का विविध एवं व्यापक अनुभव हो.
केंद्र ने कहा था कि अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका और गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) की हस्तक्षेप की अर्जी जुर्माने के साथ खारिज की जानी चाहिए. इस गैर सरकारी संगठन ने अदालत में दावा किया था कि जनहित याचिका दुर्भावना से दायर की गई है और यह सुप्रीम कोर्ट में लंबित उसकी याचिका का ''पूरी तरह कॉपी-पेस्ट'' है.
अस्थाना ने अपने शपथपत्र में अदालत ने कहा था कि सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है और दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति को चुनौती कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है तथा इसके पीछे बदले की भावना है.
अस्थाना ने कहा था कि जब से उन्हें सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) का विशेष निदेशक नियुक्त किया गया है, तब से कुछ संगठन उन्हें निशाना बनाकर उनके खिलाफ याचिका दायर कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने गत 25 अगस्त को हाई कोर्ट से अनुरोध किया था कि वह अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति के खिलाफ लंबित याचिका पर दो सप्ताह के भीतर फैसला करे.