Delhi News: साल 1993 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा गठित हुई और बीजेपी की सरकार बनी. पांच साल में बीजेपी ने तीन सीएम बनाए. पहले मदन लाल खुराना सीएम बने, फिर साहिब सिंह वर्मा और उसके बाद सुषमा स्वराज सीएम बनीं. बीजेपी के लिए ये पांच साल सरकार के कामकाज के लिहाज से अच्छा नहीं रहा. प्याज की महंगाई ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी. उसके बाद पिछले 25 सालों में बीजेपी दिल्ली में अपनी सरकार नहीं बना पाई. पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव 1998 में कांग्रेस की जीत हुई. सोनिया गांधी की पहली पसंद से शीला दीक्षित दिल्ली (Shila Dixit) की मुख्यमंत्री बनीं. उसके बाद वह लगातार 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री पद पर बनी रहीं. इस दौरान शीला दीक्षित को दिल्ली की सूरत बदलने का श्रेय जाता है. आज भी बहुत कम लोग जानते हैं शीला दीक्षित को आधुनिक दिल्ली का शिल्पी क्यों कहा जाता है? 


यही वजह है कि वर्तमान में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच आठ सालों से जारी गतिरोध पर कांग्रेस नेता अजय माकन ने सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को गुड गवर्नेंस को लेकर कुछ दिनों पहले नसीहत देने काम किया. अजय माकन ने कहा था कि सरकार चलाने का तरीका अरविंद केजरीवाल शीला दीक्षित मॉडल से सीखें. कैसे उन्होंने केंद्र में बीजेपी की सरकार और कांग्रेस सरकार के दौरान तालमेल स्थापित कर दिल्ली को आधुनिक सिटी में तब्दील कर दिया. उन्होंने न केवल सरकार और विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल स्थपित किया बल्कि लोगों बीच पहुंचकर ये जानने की कोशिश की कि उन्हें किन सुविधाओं की जरूरत सबसे ज्यादा है. अजय माकन ने कहा कि आप सरकार के कामकाज के तौर तरीकों को देखकर लगता है कि उन्हें शीला दीक्षित मॉडल पर चलने की सबसे ज्यादा जरूरत है. 


जन भागीदारी को बनाया विकास का जरिया 


कांग्रेस पार्टी ने शीला दीक्षित को 1998 में उस वक्त दिल्ली प्रदेश की कमान दी थी, जब देश की राजधानी की राजनीति में मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और विजय कुमार मल्होत्रा, प्रोफेसर जगदीश मुखी, जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार जैसे दिग्गज नेताओं का दबदबा था. इसके बावजूद उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस को जीत दिलाई बल्कि लगातार जीत हासिल करते हुए 15 सालों तक मुख्यमंत्री रहकर दिल्ली की तस्वीर को पूरी तरह से बदल वाला काम किया. शीला दीक्षित की जन भागीदारी योजना काफी लोकप्रिय हुई. इसके जरिए डीडीए द्वारा विकसित कॉलोनियों, अनाधिकृत कॉलोनियों, दिल्ली के गांवों और टाउनशिप्स के सभी आरडब्लूए से उन्होंने सीधा संपर्क स्थापित किया. सीएम कार्यालय तक आरडब्लूए वालों की डायरेक्ट पहुंच सुनिश्चित की. दिल्ली के स्कूलों के प्रिंसिपलों और शिक्षकों से सीधा संवाद का सिलसिला उन्हीं के दौर में शुरू हुई थी. इसके अलावा, दिल्ली को लोगों को बिजली के खंभों पर जंफर यानी कुंडी डालकर ​बिजली पर आश्रित रहने की निर्भरता से मुक्ति दिलाकर हर घर को मीटर कनेक्शन देने का काम उन्होंने ही किया. दिल्ली में क्रांतिकारी मल्टीरोल परिवहन व्यवस्था को बढ़ावा देकर उन्होंने सभी वर्गों के बीच अपनी पहुंच सुनिश्चित ​की थी. इतना ही नहीं, पूर्वांचली मतदाताओं पर शीला दीक्षित का एक क्षत्र राज कायम किया जिस पर बीजेपी वालों की पकड़ मजबूत हुआ करती थी. 


क्या है शीला दीक्षित मॉडल?


अब हमारे बीच शीला दीक्षित नहीं रहीं, लेकिन उनके काम करने के तरीके आज भी चर्चा के केंद्र में हैं. दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच जारी घमासान के बीच शीला दीक्षित मॉडल की चर्चा राजधानी में चरम पर है. दरअसल, दिल्ली की पूर्व सीएम रहीं शीला दीक्षित के कामकाज का तरीका बिल्कुल सरल और सहज था. वह एक ऐसी महिला थी जो हर काम करने से पहले यह सोचती थी की इससे लोगों का भला होगा या नहीं. आसान शब्दों में आप उनकी कार्यशैली को ऐसे समझें कि एक दिल्ली शीला दीक्षित से पहले थी और एक दिल्ली वो जिसे शीला दीक्षित ने बनाई. उन्होंने दिल्ली को सजाया-संवारा. दिल्ली के कस्बाई चरित्र से बाहर निकाल कर इसे एक आधुनिक शहर बनाने के लिए उन्होंने इन 15 सालों के दौरान बहुत काम किया. दिल्ली को एक आधुनिक शहर बनाने के लिए उन्होंने करीब एक लाख करोड़ रूपये खर्च किए. कॉमनवेल्थ गेम्स का सफल आयोजन उन्हें के नेतृत्व में संपन्न हो सका. 


जब शीला दीक्षित सीएम बनीं तो दिल्ली की 1700 अनधिकृत कॉलोनियों में किसी भी विकास कार्यों और जन सुविधाओं पर सरकारी पैसे खर्च पर बैन था, लेकिन वो शीला दीक्षित ही थीं जिन्होंने दिल्ली की अनाधिकृत कॉलोनियों में खड़ंजों, नालियों, सड़कों, बिजली, सीवर और पानी पहुंचाने जैसा काम किया. घाटे में चलने वाली बिजली बोर्ड का निजीकरण कर उन्होंने हर घर को बिजली कनेक्शन मुहैया कराने का काम किया. दिल्ली परिवहन निगम को डीलज के बदले सीएनजी में तब्दील करने जैसा फैसला लिया. दिल्ली में मेट्रो, डीटीसी और फीडर बसों की योजना पर अमल उन्हीं की देन है. 


शीला तालमेल का नायाब उदाहरण


आज जब हम देखते हैं कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार का केंद्र सरकार के साथ हमेशा मनमुटाव रहता है तो वास्तव में ऐसा लगता है कि शीला दीक्षित से वर्तमान सरकार को सीख लेने की जरूरत है. उन्होंने वर्तमान सरकार के समान अधिकारों के अंतर्गत ही मुख्यमंत्री के रूप में शानदार काम कर दिखाया. तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के साथ भी कभी उनका मनमुटाव इस स्तर तक नहीं पहुंचा कि धरना प्रदर्शन की नौबत आ जाए. शीला दीक्षित के लिए तो कहा भी जाता था कि वह राजनेता के रूप में नहीं बल्कि एक सीईओ के रूप में दिल्ली को संवारने का काम करती हैं. शीला दीक्षित एक भद्र राजनीतिज्ञ थीं और इतिहास उन्हें एक अच्छा प्रदर्शन करने वाले ऐसे राजनीतिज्ञ के रूप में याद रखेगा जो हमेशा विरोधियों के साथ भी शालीन व्यवहार रखती थीं.


इन बातों के लिए जानी जाती हैं शीला दीक्षित 


1. दिल्ली मेट्रो 2. दिल्ली में सड़कों और फ्लाईओवर का जाल 3. दिल्ली सड़क परिवहन 4. सीएनजी 5. सफल कॉमनवेल्थ गेम 6. हरी भरी दिल्ली 7. जन भागीदारी 8. स्कूलों की हालत में सुधार 9. केंद्र सरकार और विपक्षी दलों के नेताओं से तालमेल 10. जन आधारित सियासी सरोकार 11. मेट्रो-डीटीसी-फीडर बसों का संजाल 


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