Saurabh Bharadwaj Targetted LG Vinai Saxena: दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने दिल्ली संवाद एवं विकास आयोग (Delhi Dialogue and Development Commission) को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया है. एलजी कार्यालय के एक अधिकारी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि डीडीसीडी (DDCD) उपाध्यक्ष और सदस्यों के रूप में संबंधित कार्यक्षेत्र में अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों का चयन करने के लिए व्यवस्था विकसित किए जाने तक आयोग अस्थायी रूप से भंग रहेगा. इसके अलावा, उन्होंने आयोग में कार्यरत गैर-आधिकारिक सदस्यों की सेवा समाप्त करने को मंजूरी भी दे दी है. 


उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों में आयोग और बोर्ड में हमेशा इसी तरह नियुक्ति होती है. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अभी नियुक्त किए गये हैं जोकि भाजपा के नेता हैं.’’


सौरभ भारद्वाज ने क्या कहा?


दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, ‘‘एलजी साहब के द्वारा डीडीसीडी को भंग किया जाना ओछी राजनीति है. एलजी साहब बताएं कि उनकी अपनी नियुक्ति के लिए केंद्र ने कहां इश्तिहार निकाला था. एलजी साहब का टेस्ट और साक्षात्कार किसने लिया जो उन्हें नियुक्त किया गया.’’


एलजी के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने कहा कि वह उपराज्यपाल के ‘‘अवैध’’ फैसले को अदालत में चुनौती देगी. जबकि कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज ने सक्सेना पर ‘‘ओछी राजनीति’’ करने का आरोप लगाया.


एलजी के आदेश में क्या है?


दिल्ली के मुख्य सचिव को भेजी गई फाइल पर की गई टिप्पणी में उपराज्यपाल ने कहा, 'मौजूदा सरकार द्वारा डीडीसीडी बनाने की पूरी कवायद केवल वित्तीय लाभ पहुंचाने और कुछ खास राजनीतिक व्यक्तियों को संरक्षण देने का प्रयास है.'


एलजी के आदेश में ये भी कहा गया है, ‘‘स्पष्ट रूप से आयोग का गठन योजना आयोग और नीति आयोग की तर्ज पर नीति निर्माण की विचारक संस्था के रूप में किया गया था, जिसके संचालन की जिम्मेदारी प्रावधान के तहत संबंधित कार्यक्षेत्र में अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों की होनी चाहिए. ताकि सरकार को जरूरी जानकारी मिल सके.’’


इसका उद्देश्य अपने चहेते लोगों, अनिर्वाचित मित्रों या राजनीतिक रूप से पक्षपाती लोगों को समायोजित करना नहीं था. उपराज्यपाल ने कहा कि उपाध्यक्ष और गैर-सरकारी सदस्यों के पद वर्तमान सरकार के कार्यकाल के साथ ही रहेंगे.


उन्होंने कहा, ‘‘प्रारंभ में ये पद मानद थे, लेकिन बाद में इन्हें उच्च वेतन और सुविधायुक्त पदों में परिवर्तित कर दिया गया. जैसे कि डीडीसीडी के उपाध्यक्ष को दिल्ली सरकार के मंत्री के समान दर्जा, वेतन और सुविधाएं दी गईं तथा गैर-सरकारी सदस्यों को भारत सरकार के सचिव के समान दर्जा, वेतन और सुविधाएं दी गईं.’’ सक्सेना ने कहा कि दिल्ली सरकार के योजना विभाग के अनुसार डीडीसीडी के सदस्यों के बीच कार्य का कोई बंटवारा नहीं है.


एक बयान में आप सरकार ने कहा कि डीडीसीडी को भंग करने और इसके तीन गैर-आधिकारिक सदस्यों की सेवा समाप्त करने का उपराज्यपाल का फैसला ‘‘अवैध’’, ‘‘असंवैधानिक’’ और ‘‘उनके कार्यालय के अधिकार क्षेत्र का खुला उल्लंघन’’ है. उन्होंने अपने बयान में कहा है कि डीडीसीडी मुख्यमंत्री के अधीन आता है और केवल उनके पास ही इसके सदस्यों पर कार्रवाई करने का अधिकार है. बयान में आरोप लगाया गया है कि डीडीसीडी को भंग करने का उपराज्यपाल का एकमात्र उद्देश्य ‘‘दिल्ली सरकार के सभी कामों को रोकना है.’’


डीडीसीडी का गठन 29 अप्रैल, 2016 के राजपत्रित अधिसूचना के जरिए किया गया था, जिसे दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल ने मंजूरी दी थी. अधिसूचना की धारा तीन और आठ को पढ़ें तो पता चलता है कि डीडीसीडी के गैर-आधिकारिक सदस्यों की नियुक्ति पूरी तरह से मुख्यमंत्री के फैसले से होती है और केवल उनके पास ही किसी भी सदस्य को उनके कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाने का अधिकार है.’’


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