Parali impact on Delhi: हर साल सर्दी के मौसम की शुरुआत के समय और दीपावली के आसपास जैसे ही धान कटने शुरू होते हैं, दिल्ली में लोगों के एक चिंता सताने लगती है. दरअसल, यही वो समय है जब दिल्ली से सटे आसपास वाले राज्यों जैसे- पंजाब, हरियाणा और यूपी में पराली जलाया जाता है. इसके जलने से यहां रहने वालों लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है. यह नुकसान वायु प्रदूषण की आर्थिक के साथ बीमारियों पर खर्च के तौर पर होता है.


पंजाब, हरियाणा और यूपी में पराली जलने से होने वाले प्रदूषण हवाओं के साथ दिल्ली-एनसीआर में पहुंच जाता है, जिससे यहां की वायु गुणवत्ता पर असर पड़ता है. साथ ही ऐसे जिलों के लोगों में एआरआई का खतरा तीन गुणा तक बढ़ जाता है जहां बहुत बड़े पैमाने पर पराली जलायी जाती है. इससे मौतें तो होती ही है, मिट्टी की उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही, इससे पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैस की वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है. यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुलना में शहरी क्षेत्रों के बच्चों (5 वर्ष से कम) और बुजुर्गों (59 वर्ष से अधिक) में फसलों के अवशेष के जलने की वजह से होने वाले तीव्र श्वसन संक्रमण (एआरआई) का खतरा अधिक होता है.


पराली के जलने से मीथेन और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसे गैसों का उत्सर्जन होना है. जहरीले धुएं की वजह से फेफड़े की समस्या, सांस लेने में तकलीफ, कैंसर समेत अन्य रोग के होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है. हवा में धूल के कण और अन्य प्रदूषित गैस होती हैं. ठंड में ये सब तत्व कोहरे में मिलकर काफी नीचे आ जाते हैं. अगर इस समय कोई व्यक्ति सुबह सैर के लिए निकलता है या दौड़ लगाता है तो ये प्रदूषित तत्व व गैसें श्वांस से फेफड़ों तक पहुंच जाती हैं. इससे अस्थमा और श्वांस की बीमारी होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है. ऐसे में जो पहले से इस बीमारी से पीड़ित हैं, उन पर इसके काफी गंभीर परिणाम होते हैं.


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