Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जल्दी न्याय नहीं मिलना न्याय प्रशासन में लोगों के विश्वास को एक खतरा है
सुप्रीम कोर्ट ने नौ साल विचाराधीन कैदी रहे 74 साल के एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि जल्दी सुनवाई सुनिश्चित किये बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है.
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जल्दी न्याय नहीं मिलना न्याय प्रशासन में लोगों के विश्वास को एक खतरा है और जब समय पर सुनवाई संभव नहीं होगी तथा व्यक्ति को लंबे समय तक कैद में रहना होगा, तब अदालतें आरोपी को जमानत देने के लिए सामान्य रूप से बाध्य होंगी.
सुप्रीम कोर्ट ने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) सहित अन्य कथित अपराधों के मामले में साढ़े नौ साल विचाराधीन कैदी रहे 74 साल के एक आरोपी को जमानत देते हुए ये बात कही. कोर्ट ने कहा कि जल्दी सुनवाई सुनिश्चित किये बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है.
न्यायालय ने यह भी कहा कि उसे बताया गया है कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) अधिनियम, 2008 के तहत निर्धारित अपराधों के मामलों की सुनवाई के लिए पश्चिम बंगाल में सिर्फ एक विशेष अदालत है. न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति ए.एस. ओका की पीठ ने कहा ‘‘इन परिस्थितियों में हम पश्चिम बंगाल को यह निर्देश देना उपयुक्त मानते हैं कि वह अधिनियम के तहत और अधिक विशेष अदालतें गठित करे.’’
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी आशिम की एक अपील पर अपना फैसला सुनाया जिसने जमानत के लिए अनुरोध किया था. कोर्ट ने कहा ‘‘इस आदेश की प्रति पश्चिम बंगाल के सचिव और कलकत्ता उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को आवश्यक अनुपालन के लिए भेजी जाए."
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