दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi Hight Court) ने फरवरी 2020 के दंगे के पीछे की कथित साजिश से जुड़े यूएपीए (UAPA) मामले में उमर खालिद (Umar Khalid) की जमानत अर्जी पर शुक्रवार को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के इस पूर्व छात्र ने दलील दी कि इस हिंसा में उसकी कोई ‘आपराधिक भूमिका ’ नहीं थी और न ही इस मामले के किसी भी आरोपी के साथ उसका ‘कोई आपराधिक संबंध’ है. उसे दिल्ली पुलिस ने सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया था.


उसने कहा कि उसके विरूद्ध अभियोजन के मामले के पक्ष में कोई सामग्री नहीं है और यह कि उसने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) समेत उन्हीं मुद्दों को उठाया है जिनके बारे में देश में कई अन्य चर्चा कर रहे थे. उसने कहा कि ऐसे मुद्दों को उठाने में कुछ भी गैर कानूनी नहीं है. उसने यह भी कहा कि अमरावती का जो भाषण उसके विरूद्ध आरोपों का आधार है, उसमें न केवल अहिंसा का स्पष्ट आह्वान किया गया था बल्कि उससे कहीं कोई हिंसा भी नहीं भड़की थी.


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खालिद की ओर से उसके वकील त्रिदीप पैस ने न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अगुवाई वाली पीठ से कहा, ‘‘ जिस एकमात्र प्रत्यक्ष कृत्य को लेकर मुझे जिम्मेदार ठहराया गया है, वह (महाराष्ट्र के अमरावती का) भाषण है.... वह एक सार्वजनिक कार्यक्रम था. उससे कहीं कोई हिंसा नहीं भड़की. डोनाल्ड ट्रप अहमदाबाद गये थे (और वहां तो हिंसा नहीं हुई). यदि हम चाहें तो हमें भारत में कहीं भी जाने एवं भाषण देने की आजादी है .’’


न्यायमूर्ति मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ से खालिद की ओर से उसके वकील ने कहा, ‘‘ मेरे भाषण में अहिंसा का स्पष्ट आह्वान था और मैं माननीय न्यायाधीशों से अनुरोध करता हूं कि पूर्णता में उस भाषण को पढ़ें न कि उस तरीके से, जिस तरीके से मेरे मित्र (अभियोजक) बाल की खाल निकालना चाहते हैं . वह एक वाक्य लेकर उसे सामने रखते हैं और अटकलें लगाते हैं. उस भाषण में किसी अन्य आरोपी , या किसी हिंसा से कोई आपराधिक संबंध नहीं झलकता है.’’


खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य पर फरवरी, 2020 के दगों के कथित ‘मुख्य साजिशकर्ता’ होने के नाते अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम एंव भादंसं की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. यहां इस दंगे में 53 लोगों की जान चली गयी थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे.


सीएए और एनआरसी के विरूद्ध प्रदर्शन के दौरान यह हिंसा हुई थी. अदालत ने अप्रैल में खालिद की जमानत अर्जी पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था.


दिल्ली पुलिस का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ सरकारी वकील अमित प्रसाद ने खालिद की जमानत अर्जी का विरोध किया और कहा कि अमरावती का उसका भाषण ‘बहुत ही नापतौल कर दिया गया भाषण’ था जिसमें बाबरी मस्जिद, तीन तलाक, कश्मीर में मुसलमानों का उत्पीड़न, संशोधित नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिकता पंजी समेत कई बिंदु थे.


इस पर खालिद के वकील ने कहा, ‘‘ क्या अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने या तीन तलाक के खात्मे या सीएए का विरोध करना अपने आप में अवैध है? नहीं. ऐसा नहीं है कि बस दो लोग सीएए के विरूद्ध थे -- कई ऐसे लोग हैं, (जो उसक विरूद्ध हैं). पूर्व न्यायाधीशों ने भी सीएए के विरूद्ध बयान दिया.’’


वरिष्ठ वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल के विरूद्ध ‘चक्का जाम की पैरवी’ का आरोप नहीं है और यह कि जांच अभी जारी है एवं यह मामला सुनवाई से पहले दस्तावेजों की आपूर्ति के चरण में है और इस मामले में 850 गवाह हैं, ऐसे में खालिद को रिहा किया जाए.


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