(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Delhi Spying Case: जासूसी मामले में बढ़ी डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की मुश्किलें, गृह मंत्रालय ने जांच को दी मंजूरी
Delhi Spying Case: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जासूसी मामले की जांच का आदेश देकर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के सामने नई मुश्किलें खड़ी कर दी है.
Centre order Delhi Spying Case Inquiry: दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. उनकी सियासी मुश्किलें बढ़ती ही जा रही है. ताजा अपडेट यह है कि मनीष सिसोदिया के सामने केंद्रीय गृह मंत्रालय (Union Home Ministry) ने नई मुश्किलें खड़ी कर दी है. दरअसल, यूनियन होम मिनिस्ट्री ने जासूसी (Delhi Spying Case) मामले में सिसोदिया के खिलाफ जांच को मंजूदी दी है. केंद्रीय जांच ब्यूरों (CBI) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के सियासी हस्तियों सहित कुछ प्रभावी लोगों की जासूसी कराई थी. यह मामला सामने आने के बाद दिल्ली भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य दलों ने मामले की जांच की मांग की थी. इसी मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ताजा फैसला लेकर सिसोदिया के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है.
दिल्ली जासूसी कांड मामले को लेकर आठ फरवरी को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने बड़ा खुलासा किया था. सीबीआई ने दावा किया था कि दिल्ली सरकार ने एक फीड बैक यूनिट यानी एफबीयू गठित की थी. इसका मकसद विरोधी दलों के नेताओं की जासूसी कराना था. उक्त मामले में सीबीआई ने दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और अधिकारियों के खिलाफ केस चलाने के लिए मंजूरी भी मांगी थी. सीबीआई की ओर से दिल्ली के उपराज्यपाल, एमएचए और वित्त मंत्रालय को इस बाबत पत्र भी लिखा गया था. एलजी विनय सक्सेना इस मामले को केंद्र के पास भेज दिया था. अब उसी मामले को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जांच की मंजूरी दे दी है.
2015 में गठित हुई थी एफबीयू
सीबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि दिल्ली की सत्ता में आने के बाद आप सरकार ने फीडबैक यूनिट बनाई थी. 2015 में सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी सरकार ने अपने सतर्कता विभाग को मजबूत करने के मकसद से ऐसा किया था, लेकिन आरोप है कि इसके माध्यम से दिल्ली सरकार ने विरोधी नेताओं की जासूसी कराई थी. यही वजह है कि सीबीआइ ने मनीष सिसोदिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति मांगी थी. बता दें कि एफबीयू का गठन 2015 में किया गया था. 2016 में सतर्कता विभाग के एक अधिकारी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि इसकी आड़ में जासूसी की जा रही है. 2015 में ही इस यूनिट के खिलाफ आवाज उठी थी और बाद में मामला सीबीआई को सुपुर्द कर दिया गया था.
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