Delhi News: दिल्ली पुलिस का हिस्सा बनने की ख्वाहिश रखने वाले देश के हर युवाओं का ये सपना होता है कि उसे भी खाकी वर्दी पहनने का मौका मिले. ताकि वो जरायम की दुनिया में पुलिस का इकबाल कायम करने में अपना अहम योगदान दे सके. वर्दी की जिम्मेदारी को निभाते हुए, कुछ ऐसा कर गुजरें, जिससे लोगों में खुद की पहचान वर्दी से नहीं काम से तय हो. दिल्ली पुलिस विजिलेंस विंग में बतौर एसीपी के रूप में कार्यरत वीरेंद्र पुंज ऐसे ही शख्सियतों में से एक हैं. वर्तमान में वह न केवल पुलिस महकमें में एक अफसर हैं, बल्कि लॉ के स्टूडेंट भी रह चुके हैं.
 
सभी स्कूली छात्रों को कानून का पाठ पढ़ाने की एसीपी वीरेंद्र पुंज के अरमानों को पंख उस समय लगे, जब निर्भया रेप केस के बाद सीबीएसई ने 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए लीगल स्टडीज को एक अलग विषय के रूप में पढ़ने पर जोर दिया. सीबीएसई ने इसे अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया. सभी केंद्रीय व राज्य स्तरीय शिक्षा बोर्डों, गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों को पत्र लिखकर इसकी सूचना दी कि लीगल स्टडीज को एक अलग विषय के रूप में पढ़ाने की व्यवस्था की जाए. सीबीएसई के इस फैसले के बाद देश के कुछ शहरों में स्थित निजी विद्यालयों में लीगल स्टडीज की पढ़ाई की व्यवस्था है, लेकिन सरकारी स्कूलों में दिल्ली सहित किसी भी राज्य की सरकारों ने सीबीएसई के इस अहम सुझावों पर कोई ध्यान नहीं दिया. जबकि लीगल स्टडीज सीबीएसई के पाठ्यक्रम में साल 2013 से ही शामिल है.
 
स्कूल स्तर पर सभी पढ़ें लीगल स्टडीज


दरअसल, सीबीएसई द्वारा लीगल स्टडीज को स्कूली शिक्षा में शामिल करने से पहले से ही एसीपी वीरेंद्र पुंज यह सोचने लगे थे कि निजी या सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले हर बच्चे को कानून की बेसिक जानकारी देना जरूरी है. अगर ऐसा हो जाए तो देश में अपराध पर काबू पाया जा सकता है. सीबीएसई ने 10 साल पहले अपने पाठ्यक्रम में लीगल स्टडीज को शामिल कर उनकी इसी सोच पर तार्किकता और व्यवस्थागत मसला होने का ठप्पा लगा दिया. केंद्रीय माध्य​मिक शिक्षा बोर्ड के इस फैसले के बाद से एसीपी का उत्साह बढ़ा और उन्होंने स्कूली छात्रों को कानून का कायदा की तालीम देने की मुहिम को और तेज कर दिया. पिछले पांच साल से ज्यादा समय से वह सभी सरकारी स्कूलों खासकर दिल्ली के स्कूलों में सभी छात्रों को लीगल स्टडीज पढ़ाने की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने की मुहिम में जुटे हैं. इस मुहिम को हकीकत में तब्दील करना, अब उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है. 




ये है अपराध की संख्या में बढ़ोतरी की मूल वजह  


जब एबीपी लाइव ने उनसे इस मुहिम को लेकर बातचीत की तो उन्होंने वो सारी बातें बताई, जो उनके मन में वर्षों से लीगल स्टडीज को लेकर पक रहे थे. उन्होंने यह सवाल पूछने पर कि एक वर्दी वाला दुर्दांत अपराधियों को पकड़ नाम कमाने के बदले, ऐसा क्यों चाहता है कि स्कूल में लीगल स्टडीज की भी  पढ़ाई हो. यह तो शिक्षाविदों व नीति नियंताओं का काम है. इसके जवाब में उन्होंने बताया कि भाई साहब! हम सभी लोग एक समाज में रहते हैं. समाज में जो कुछ होता है उसका असर सभी पर अच्छा या बुरा होता है. ऐसे में, अगर आपको कोई बेवजह परेशान करेगा, तो आपको तकलीफ होगी. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह आगे कहते हैं कि समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो दूसरों का जान बूझकर नुकसान पहुंचाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं. ये भी सही है कि समाज में रहने वाला हर कोई समझदार, मेहनती और कायदे से काम करने वाला नहीं हो सकता. ऐसे में एक शिक्षित, समझदार, कानून को मानने वाला व्यक्ति गलत सोच और आपराधिक प्रवृति के लोगों की अवैध गतिविधियों या उनकी स्वार्थपरक सोच का, न चाहते हुए भी शिकार बन जाते हैं. ऐसा करने वाला आपके रिश्तेदार, पड़ोसी और समाज में रहने वाले लोगों में से कोई भी हो सकता है. ठीक उसी तरह पीड़ित व्यक्ति भी समाज का ही एक हिस्सा होता है. कुछ लोगों की इसी सोच की वजह से अपराध की संख्या में बढ़ोतरी जारी है. 


काम के दबाव में क्यों है वर्दी वाला  


ऐसे में समाज में रहने वाले कानून पसंद लोगों आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की हरकतों से परेशान होकर पुलिस का सहारा लेता पड़ता है. यानी पुलिस का काम दूसरों के गलत नीयत या लोगों की कार्यों की वजह से बढ़ता है. इसका असर यह होता है कि पुलिस को कानूनी बोझ का सामना करना पड़ता है. ऐसे में विक्टिम को पुलिस वाला जो कहेगा, वही ठीक माना जाएगा. इस तरह की घटना होने पर, पुलिस वाला कानून के मुताबिक शिकायत दर्ज करेगा और आरोपी को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर सकता है. एक वर्दी वाला इससे ज्यादा और कुछ नहीं कर सकता. उसके बाद अगर अदालत कहे कि संबंधित मामले में कुछ करने की जरूरत है, तो उसी के अनुरूप पुलिस मामले में कार्रवाई करती है. 


लीगल स्टडीज सभी के लिए जरूरी क्यों?


पुलिस वाला निष्पक्ष भाव से काम कर भी दे तो कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के दौरान ​समझादार व्यक्ति परेशान होता है. उसे अदालत का लंबे अरसे तक चक्कर लगाना पड़ता है. इन्हीं समस्याओं पर बातचीत के क्रम में उन्होंने गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि वो सही कहा करते थे- 'पापी से नफरत न कर पाप से नफरत करो. क्योंकि जब समाज में पाप नहीं होगा तो पापी भी अस्तित्व में बना नहीं रह सकता. अपराधिक घटनाएं न के बराबर होंगी.' इस स्थिति को हासिल करने के लिए ही देश के सभी स्कूलों में लीगल स्टडीज की पढ़ाई जरूरी है. ताकि नई पीढ़ी के बच्चे कानून के तौर तरीकों को सीख सकें. ऐसा करने पर बच्चे कानून के प्रति जागरूक होंगे. किसी के द्वारा अपराध करने पर, कैसे रिएक्ट करना है, इस बात की उनमें समझ होगी. वर्तमान में ये समझ लोगों में न होने की वजह से आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में क्राइम के प्रति रुझान ज्यादा है. कानून की जानकारियां न होने से अच्छे लोग या कानून को मानने वाले आपराधिक सोच वालों के सामने दबकर रहते हैं. या उनसे बचकर रहते हैं. अगर हमारे बच्चों को कानून के कायदों की जानकारी होगी, तो क्राइम करने वाले किसी भी आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने से पहले दस बार सोचेगा. गलत काम करने वाला वैसा करने से बचेगा. 


स्कूल खोलने से नहीं, ऐसा करने से जेल होंगे बंद 


एसीपी वीरेंद्र पुंज कहते हैं, भारतीय समाज के किंवदंती है कि एक स्कूल खोलने का मतलब एक जेल को बंद करना है. पुलिस सेवा में काम करते हुए मुझे लगता है कि इस में बदलाव की जरूरत है. केवल स्कूल खोलने भर से जेलें बंद नहीं होंगी. जेलें बंद होंगी स्कूली बच्चों को लीगल एजुकेशन देने से. ऐसा इसलिए कि कानून की समझ रखने वाले अपराधियों के लिए चेक प्वाइंट की तरह काम करेंगे. समाज में उनकी उपस्थिति मात्र ही अपराध को नियंत्रित करने का जरिया बनेगा. यानी समाज में शांति और भाईचारे को बढ़ावा मिलेगा. दिल्ली में साल 2012 में निर्भया रेप केस और राजस्थान के एक सरकारी नर्स रेप केस का जिक्र करते हुए कहते हैं कि इन मामलों में क्या हुआ, कानून के कुछ जानकार लोगों ने इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए पहल की. अदालत ने ऐसे लोगों की पहल को तवज्जो दी. दोनों मामले में अदालत के आदेश पर नए-नए कानून ​बने. ये बात अलग है कि निर्भया मामले में 10 साल बाद फैसला आया तो राजस्थान रेप केस में तीन दशक का समय लगा. 


लोगों को जागरूक करना होगा


इससे आगे उन्होंने कहा कि अपराध को नियंत्रित करने के लिए समाज में लोगों का कानून के प्रति जागरूक होना और उसका ज्ञान होना जरूरी है. इस बात की आवश्यकता को देखते हुए सीबीएसई ने 2013 में देशभर के सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों से कहा कि वो लीगल स्टडीज को 11वीं और 12वीं कक्षा में एक अलग विषय के रूप में पढ़ा सकते हैं. आश्चर्य की बात है कि देशभर में सरकारी स्कूलों में लीगल स्टडीज की पढ़ाई की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं है. दिल्ली सहित देश के कुछ प्रमुख शहरों के निजी विद्यालयों में इसकी पढ़ाई जरूर है, लेकिन इसका भी लाभ केवल पैसे वाले घरों के बच्चों को मिलता है. अगर लीगल स्टडीज को सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की सुविधा बहाल कर दी जाए तो न केवल अपराध नियंत्रित होगा, बल्कि लीगल टीचर, एडवोकेट, जजेज के पदों पर रोजगार भी सृजित होंगे. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी इसका लाभ उठा पाएंगे.
 
सवाल का न में मिला जवाब


उन्होंने कहा कानून का कायदा मुहिम के तहत हमने देशभर स्कूलों से यह पूछा कि आपके लिए लीगल स्टडीज पढाई है या नहीं. बच्चों को इसे पढ़ने के लिए आप कहते हैं कि नहीं. इसका जवाब सरकार, टीचर और स्कूली स्तर पर निराशाजनक मिला. देश में कहीं पर भी इसकी व्यवस्था सरकारी स्कूली एजुकेशन में नहीं हैं. जबकि निजी स्कूलों में इसकी पढ़ाई शुरू हो चुकी है. यह गरीब बच्चों के साथ भेदभाव करने जैसा है. उन्होंने कहा कि देशभर के सभी सरकारी स्कूलों, राज्य सरकारों और शिक्षण संस्थानों से आरटीआई के जरिए सवाल पूछे, सभी की ओर से ना में जवाब मिला. दिल्ली के 1047 सरकारी स्कूलों में इसकी व्यवस्था नहीं है. शिक्षा मंत्री आतिशी जी से  व्यक्तिगत तौर मिलकर 150 पेज का ज्ञापन सौंप चुका हूं. हरियाणा में भी इसकी सुविधा नहीं है. पंजाब के इक्का दुक्का स्कूलों में लीगल स्टडीज की पढ़ाई की सुविधा है. 


5 साल से जारी है एसीपी की मुहिम


एसीपी वीरेंद्र पुंज का कहना है कि पिछले 5 साल से इस मुहिम को पूरा करने पर लगातार मेहनत कर रहा हूं. इसके लिए ड्यूटी से बाहर जाकर भी काम कर रहा हूं. अब तो दिल्ली के हजारों बच्चों ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों और सरकार को पत्र लिखे हैं कि लीगल स्टडीज पढ़ना चाहता हूं. सरकार इसकी व्यवस्था करे. इसके बावजूद कोई भी सरकार स्कूली बच्चों को लीगल स्टडीज पढ़ाने के लिए तैयार नहीं. जबकि देश के निजी स्कूलों में 2013 से इसकी पढ़ाई है. 


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