Delhi Politics News: कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की स्थिति आज उन दो दोस्तों की तरह नजर आ रही है, जो कभी तो एक-दूसरे के गले में हाथ डाल कर घूमते थे और दोस्ती के दावे किया करते थे, लेकिन दोनों की नजर दिल्ली की गद्दी पर होने से जिगरी दोस्ती जानी दुश्मनी में बदल गई है. 


बीते 10 वर्षों से दिल्ली की सत्ता पर आम आदमी पार्टी का कब्जा बना हुआ है. कांग्रेस जिसने वर्षों दिल्ली की सत्ता पर शासन किया और बीते 10 वर्षों से दिल्ली से बेदखल है. वह वापस दिल्ली की गद्दी पाने के लिए बेताब है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में आप के साथ गलबहियां करने और मजबूती के साथ खड़े होने का दावा करने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव के संपन्न होते ही आप से अलग हो गई. 


कांग्रेस बीजेपी को क्यों बता रही सहयोगी?


लोकसभा चुनाव में जिन मुद्दों पर कांग्रेस आप का पक्ष ले रही थी आज उन्हीं मुद्दों को लेकर आप के खिलाफ आक्रामक बनी हुई है. मजेदार बात यह है कि लोकसभा चुनाव में आप के साथ मिल कर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस, आज बीजेपी को अपना सहयोगी बता रही है.


दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने भाजपा और आप पर आरोप लगाते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा शॉर्ट टर्म पावर परचेज के तहत बिजली कंपनियों को खुली छूट और बिजली उपभोक्ताओं से हर वर्ष मनमानी बढ़ोत्तरी कर वसूले जा रही बिजली की दरों से करोड़ों रुपये का भ्रष्टाचार किया जा रहा है. जिसका खुलासा सबूतों के साथ जल्द ही कांग्रेस पार्टी करेगी. 


उन्होंने भाजपा पर भी केजरीवाल सरकार द्वारा बिजली खरीद और वितरण में किए गए भ्रष्टाचार में बराबर के सहयोगी होने का गंभीर आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि दोनों ने घोटाले को अंजाम देने के लिए तमाम उपभोक्ता विरोधी रेगुलेशन बनाए हैं.


बिजली कंपनियों की फोरेंसिक ऑडिट की मांग


देवेंद्र यादव ने दोनों को आड़े-हाथों लेते हुए कहा कि केजरीवाल-भाजपा द्वारा डीईआरसी चेयरमैन तथा उसके मेंबर की नियुक्ति में अड़चन पैदा करना भी भ्रष्टाचार की साजिश का हिस्सा है, क्योंकि लंबे समय तक चेयरमैन की नियुक्ति पर भाजपा और केजरीवाल में घमासान चला. 


उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने बिजली कम्पनियों को कैग (CAG) द्वारा ऑडिट का वादा करके निजी सी.ए. फर्म से ऑडिट कराना साबित करता है कि सरकार बिजली के भ्रष्टाचार में बहुत कुछ छिपा रही है. पार्टी की तरफ से सीएजी की निगरानी में बिजली कंपनियों का फोरेंसिक ऑडिट कराने की मांग करते हुए उन्होंने पूछा कि, क्यों बिजली कम्पनियों के खातों का कैग द्वारा ऑडिट कराने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ा है?


पीपीएसी दरों मे मनमानी बढ़ोत्तरी पर लगे रोक


दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि 30 सितंबर 2021 के टैरिफ ऑर्डर में डीईआरसी के मात्र पांच रुपए प्रति यूनिट तक की दर से शॉर्ट टर्म पावर परचेज के आदेश के बावजूद 14 से 19 रुपए तक प्रति यूनिट की खरीद कर, इसका सीधा बोझ जनता पर डाला जा रहा है. उन्होंने कहा कि उसके बाद नया टैरिफ ऑर्डर नहीं लाया गया, लेकिन चोर दरबाजे से लूट जारी है. उनकी मांग है कि जब तक टैरिफ आर्डर नहीं आता तब तक पीपीएसी दरों मे मनमानी बढ़ोत्तरी पर रोक लगाई जाए और बिजली कंपनियों की मनमानी की जांच हो.


29 कोल इंपोर्ट टेंडर में से 24 अडानी या उसके शेल कंपनियों के


देवेंद्र यादव ने केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि भीषण गर्मी में हर वर्ष बढ़ती बिजली की मांग की पूर्ति के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा दादरी प्लांट से 500 मेगावाट बिजली आपूर्ति के 2035 तक एग्रीमेंट को केजरीवाल सरकार ने 6 जुलाई 2015 को एनटीपीसी के दादरी संयत्र से 500 मेगावाट बिजली को छोड़ने का अनुरोध केन्द्र सरकार से किया, जिस पर बिना विचार किए बीजेपी सरकार ने दिल्ली को मिलने वाली 500 मेगावाट बिजली हरियाणा को दे दी. उन्होंने कहा कि दादरी संयत्र से 500 मेगावाट बिजली खत्म करके बिजली आपूर्ति अडानी पावर से मंहगे दर पर खरीद कर की जा रही है, जिसे बिजली कम्पनियां 11 से 12 रुपये प्रति किलो मेगावाट की दर से खरीद रही है. 


दादरी संयत्र से बिजली 4.81 रुपये प्रति किलोवाट खरीदी जाती थी. उन्होंने कहा कि बीजेपी के साथ मिलीभगत के दिल्ली सरकार भी अडानी ग्रुप का महत्व दे रही है और पिछले कुछ वर्षों से NTPC के सारे कोल इम्पोर्ट टेंडर अदानी को मिल रहे हैं. उन्होंने कहा कि चौंकाने वाली बात यह है कि 29 कोल इंपोर्ट टेंडर में से 24 अडानी या उसके शेल कंपनियों को दिया गया.


पहले से चौगुना बिल एक महीने में मिल रहा लोगों को


उन्होंने कहा कि केजरीवाल-भाजपा सरकार ने एक साजिश के तहत दिल्ली को वेस्ट टु एनर्जि प्लांट से सस्ते बिजली को सप्लाई होने से रोका और गरीबों को मंहगी बिजली निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदने पर मजबूर किया. भाजपा और केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासिययों के लिए कभी सस्ती बिजली दरों की कोई योजना बनाने की पहल नहीं की, जिसका परिणाम यह है कि कांग्रेस के समय में लोगों को दो महीने में मिलने वाली बिजली के बिल की चौगुनी राशि का बिल आज एक महीने के बिजली के बिल के रुप में लोगों को चुकानी पड़ रही है.


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