Delhi News: दिल्ली में मॉनसून की बारिश के बाद लोगों को गर्मी से राहत मिली है लेकिन अलग-अलग मसलों पर मदभेद की वजह से हर बीतते दिन राजधानी का सियासी पारा चढ़ता ही जा रहा है. यही वजह है कि दिल्ली सरकार और एलजी (Vinai Saxena) के बीच चल रही खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने सर्विसेज को लेकर दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया था, तो वहीं केंद्र सरकार ने अध्यादेश को लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. अध्यादेश लागू होने के साथ ही सेवा विभाग का नियंत्रण भी एलजी के हाथों में आ गया है. दिल्ली में अध्यादेश प्रभाव में आते ही एलजी वीके सक्सेना ने एक बड़ा कदम उठाते हुए दिल्ली सरकार के 23 प्रमुख विभागों, निगमों, बोर्डों, सोसायटियों और स्वायत्त निकायों में विशेषज्ञ के तौर पर काम पर रखे गए 400 से ज्यादा प्राइवेट लोगों को नौकरी से हटा (Vinai Saxena terminated 400 Specialist) दिया. एलजी के इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार और राजनिवास के बीच तनातनी बढ़ गई है.
दरअसल, दिल्ली सरकार में फेलो, एसोसिएट फेलो, एडवाइजर, डिप्टी एडवाइजर, स्पेशलिस्ट, सीनियर रिसर्च ऑफिसर, कंसल्टेंट के तौर पर दिल्ली सरकार को अपनी सेवाएं दे रहे थे. दिल्ली सरकार के सर्विसेज विभाग (Delhi service Department) ने इन लोगों को नौकरी से हटाने की सिफारिश करते हुए एलजी के पास एक प्रस्ताव भेजा था, जिसे एलजी ने अपनी मंजूरी दे दी है.
एलजी ने इसलिए दी सेवा से हटाने को मंजूरी
एलजी ऑफिस से मिली जानकारी के अनुसार सर्विसेज विभाग ने अपनी जांच में इन लोगों की नियुक्तियों में कई प्रकार की गड़बड़ियां और खामियां पाई थीं. यहां तक कि कई चयनित उम्मीदवार शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव संबंधी जरूरी पात्रता मानदंडों को भी पूरा नहीं करते थे. बावजूद इसके उन्हें नौकरी पर रखा गया था. वहीं संबंधित विभागों ने भी इन लोगों के द्वारा पेश किए गए वर्क एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट्स को वेरिफाई नहीं किया. कई मामलों में इन दस्तावेजों में भी हेराफेरी और फर्जीवाड़ा पाया गया. इसी को ध्यान में रखते हुए एलजी ने ऐसे सभी विभागों, कॉरपोरेशन, बोर्ड, सोसायटीज और स्वायत्त निकाय, जिन पर दिल्ली सरकार का प्रशासनिक अधिकार है और जिनमें किसी नियुक्ति के लिए एलजी या अन्य सक्षम अथॉरिटी की मंजूरी लेना जरूरी है. वहां बिना मंजूरी लिए विभिन्न पदों पर तैनात किए गए इन प्राइवेट लोगों को तुरंत नौकरी से हटाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है.
विशेषज्ञों की नियुक्ति में नहीं रखा गया इसका ख्याल
एलजी ऑफिस की ओर से ये भी कहा गया है कि अगर किसी प्रशासनिक विभाग को ऐसे किसी व्यक्ति की सेवाओं को जारी रखना उचित लगता है तो वह इसके औचित्य को समझाते हुए सभी जरूरी डिटेल्स के साथ सर्विसेज विभाग के माध्यम से मंजूरी लेने के लिए प्रस्ताव एलजी के पास भेज सकता है. सर्विसेज विभाग ने 23 विभागों, बोर्डों, स्वायत्त निकायों और पीएसयू में विशेषज्ञों की तैनाती से जुड़ी, पूरी जानकारी को एकत्र किया था. जांच के दौरान पता चला कि इन नियुक्तियों में केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के द्वारा एससी, एसटी और ओबीसी कैंडिडेट्स के लिए निर्धारित रिजर्वेशन पॉलिसी का भी ध्यान नहीं रखा गया.
इन विभागों में चला अनियमितताओं का पता
पर्यावरण, आर्कियोलॉजी, दिल्ली आर्काइव, महिला एवं बाल विकास और इंडस्ट्री जैसे विभागों में 69 लोगों को बिना किसी अप्रूवल के ही काम पर रख लिया गया था. वहीं 13 बोर्ड और स्वायत्त निकायों ने भी 155 लोगों को सक्षम अथॉरिटी से मंजूरी लिए बिना ही उन्हें भर्ती कर लिया गया. दिल्ली विधानसभा रिसर्च सेंटर, डायलॉग एंड डिवेलपमेंट कमिशन ऑफ दिल्ली और योजना विभाग में भी 87 लोगों को तैनात करने के संबंध में भी सर्विसेज विभाग को कोई जानकारी नहीं दी गई. किस ऑथोरिटी की मंजूरी से इन लोगों को काम पर रखा गया. जबकि डीएएमबी, डीपीसीसी जैसी संस्थाओं ने भी साफतौर से यह नहीं बताया कि अपने यहां ऐसे लोगों को रखने से पहले उन्होंने गवर्निंग काउंसिल, बोर्ड, सिलेक्शन कमेटी आदि की मंजूरी ली थी या नहीं.
बीजेपी ने की आप से सैलरी वसूली की मांग
बीजेपी ने दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों में विशेषज्ञ के तौर पर नियुक्त 400 कर्मचारियों को हटाने के एलजी के फैसले का स्वागत किया है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि यह तो लंबे समय से लंबित कार्रवाई थी. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि जिन 400 विशेषज्ञ कर्मचारियों को एलजी ने हटाया है. वास्तव में वह कोई विशेषज्ञ नहीं बल्कि सीएम के पसंदीदा व्यक्ति थे. इन 400 कर्मचारियों में अधिकांश के पास विशेषज्ञ होने की कोई प्रमाणित शैक्षणिक योग्यता भी नहीं थी. सचदेवा ने मांग की है कि ऐसे कर्मचारियों को वेतन के रूप में जो पैसे दिए गए वह भी आम आदमी पार्टी से वसूल किए जाएं.