Delhi vs MHA News: दिल्ली विधनसभा का बजट सत्र 17 मार्च से जारी है. इस बीच 21 मार्च को बजट पेश होने से पहले ही इस पर सियासी बवाल मच गया. यह स्थिति केंद्र सरकार की तरफ से बजट को मंजूरी नहीं मिलने की वजह से हुआ और मंगलवार को दिल्ली का बजट पेश नहीं हो सका. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार को इसके लिए दोषी करार दिया है. हालांकि, बीजेपी ने भी सीएम केजरीवाल को इस मुद्दे को लेकर घेरते हुए कहा कि नौ मार्च को राज्यपाल और 17 मार्च को गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के बजट को इस आपत्ति के साथ वापस भेज दिया था कि उसमें इंफ्रास्ट्रक्चर पर कम और विज्ञापन मद में ज्यादा खर्चो का बजट बनाया गया था. इस पर आपत्ति जताते हुए एमएचए ने बजट को संशोधित करने के लिए निर्देश दिया था, लेकिन केजरीवाल सरकार ने उसे सुधार कर वापस मंजूरी के लिए नहीं भेजा. सवाल ये उठता है की केंद्र सरकार ने दिल्ली के बजट पर रोक क्यों लगाई और क्या वो ऐसा कर सकती है? 


यहां पर बता दें कि दिल्ली के बजट को केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है. एमएचए की मंजूरी के बाद ही दिल्ली सरकार की ओर से बजट को सदन में पेश किया जाता है. अगर केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के बजट से संतुष्ट नहीं होती हैए तो उसमें सुधार के लिए कह सकती है. केंद्र सरकार ने इस बार ऐसा ही किया. यही वजह है कि इस मुद्दे पर सियासी हंगाम मच गया. आइए, राजनीतिक विश्लेषकों की एबीपी से बातचीत के आधार पर बताते हैं कि केंद्र सरकार के इस कदम को कितना सही और कितना गलत मानते हैं? 


MHA की आपत्ति को बेवजह बनाया गया मुद्दा


संवैधानिक और संसदीय मामलों के विशेषज्ञ और  दिल्ली विधानसभा के नियमों और प्रक्रिया को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले राजनीतिक विश्लेषक एसके शर्मा ने एबीपी लाईव की टीम से बातचीत में आम आदमी पार्टी और इसके मुख्यमंत्री केजरीवाल को लताड़ते हुए बताया कि सबसे पहले जो ये हंगामा मचाया जा रहा है, उसका कोई आधार नहीं है. अभी 31 मार्च नहीं बीता है. इसके अंदर कभी भी बजट पेश किया जा सकता है. 31 मार्च के बाद दिल्ली सरकार किसी भी खर्चो को करने में सक्षम नहीं होगी. उन्होंने कहा कि दिल्ली का बजट केंद्र सरकार से हमेशा से ही पास होते आया है और हर बार बजट के मद की जांच होती आई है. केंद्र सरकार अपना काम कर रही हैए जो कोई नई बात नहीं है.


केंद्र की मंजूरी के बिना नहीं तय कर सकते बजट पेश करने के तारीख



दूसरी बात ये है कि दिल्ली सरकार को बजट पेश करने से पहले एक प्रक्रिया का पालन करना होता है, जिसमें पहले केंद्र सरकार से बजट की मंजूरी जरूरी होती है और जब केंद्र सरकार इसके लिए मंजूरी दे देती है, तो फिर बजट की तारीख की घोषणा के लिए विधानसभा स्पीकर को सूचित किया जाता है. जिस पर स्पीकर बिजनेस एडवाइजरी कमिटी, जिसमें विपक्ष भी शामिल होते हैं, की मीटिंग बुलाते हैं. फिर उसमें बजट पेश करने के लिए तारीख पर चर्चा कर बजट पेश करने की तारीख तय की जाती है. केजरीवाल सरकार ने ऐसा नहीं किया. बजट पर केंद्र की मंजूरी के बिना उन्होंने बजट पेश करने की तारीख की घोषणा कर दी, जो उन्हें नहीं करनी चाहिए थी. दिल्ली सरकार को केंद्र से बजट मिलता है और जब तक उन्हें मिलने वाले पैसों और उसे खर्च किए जाने को लेकर मंजूरी नहीं मिल जाती तब तक वो बजट को पेश करने की तारीख की घोषणा कैसे कर सकते हैं.


केंद्र से सहमति लिए बगैर बजट पेशी की तिथि तय करना गलत है. एसके शर्मा के मुताबिक दिल्ली सरकार के मंत्रियों को संविधान की कोई जानकारी नहीं है. आज बजट नहीं पेश हो पाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है. पूर्व में पेश हुए बजट की तारीखों को अगर देखें तो कई मौकों पर 30 मार्च को भी बजट पेश किया गया है. इस तरह से बजट पेश करने की तारीख की घोषणा कर  अरविंद केजरीवाल और उनके वित्त मंत्री ने न केवल अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है, बल्कि सरकार और सदन की भी बेइज्जती कार्रवाई है.


बजट सुधार कर केंद्र को भेजना था


राजनीतिक मामलों के जानकार रॉबिन शर्मा का कहना है कि ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच चल रही रस्साकसी का असर दिल्ली के बजट पर भी पड़ रहा है. दिल्ली विकास में पिछड़ रही है और इसका विकास कार्य अब और बाधित ना हो इसके लिए केंद्र और दिल्ली सरकार को बैठ कर इस पर चर्चा करनी चाहिए. दिल्ली का बजट जल्द से जल्द पेश होना चाहिए. आगे जी-20 समिट होना है, ऐसे में दिल्ली सरकार के पास अपना बजट नहीं होगा तो वो दिल्ली के विकास में अपनी भागीदारी नहीं दे सकेंगे. हालांकि, उन्होंने बजट के मंजूरी नहीं मिलने को लेकर केजरीवाल को दोषी ठहराते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार को बजट में विज्ञापनों पर खर्च किये जाने वाले राशि पर आपत्ति थी, तो उसे सुधार कर बजट को मंजूरी के लिए भेजना चाहिए था.


आपत्ति की जानकारी पर अनभिज्ञता जाहिर करना दुर्भाग्यपूर्ण


राॅबिन शर्मा का कहना है कि वैसे भी अगर सरकार अच्छा काम करती है तो उसके प्रचार-प्रसार के लिए बड़े-बड़े होर्डिंस और बैनरों, टीवी, समाचारपत्र विज्ञापनों में करोड़ों रुपये खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं है. वहीं उन्होंने मंजूरी नहीं मिलने पर केजरीवाल द्वारा अनभिज्ञता जाहिर करने पर भी तंज कसते हुए कहा कि जो केजरीवाल मुख्यमंत्री बनने से पहले एक एक्टिविस्ट के रूप में हर नेता के भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकरियों की खबर रखते थे और पर्चियों को बांटा करते थे, वो आज बजट को वापस भेजे जाने को लेकर अनजान बन रहे हैं. जबकि 4 दिन पहले ही मुख्य सचिव के पास उसे भेजा जा चुका है. अगर सही में उन्हें उनके होने वाली गतिविधियों की जानकारी नहीं है तो फिर उनका मुख्यमंत्री होना बेकार है.


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