Delhi News: दिल्ली (Delhi) कांग्रेस को दो दिन पहले आधिकारिक रूप अरविंदर सिंह लवली (Arvinder Singh Lovely) के रूप में नया अध्यक्ष मिल गया. पार्टी के प्रदेश हेडक्वार्टर पर लंबे अरसे बाद गुरुवार को कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल दिखा. भारी संख्या में नये प्रदेश अध्यक्ष का स्वागत करने के लिए सभी गुटों के नेता और उनके समर्थक शपथ ग्रहण के दौरान मौजूद थे और जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, लेकिन अरविंदर लवली की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि क्या वो दिल्ली कांग्रेस (Congress) को 10 साल पुराने वाले तेवर में ला पाएंगे?
 
यह सवाल इसलिए कि साल 2013 से लगातार दिल्ली में कांग्रेस कमजोर हुई है. कांग्रेस के कमजोर होने का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि दिल्ली की सत्ता पर लागातार 15 साल तक काबिज रहने वाली पार्टी की 70 में से एक भी विधायक प्रदेश की किसी भी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. एमसीडी में 250 में से केवल नौ पार्षद कांग्रेस के हैं.


सबके साथ तालमेल बड़ी चुनौती


अरविंदर सिंह लवली के लिए शुरुआती राहत की बात यह है कि पिछले एक दशक से गुटबाजी का शिकार दिल्ली कांग्रेस में गुरुवार को लवली के अध्यक्ष पद पर शपथ ग्रहण समारोह के दौरान सभी गुटों के नेता मंच पर मौजूद थी. इनमें संदीप दीक्षित गुट, जेपी अग्रवाल गुट, देवेंद्र यादव का गुट, अजय माकन गुट व अन्य शामिल हैं. मंच पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता हारुन युसुफ, रागिनी नायक, मुकेश शर्मा व अन्य नेता भी मौजूद थे. अरविंदर लवली की चुनौती यह है कि अजय माकन गुट और संदीप दीक्षित गुट आप के साथ गठबंधन में दिल्ली में चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है. दोनों गुट के नेता खुलेआम इसका विरोध करते आये हैं. पहले केवल संदीप दीक्षित खुलकर विरोध करते रहे, लेकिन अजय माकन भी गठबधन का विरोध कर रहे हैं. 


ये है लवली की खासियत


फिलहाल, दिल्ली अध्यक्ष पद का शपथ लेने के बाद नवनियुक्त अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि सभी लोग मिलकर पार्टी को मजबूती देने का काम करेंगे. पार्टी पूरी एकजुटता के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी. उन्होंने ये भी कहा कि सबकी सहमति के आधार पर हर फैसले लिए जाएंगे. ताकि पार्टी के सभी नेता और कार्यकर्ता एकजुटता के साथ विरोधी ताकतों को पटखनी दे सकें. अरविंदर सिंह लवली का मजबूत पक्ष यह है कि दिल्ली की राजनीति में वोट बैंक के लिहाज से उनकी पंजाबी, जाट और ओबीसी समुदायों पहुंच अच्छी है. वो पहले भी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. पूर्व सीएम शीला दीक्षित के समय वो अलग-अलग मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. इस लिहाज से दिल्ली कांग्रेस के नेताओं और लोगों तक उनकी पहुंच अच्छी है. मनी मैनेजमेंट और दिल्ली की परंपरागत राजनीति के लिहाज से वो कांग्रेस में सबसे बेहतर स्थिति में हैं. 


2015 और 2020 में खाता नहीं खोल पाई कांग्रेस 


अगर, हम विधानसभा की बात करें तो अन्ना आंदोलन के बाद 2013 हुए विधानसभा चुनाव में सत्तधारी पार्टी होते हुए विधानसभा की 70 सीटों में सिर्फ 7 सीटों पर र्टी के नेता चुना जीत पाए थे. 31 सीटों पर आप और 32 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी. उस समय कांग्रेस के समर्थन से आप आदमी पार्टी की दिल्ली में पहली बार सरकार बनी थी. हालांकि, आप की सरकार केवल 49 दिनों तक ही चल पाई थी. उसके बाद 2015 में हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिली. 70 में से 67 सीटों पर आप के प्रत्याशी विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुए थे. तीन सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी विधायक बने थे. साल 2020 में हुए चुनाव में भी दिल्ली की जनता ने आप को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाई थी. हालांकि, इस बार कुछ सीटें कम हुई. आप को 62 सीटों पर जीत मिली और आठ सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे. 


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