Delhi High Court News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अगर कोई महिला कानून के अनुसार अंगदान करना चाहती है तो पति से अनापत्ति प्रमाणपत्र (No Objection Certificate) लेने की कानूनन कोई जरूरत नहीं है. न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने एक महिला की अपने पिता को किडनी दान करने के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की. न्यायाधीश ने कहा कि कहा कि नियम के अनुसार किसी करीबी रिश्तेदार को अंगदान के मामले में किसी भी ‘‘जीवनसाथी की सहमति’’ अनिवार्य नहीं है और अधिकारियों को कानून के अनुसार अंगदान के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन पर कदम उठाने का निर्देश दिया. 


मानव अंग प्रतिरोपण नियमों पर गौर करने के बाद कोर्ट का फैसला


न्यायाधीश ने कहा, ‘‘महिला कोई गुलाम नहीं है. उसका शरीर है.’’ अदालत ने मानव अंग प्रतिरोपण नियमों पर गौर किया और कहा कि कानूनी ढांचे के तहत किसी को अपने जीवनसाथी से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य नहीं है. अदालत ने कहा, ‘‘अदालत ने नियम 22 (महिला दाता के मामले में एहतियातन) के साथ नियम 18 (करीबी परिजन के मामले में सर्जरी प्रक्रिया) पर गौर किया, जिसमें कहा गया है कि ऐसे मामले में जहां दाता विवाहित है, उसे अपने जीवनसाथी से सहमति लेने की कोई जरूरत नहीं है. नियम में जीवनसाथी से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने की बात नहीं है.’’


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अंगदान करने के लिए पति से अनापत्ति प्रमाणपत्र की नहीं है जरुरत


अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के आवेदन की जांच की जा सकती है और उसे सक्षम प्राधिकार के समक्ष रखा जा सकता है. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि जब अपने बीमार पिता को अपनी किडनी दान करने को तैयार थी, तो उसके पति से अनापत्ति प्रमाण पत्र के अभाव में उसके आवेदन पर संबंधित अस्पताल की तरफ से कार्रवाई नहीं की जा रही थी. महिला ने कहा कि पति से उसका रिश्ता खत्म हो गया है और इस तरह की जरूरत को पूरा नहीं किया जा सकता है.


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