UP Politics: लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने जातीय गोलबंदी शुरू कर दी है. यूपी में बीजेपी ने इस मोर्चे पर अपने चक्रव्यूह की अच्छी खासी रचना कर दी है. केशव प्रसाद मौर्य को विधान परिषद का नेता बना दिया है.  केपी मौर्य को जिम्मेदारी देकर बीजेपी को ओर से ओबीसी जातियों को संदेश दिया गया है. क्योंकि इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से स्वतंत्र देव सिंह के इस्तीफे से कई की अटकलें लगना शुरू हो गई थीं. 


मौर्य को विधान परिषद का नेता बनाकर बीजेपी ने खासतौर से मौर्य सैनी शाक्य, कुशवाहा जिनका अच्छा खासा वोट बैंक ओबीसी बिरादरी में है, को साधा है. दरअसल  बिहार के नए राजनीतिक घटनाक्रम का असर यूपी में देखने को मिल सकता है. संयुक्त विपक्ष की ओर से नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने की बातें तेज हो रही हैं. दूसरी ओर यूपी में ओबीसी में आने वाली कुर्मी जाति को लेकर भी घमासान शुरू हो सकता है.


यूपी में बीजेपी ने ओबीसी नेता को दी बड़ी जिम्मेदारी
बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी इसी जाति से आते हैं और यूपी में कुर्मी अभी पूरी तरह से बीजेपी के साथ हैं और 8-10 लोकसभा सीटों और 50 के करीब विधानसभा सीटों में निर्णायक भूमिका में हैं.  हालांकि बीते बुधवार को सपा नेता अखिलेश यादव ने नीतीश की पीएम पद की उम्मीदवारी के सवाल पर साफ कहा कि लड़ाई तो यूपी में होगी इसलिए चेहरा भी यहीं से होना चाहिए.


बिहार में मिली कामयाबी से उत्साहित विपक्ष जहां अभी जातीय समीकरणों का गुणाभाग कर ही रहा था कि इसी बीच बीजेपी ने यूपी में ओबीसी जाति के और नेता को बड़ी जिम्मेदारी दे दी. बिजनौर के रहने वाले धर्मपाल सिंह को संगठन मंत्री की जैसे अहम पद पर बैठा दिया गया है. धर्मपाल सिंह अभी तक झारखंड के प्रभारी थे. अभी तक ये जिम्मेदारी यूपी में सुनील बंसल के हाथों थी.


सैनी जाति से आते हैं धर्मपाल
धर्मपाल सिंह ओबीसी की सैनी जाति से आते हैं. इस जाति का पश्चिमी यूपी में अच्छा-खासा असर है. वहीं धर्मपाल सिंह आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ता हैं.  झारखंड में भले ही बीजेपी विधानसभा चुनाव हार गई हो लेकिन इससे पहले लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटें बीजेपी ने जीत चुकी है.  बीजेपी की ओर से लिए गए इस फैसले के बाद अब निगाहें इस बात पर टिक गई हैं कि पार्टी अब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की कमान किस जाति से बनाएगी.


बीजेपी के पुराने इतिहास को देखें तो लोकसभा चुनाव के समय प्रदेश की कमान हमेशा किसी ब्राह्मण नेता के हाथ रही है.  हाल के दो चुनाव देखें जिसमें 2014 में लक्ष्मीकांत बाजपेई और 2019 में महेंद्रनाथ पांडेय के पास ये जिम्मेदारी थी. इन दोनों ही चुनाव में बीजेपी को ब्राह्मणों का जबदस्त समर्थन मिला है. 


बीजेपी की नजर मायावती के वोटों पर
यूपी में सीएम योगी आदित्यानाथ सिंह ठाकुर जाति से आते हैं. इस लिहाज से इस पद पर किसी ब्राह्मण चेहरे को आगे किया जा सकता है. इनमें कई बीजेपी नेताओं नाम हैं जैसे सांसद सुब्रत पाठक, विधायक श्रीकांत शर्मा और पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा का नाम शामिल है. हालांकि बीजेपी की नजर मायावती के वोटों पर है. केंद्र और प्रदेश की सरकारी योजनाओं का बड़ा लाभार्थी इस वर्ग से आता है. इस लिहाज से कुछ नाम इस वर्ग से आने वाले नेताओं के भी चर्चा में हैं.


दूसरी ओर बीजेपी ने तिरंगा यात्रा के जरिए प्रदेश में यादवों और पसमांदा मुसलमानों में पैठ बनाने की योजना बनाई है. पसमांदा मुसलमानों को लेकर तो पार्टी की जबरदस्त प्लानिंग और हाल ही में दिल्ली में इसको लेकर बड़ा कार्यक्रम भी किया गया है.  इसके अलावा यूपी में पसमांदा बहुल इलाकों में भी ऐसे कार्यक्रम करने की तैयारी चल रही है. कुल मिलाकर बीजेपी ने यूपी में 80 सीटें जीतने के लक्ष्य को पाने के लिए जबरदस्त जातीय गोलबंदी शुरू कर दी है. निगाहें अब अगले प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर है.


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