आगराः इलाज के अभाव में मासूम ने तोड़ा दम, लॉकडाउन के चलते बेरोजगार था परिवार
आगरा में एक मासूम ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया. हालांकि, वजह इलाज का अभाव है लेकिन असल में परिवार लॉकडाउन के चलते बेरोजगार था. जब तक लॉकडाउन खुला तो परिवार पूरी तरह भुखमरी के कगार पर था और मासूम के इलाज के पैसे भी नहीं जुटा पाया.
आगरा, एबीपी गंगाः यूपी के आगरा जिले में लाकडाउन और अनलॉक के बीच एक परिवार की 5 साल की मासूम बेटी की इलाज के अभाव में मौत हो गई. अन्तिम संस्कार के बाद से लगभग दो दिन पूरे होने को आ गए है. हालांकि, परिवार अभी भी धन के अभाव में भूखा प्यासा बैठ कर बेटी की मौत का शोक मना रहा है.
दरअसल, कोरोना संक्रमण के चलते हुए लाकडाउन ने मध्यम वर्गीय और निचले तबके के आदमी का जीना मुश्किल हो गया है. बेरोजगारी का आलम यह है कि मजदूर तबके के लोगों को परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी एवरेस्ट फतेह करने जैसा लगने लगा है. आगरा के थाना सदर क्षेत्र में एक ऐसे ही परिवार की 5 साल की मासूम बेटी की भुखमरी और इलाज के अभाव में कल मौत हो गयी है. परिवार अभी भी उसकी मौत के गम से ज्यादा रोटी की आस में टकटकी लगाए आने- जाने वालों की ओर देख रहा है. इन सबके बीच सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है, उसके पड़ोस में रहने वाले लोग भी मजदूरी करके जैसे-तैसे पेट पाल रहे हैं. मामले में कोई भी जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.
लाकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के पलायन के दौरान उनको हुई परेशानी से पूरा देश वाकिफ है. उस दौरान लोगों ने पैदल जा रहे प्रवासियों की दिल खोल कर मदद भी की है. मगर अब जब शहर में रहने वाले निचले तबके के मजदूर परिवार बेरोजगारी और भुखमरी से मर रहे हैं तो उनकी मदद को कोई आगे नहीं आ रहा है.
दिल झकझोर देने वाला यह मामला आगरा के थाना सदर अंतर्गत नैनाना जाट ग्राम पंचायत के नगला विधि चंद का है. यहां पप्पू सिंह पुत्र स्व मीलाल सिंह अपने पैतृक मकान में पत्नी शीला देवी,15 साल की बेटी सोनिया,दस साल के बेटे पवन और पांच साल की मासूम बेटी सोनिया के साथ रहता था. पहले पप्पू फिटर (जूता बनाने का काम) का कारीगर था. पर तबियत खराब होने पर वो अब काम करने के लायक नहीं है. परिवार की जिम्मेदारी उसकी पत्नी शीला बेलदारी (मजदूरी) करके निभा रही थी. लाकडाउन के बाद से जब मजदूरी मिलना बंद हो गया तो मोहल्ले वालों ने हाथ आगे बढ़ाए और घर का बचा खुचा खाना देकर उनका जीवन बचाये रखा.
जब तक अनलॉक हुआ तब तक आस पड़ोस के लोगों के पास भी इतनी व्यवस्था नहीं रही कि वो रोज परिवार को भोजन दिला सकें. इसके बाद परिवार की हालत बिगड़ती गई. हालात ऐसे हो गए कि कई कई दिन परिवार को फांका करना पड़ने लगा. पैसों के अभाव में मासूम बेटी सोनिया के बीमार होने पर परिवार उसका इलाज तो दूर उसे रोटी तक नहीं खिला पा रहा था.
इस बीच बीते गुरुवार को शीला को बेलदारी का काम मिल गया. शीला खुशी खुशी काम करने गयी ताकि मजदूरी मिलने पर वो बीमार बेटी का इलाज करवा सके. मजदूरी से वापस आने पर रात हो गयी तो उसने मजदूरी के पैसे से चूल्हा जलाया और परिवार के पेट की आग बुझाई. सुबह वो बच्ची को किसी डॉक्टर को दिखाती इससे पहले ही उसकी बेटी बीमारी के चलते जिंदगी की जंग हार गई. पड़ोसियों का कहना है कि पिछले पांच माह से अधिक से लोग परिवार की मदद कर रहे थे, पर यहां रहने वाले भी मजदूर लोग हैं और हर बार व्यवस्था उनके बस की नहीं थी.
परिवार के पास बस्ती में एक घर है और उस पर दादा ईंटों की छत डाल गए थे. बिजली काफी समय पहले काटी जा चुकी है. पढ़े लिखे न होने के कारण परिवार के पास आधार कार्ड भी नहीं है. पड़ोसियों का आरोप है कि प्रधान राजेन्द्र सिंह लाकडाउन में घर से बाहर ही नहीं निकले. हम लोगों ने कोशिश करी कि इनका अस्थाई राशन कार्ड बन जाये पर प्रधान से कई बार गुहार लगाने पर भी उन्होंने कोई मदद नहीं की. आज बच्ची की मौत की जानकारी होने पर कुछ नेता लोग आए पर उन्होंने मदद करने की जगह सिर्फ मदद का आश्वासन देकर इतिश्री कर ली. पड़ोसियों ने अब आपस में चंदा कर उनके लिए भोजन का इंतजाम कर दिया है. यह भोजन कितने दिन चलेगा और उसके बाद परिवार का क्या होगा यह जवाब किसी के पास नहीं है.
उक्त मामले में प्रधान राजेन्द्र सिंह का कहना है कि उनके पास जो भी राशन कार्ड के लिए आया है, उसने खुद उनके प्रार्थनापत्र पर मोहर लगवाकर उनके कागज जमा करवाये हैं. हालांकि, इस परिवार के बारे में उन्हें भी कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि वे परिवार से मुलाकात कर उनकी हरसंभव मदद का प्रयास करेंगे.
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