पेशे से वकील मॉरिस सैमुअल उन लोगों को फंसाता था, जिनके जमीनी विवाद के केस शहर की सिविल कोर्ट में पेंडिग थे. वो अपने मुवक्किलों से केस सुलझाने के लिए फीस लेता था. वो अपने मुवक्किलों को गांधीनगर में अपने ऑफिस में बुलाता था, इस ऑफिस को अदालत की तरह डिजाइन किया गया था.
फर्जी कोर्ट में मॉरिस लोगों के केस से जुड़ी दलीलें सुनता था फिर एक ट्रिब्यूनल के अधिकारी के रूप में आदेश पारित करता था. इस दौरान उसके साथ अदालत के कर्मचारी और वकील के रूप में वहां खड़े रहते थे ताकि लोगों को लगे कि कार्रवाई असली है. इस तरह मॉरिस करीब 11 मामलों में अपने पक्ष में आर्डर पारित कर चुका है.
कैसे हुआ फर्जी कोर्ट का खुलासा?
अहमदाबाद के भादर में सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट के रजिस्ट्रार हार्दिक देसाई की वजह से फर्जी कोर्ट और नकली जज मॉरिस सैमुअल क्रिश्चिन के फर्जीवाड़े का खुलासा हो पाया है. उन्होंने ही आरोपी के खिलाफ कारंज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज करवाया. 2019 में आरोपी मॉरिस ने अपने मुवक्किल के पक्ष में एक आदेश पारित किया था, जो जिला कलेक्टर के अधीन एक सरकारी जमीन से जुड़ा था. उसके मुवक्किल की तरफ से दावा किया गया कि पालडी इलाके की जमीन के लिए सरकारी दस्तावेजों में अपना नाम दर्ज करवाने की. मॉरिस ने कहा कि सरकार ने उसे मध्यस्थ बनाया है.
इसके बाद मॉरिस ने फर्जी अदालती कार्रवाई करते हुए मुवक्किल के पक्ष में आदेश दिया. मामले में क्लेक्टर को जमीन के दस्तावेजों में मुवक्किल का नाम दर्ज करने का आदेश दिया और इसके साथ ही वो आदेश अटैच किया जो उसकी तरफ से जारी किया गया था. फिर कोर्ट के रजिस्ट्रार हार्दिक देसाई को पता चला कि मॉरिस न तो मध्यस्थ है और न ही उसकी ओर से जारी किया गया आदेश असली है. ऐसे में रजिस्ट्रार ने करंज पुलिस स्टेशन में आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज करवाया.
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