Gujarat News: गुजरात में मुफ्त घोषणाओं को लेकर क्या कहते हैं अर्थशास्त्र? आंकड़ों से समझिये इसके पीछे की गणित
Gujarat Election: गुजरात में चुनाव के मद्देनजर तमाम पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए कई वादे कर रही हैं. अर्थशास्त्र से जानिए कि मुफ्त की घोषणा करने पर अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ता है.
Gujarat Assembly Election: गुजरात की बीजेपी सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए 12,000 रुपये प्रति माह तक की आय वाले वेतनभोगियों को पेशेवर कर से छूट दी है. इससे राज्य के खजाने को सालाना 108 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. साथ ही किसानों को 1,250 करोड़ रुपये की ब्याज राहत दी है. सरकार छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा के लिए लैपटॉप खरीदने के लिए 40,000 रुपये की वित्तीय सहायता भी देगी. पार्टी के कोषाध्यक्ष और चार्टर्ड अकाउंटेंट कैलाश गढ़वी ने कहा, "आम आदमी पार्टी का एक भी वादा मुफ्त की रेवड़ी नहीं है, प्रत्येक अर्थमिति, सांख्यिकी और तर्क पर आधारित है और इसका राज्य के खजाने पर बहुत कम प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा."
मुफ्त बिजली के पीछे की गणित को समझिए
गढ़वी ने 600 यूनिट मुफ्त बिजली के पीछे का गणित समझाया. 1.65 करोड़ घरेलू उपभोक्ता हैं, जिनमें 35 से 36 लाख निजी कंपनियों के उपभोक्ता हैं. यदि राज्य बिजली वितरण कंपनियों के उपभोक्ताओं को 600 यूनिट मुफ्त दी जाती हैं, तो इससे राज्य के खजाने पर सालाना 6,200 करोड़ रुपये खर्च होंगे. आप ने इन नुकसानों को पूरा करने की योजना बनाई है. निजी बिजली कंपनियों के ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन (टीएंडडी) का नुकसान 8 से 10 प्रतिशत है, जबकि सरकारी कंपनियों का टीएंडडी नुकसान 18 से 20 प्रतिशत के बीच है, अगर इसे 10 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा, तो यह मुफ्त बिजली से होने वाले नुकसान को पूरा करेगा.
गढ़वी ने संविधान के अनुच्छेद 39 (ए) का दिया हवाला
गढ़वी संविधान के अनुच्छेद 39 (ए) का हवाला दिया, जो राज्यों को नागरिकों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए कहता है और अनुच्छेद 45 जो राज्य को 14 साल की उम्र तक सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए कहता है. जब संविधान ने राज्यों से पूछा कि लोगों के कल्याण के लिए ये मुफ्त सेवाएं प्रदान करना, यह विकास विरोधी कैसे हो सकता है. अर्थशास्त्री इंदिरा हिर्वे का तर्क है कि वित्तीय बोझ या आर्थिक मुद्दों के नाम पर राज्य सामाजिक कल्याण से भाग नहीं सकता. वह दृढ़ता से इस बात की वकालत करती हैं कि प्रारंभिक शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मुफ्त दी जानी चाहिए, माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा और विशेष चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती कीमतों पर प्रदान की जानी चाहिए.
क्या कहते हैं अर्थशास्त्र?
उनके अनुसार, "बीजेपी या एनडीए सरकार को मुफ्त को लेकर बात करने का कोई अधिकार नहीं है, एनडीए ने औद्योगिक घरानों के 10 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए हैं और 5 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी और प्रोत्साहन दिया है." सूरत के सेंटर फॉर सोशल में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर गगन साहू ने कहा, कोई भी अमीरों के लिए सब्सिडी या वित्तीय सहायता की मांग या वकालत नहीं कर रहा है, लेकिन गरीबों के प्रति राज्य का कर्तव्य है और शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाएं मुफ्त में प्रदान करनी चाहिए. साहू का मत है कि इन दोनों जैसी सामाजिक सेवाओं को निजी क्षेत्र पर नहीं छोड़ा जा सकता है, इससे समाज में असमानता पैदा होगी. सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करना और सभी को समान अवसर मिले यह देखना राज्य का कर्तव्य है.
क्या बोले सरदार पटेल विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर?
उनसे असहमत होकर, सरदार पटेल विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर (अर्थशास्त्र) जिगर पटेल का मानना है कि सरकार को सब्सिडी बंद कर देनी चाहिए और मुफ्त में सेवाएं देनी चाहिए. उनके अनुसार, अगर यह जारी रहा तो यह बाकी समाज, व्यापार और उद्योग पर वित्तीय बोझ डालेगा. आप जितनी अधिक सब्सिडी या मुफ्त सेवाएं देंगे, राज्य का खर्च बढ़ेगा; खर्च को पूरा करने के लिए, राज्य को व्यक्तियों, व्यापार और उद्योगों पर अधिक कर लगाना होगा. यह काउंटर प्रोडक्टिव साबित होगा, क्योंकि बढ़ते खर्च के खिलाफ अगर राजस्व में वृद्धि नहीं हुई तो राज्य को विकास पर खर्च में कटौती करनी होगी, इसलिए लंबे समय में सब्सिडी और मुफ्त सेवाएं विकास विरोधी हैं.
ये भी पढ़ें: