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Gujarat Politics: गुजरात में 82 सीटों के चुनाव पर असर डाल सकता है कोली समुदाय, फिर भी राजनीति में आवाज कम, क्या है वजह?
Gujarat Election: गुजरात के कुल आबादी में का एक तिहाई हिस्सा कोली समुदाय का है. फिर भी प्रमुख राजनीतिक विमर्श और राज्य की राजनीति में उनका प्रभाव बहुत कम है.
![Gujarat Politics: गुजरात में 82 सीटों के चुनाव पर असर डाल सकता है कोली समुदाय, फिर भी राजनीति में आवाज कम, क्या है वजह? gujarat election 2022 One-third vote share of Koli community in Gujarat but still little voice in Gujarat politics Gujarat Politics: गुजरात में 82 सीटों के चुनाव पर असर डाल सकता है कोली समुदाय, फिर भी राजनीति में आवाज कम, क्या है वजह?](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/17/052fe33361807fa0a1d637901cf79efb_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Gujarat Politics : गुजरात की आबादी का एक तिहाई हिस्सा कोली समुदाय का है और राज्य में उनका वोट शेयर बराबर है. वे 44-45 सीटों पर अपने दबदबे के साथ 82 विधानसभा सीटों के चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं, फिर भी प्रमुख राजनीतिक विमर्श और राज्य की राजनीति में उनका प्रभाव बहुत कम है. समुदाय के युवा नेताओं के अनुसार, यह समुदाय में कम साक्षरता दर और समुदाय के भीतर सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर उप-जाति आधारित विभाजन का परिणाम है, क्योंकि समुदाय के बड़े लोगों का ध्यान अपनी व्यक्तिगत प्रगति पर केंद्रित हैं, न कि संपूर्ण समुदाय के उत्थान पर.
युवाओं ने विभाजन के खिलाफ लड़ने का फैसला किया
न्यू समाज कोली क्रांति सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणजी सोलंकी ने कहा, "समुदाय के युवा नेता समुदाय के सदस्यों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भीतर के प्रभावशाली लोग उन्हें तलपदा कोली, चुवालिया कोली, केडिया कोली, कोली पटेल आदि उप-जातियों के आधार पर विभाजित कर रहे हैं. लेकिन अब युवाओं ने इस विभाजन के खिलाफ लड़ने का फैसला किया है, क्योंकि हमारा अस्तित्व और राजनीति में महत्व दांव पर है."
उन्होंने दो उदाहरणों का हवाला दिया : हाल ही में, देवभूमि द्वारका जिले के जमरावल नगरपालिका चुनावों में कोली समुदाय के सदस्यों ने व्यवस्था परिवर्तन पार्टी (वीपीपी) के चिह्न् पर चुनाव लड़ा था. उसे प्रचंड बहुमत मिला. कुल 33 सीटों में से 31 कोली समुदाय और वीपीपी के उम्मीदवारों के खाते में गईं. इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस की हार हुई.
सोलंकी ने दूसरे उदाहरण का हवाला देते हुए कहा, "18 मई को हम सुरेंद्रनगर में एक कोली चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रायोजित शैक्षणिक संस्थान की आधारशिला रखेंगे. यह स्कूली शिक्षा पूरी कर चुके छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक कोचिंग सेंटर होगा. समुदाय ने फैसला किया है कि इस अवसर पर आमंत्रित किसी भी राजनीतिक नेता को मंच पर नहीं बैठाया जाएगा. वे अन्य सामान्य समुदाय के सदस्यों के साथ दर्शक-दीर्घा में होंगे."
इन शहरों में कोली समुदाय का प्रभुत्व
राजकोट के कोली ठाकोर सेना के अध्यक्ष रणछोड़ उघरेजा कहते हैं, "राजकोट, सुरेंद्रनगर, अहमदाबाद, बोटाद व मोरबी जिलों में सौराष्ट्र तट के साथ और दक्षिण गुजरात के भरूच, सूरत, वलसाड, नवसारी शहरों में कोली समुदाय का कई विधानसभा सीटों पर प्रभुत्व है. यदि राजनीतिक दल कोली उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारते हैं तो वे पराजित हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, क्योंकि समुदाय में एकता की कमी है. विभिन्न समूह अब पूरे समुदाय को एकजुट करने के लिए काम कर रहे हैं."
उघरेजा और अन्य समुदाय के सदस्यों को एहसास है कि "समुदाय को एकजुट करने का तरीका साक्षरता और सामाजिक-आर्थिक विकास है. इसलिए समुदाय के भीतर समूह इस पर काम कर रहे हैं, शैक्षिक संस्थानों की स्थापना कर रहे हैं, अगली पीढ़ी के लिए शिक्षा की जरूरत के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं. एक बार यह और वित्तीय स्थिरता हासिल हो जाने के बाद समुदाय को एकजुट करना आसान होगा."
'14-15 सीटों पर उतारते हैं उम्मीदवार'
तीन दशकों से अधिक समय से समुदाय की सेवा करने वाले जेठाभा जोरा को डर है, "दो दिग्गजों, अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष अजीत पटेल और पूर्व मंत्री कुंवरजी बावलिया के बीच रस्साकशी तेज हो गई है और इसका आगामी विधानसभा चुनावों में राजनीतिक महत्व पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा."
कोली समुदाय के एक नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "राजनीतिक दल मुश्किल से 15 से 20 उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं. हालांकि यह समुदाय 44 से 45 सीटों पर निर्णायक है, लेकिन नेताओं के बीच आंतरिक लड़ाई समुदाय के अधिकार और उचित प्रतिनिधित्व के लिए लड़ने को प्राथमिकता देती है."
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