Bilkis Bano: गुजरात में 2002 के दंगों के बिलकिस बानो मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी 11 दोषियों को 2008 में दोषी ठहराए जाने के समय गुजरात में प्रचलित माफी नीति के तहत रिहा किया गया है. एक शीर्ष अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी और मामले में केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के उल्लंघन के दावों को खारिज कर दिया. गुजरात सरकार के गृह विभाग के वरिष्ठ अधिकारी का यह बयान विपक्ष के उन दावों के आलोक में आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि गोधरा दंगा के बाद गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात अन्य सदस्यों की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषियों को माफी केंद्र के दिशा निर्देश का उल्लंघन है.


इस साल जून में केंद्र सरकार ने आजादी का अमृत महोत्सव के जश्न के मद्देनजर कैदियों की रिहाई से संबंधित विशेष दिशा निर्देश राज्यों को जारी किये थे. इसमें बलात्कार के दोषियों के लिये समय पूर्व रिहाई की व्यवस्था नहीं थी. हालांकि, गुजरात के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजकुमार के अनुसार, उच्चतम न्यायालय ने सरकार से कहा था कि वह राज्य की माफी नीति के तहत इन 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर विचार करे, जो उस वक्त प्रभावी था, जब निचली अदालत ने ममाले में उन्हें दोषी ठहराया था.


कुमार ने बताया, ‘‘इन 11 लोगों को मुंबई की एक विशेष अदालत ने 2008 में दोषी करार दिया था. इन लोगों को दोषी करार दिये जाने के दौरान, गुजरात में माफी नीति की व्यवस्था लागू थी, जो 1992 में प्रभाव में आयी थी. जब मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंचा, तो शीर्ष अदालत ने हमें 1992 की नीति के तहत उनकी रिहाई के बारे में निर्णय लेने का निर्देश दिया, क्योंकि 2008 में जब उन्हें दोषी करार दिया गया था तब राज्य में यह प्रचलित था.’’ वरिष्ठ नौकरशाह ने बताया कि गुजरात में 2014 में नयी और संशोधित माफी नीति प्रभाव में आयी थी, जो अब भी प्रभावी है . उन्होंने बताया कि दोषियों की श्रेणियों के बारे में विस्तृत दिशानिर्देश हैं जिनमें यह बताया गया है कि किन्हें राहत दी जा सकती है और किन्हें नहीं.


भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने बताया, ‘‘चूंकि, 2008 में दोषसिद्धि हुयी थी, उच्चतम न्यायालय ने 1992 की माफी नीति के तहत हमें इस मामले में विचार करने का निर्देश दिया, जो 2008 में प्रभाव में था. उस नीति में विशेष रूप से यह स्पष्ट नहीं था कि किसे माफी दी जा सकती है और किसे नहीं. वर्ष 2014 में आयी नीति की तुलना में वह उतनी विस्तृत नहीं थी.’’ उन्होंने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के मौके पर केंद्र सरकार की ओर से समय पूर्व रिहाई के बारे में जारी किए गए दिशानिर्देश बिलकिस बानो मामले में लागू नहीं होते हैं, क्योंकि शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को 1992 की नीति को ध्यान में रखने का निर्देश दिया था.


केंद्र सरकार ने हाल में एक योजना शुरू की है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आजादी का अमृत महोत्सव मनाने की योजना का हिस्सा है. गृह मंत्रालय के दिशा निर्देश के अनुसार, ऐसे महिला और तृतीय लिंगी (ट्रांसजेंडर), 60 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष और शारीरिक रूप से अक्षम कैदी, जिन्होंने अपनी कुल सजा के आधे से अधिक समय की सजा काट चुके हैं उन्हें रिहा करने की व्यवस्था है.


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