Gujarat HC: गुजरात हाईकोर्ट ने मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली एक जनहित याचिका के जवाब में मंगलवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया. याचिकाकर्ता का कहना है कि लाउडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण पैदा करता है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.


क्या है पूरा मामला?


दरअसल गांधीनगर के सेक्टर 5सी के रहने वाले धर्मेंद्र प्रजापति ने शिकायत की कि उनके पड़ोस में मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए बहुत से लोग नहीं आते हैं, लेकिन फिर भी मुअज्जिन दिन में पांच बार अज़ान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने दावा किया कि इससे बड़ी असुविधा होती है और आस-पास रहने वाले लोगों को परेशानी होती है. लोगों को शांति से रहने का अधिकार है.


चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील धर्मेश गुर्जर से पूछा कि लाउडस्पीकर की आवाज कितनी होनी चाहिए. वकील ने दिशानिर्देशों का हवाला दिया और कहा कि अनुमेय सीमा 80 डेसिबल है, लेकिन अज़ान के दौरान 200 डेसिबल से अधिक रहता है.


शादी-जुलूसों के बारे में भी पूछा गया


अदालत ने शादी के जुलूसों और अन्य उत्सवों के दौरान पैदा होने वाले ध्वनि प्रदूषण के बारे में भी पूछा. इसपर वकील ने जवाब दिया कि एक व्यक्ति के जीवन में एक बार शादी का अवसर आता है और तेज संगीत बजाना समझा जाता है, लेकिन जो लोग इस्लाम को नहीं मानते हैं, उनके लिए दिन में पांच बार लाउडस्पीकर की आवाज ध्वनि प्रदूषण है.


इलाहाबाद HC के फैसले का भी उल्लेख


याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मई 2020 के फैसले का भी उल्लेख किया है जिसमें अदालत ने कहा था कि अज़ान निश्चित रूप से इस्लाम का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है, लेकिन माइक्रोफोन और लाउड-स्पीकर का उपयोग एक आवश्यक और अभिन्न अंग नहीं है.


कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए जनहित याचिका में दावा किया गया है कि स्थानीय अधिकारियों की अनुमति के बिना लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कानून का उल्लंघन है. जनहित याचिका में कहा गया है, मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करते हुए नमाज अदा करने के लिए कोई वैध लिखित अनुमति नहीं ली गई है.


याचिका में इस बात का भी जिक्र


इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का भी हवाला दिया गया जिसमें कहा गया था कि कोई भी धर्म यह नहीं बताता है कि प्रार्थना दूसरों की शांति भंग करके की जाए और न ही यह उपदेश देता है कि वे आवाज बढ़ाने वाले या ढोल की थाप के माध्यम से होनी चाहिए. याचिकाकर्ता ने आगे दावा किया कि लाउडस्पीकर का उपयोग इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है क्योंकि पुराने दिनों में जब तकनीक मौजूद नहीं थी, अज़ान पढ़ी जाती थी और मस्जिदों में नियमित रूप से नमाज अदा की जाती थी.


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