Morbi  bridge Collapse: गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को मोरबी नगरपालिका को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने पुल की 'गंभीर स्थिति' के बारे में चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया और टिकटों के जरिए मिलने वाली राशि पर अपना ध्यान केंद्रित किया. मोरबी में 30 अक्टूबर को एक पुल ढह गया था जिसमें 135 लोगों की मौत हो गई थी.


नागरिक निकाय और अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड कंपनी के बीच संवाद का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि नागरिक निकाय का ध्यान कंपनी के साथ अनुबंध को बनाए रखने पर था न कि पुल की मरम्मत पर, जिसकी स्थिति जर्जर बताई गई थी. अजंता कंपनी को ब्रिटिश कालीन पुल के रखरखाव व संचालन का ठेका दिया गया था.


अदालत ने कहा कि कोई विशिष्ट लिखित समझौता नहीं था और फिर भी कंपनी ने पुल का रखरखाव और संचालन जारी रखा जिससे स्पष्ट होता है कि मोरबी नगरपालिका और कंपनी किस प्रकार स्थिति से निपट रही थी. मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री की खंडपीठ ने मोरबी पुल हादसे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई की और कहा कि पीड़ितों और गंभीर रूप से घायल व्यक्तियों को दिया जा रहा मुआवजा 'काफी कम' है.


कंपनी ने लिखा था नगर पालिका को पत्र
पीठ ने अपने आदेश में कंपनी द्वारा लिखे गए पत्र का जिक्र करते हुए कहा, '29 दिसंबर, 2021 को, कंपनी ने नगर निकाय को लिखा था - 'सर, आप इस बात से अवगत हैं कि अस्थायी मरम्मत करने के बाद, पुल की स्थिति गंभीर है. किसी भी समय , कोई दुर्घटना हो सकती है. हमने इस संबंध में आपसे बार-बार अनुरोध किया है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है.’’


वहीं पुलिस के अनुसार, ओरेवा कंपनी द्वारा निलंबन पुल की बहाली के लिए फर्म को उप-अनुबंधित किया गया था, जो 30 अक्टूबर को गिर गया था, जिसमें 55 बच्चों सहित 135 लोगों की मौत हो गई थी. एक नवंबर को, दो आरोपियों ने एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि वे केवल उन्हें सौंपे गए कार्य जैसे वेल्डिंग, बिजली की फिटिंग आदि को पूरा करने में शामिल थे.


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