Gita in School Syllabus: गुजरात में सरकार ने स्कूल के सिलेबस में गीता को शामिल करने की बात कही थी. इसको लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका पर कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. जमीयत उलमा-ए-हिंद, गुजरात ने स्कूलों में गीता पढ़ाने के गुजरात सरकार के प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि, केवल एक धर्म से संबंधित धार्मिक पाठ को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है.
सरकार के फैसले को बताया संविधान के खिलाफ
वरिष्ठ वकील मिहिर जोशी ने कहा कि सरकार के फैसले को चुनौती देने के लिए आधार यह है कि यह संवैधानिकता के खिलाफ है, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत है और राज्य सरकार के पास शिक्षा पाठ्यक्रम निर्धारित करने का अधिकार नहीं है.
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याचिकाकर्ता ने दिया ये हवाला
याचिकाकर्ता ने स्कूली सिलेबस में गीता का विरोध करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 का हवाला दिया. वकील ने तर्क दिया कि संवैधानिक प्रावधान अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं. वे यह भी प्रदान करते हैं कि सरकार द्वारा वित्त पोषित एक शिक्षा संस्थान को कोई धार्मिक निर्देश जारी नहीं किया जाएगा.
जनहित याचिका में भारत की समग्र संस्कृति और विविधता को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर जोर दिया गया है न कि किसी धर्म को प्राथमिकता देने पर. वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि गीता निश्चित रूप से स्कूल में पढ़ाई के लिए निर्धारित की जा सकती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या भारतीय संस्कृति में एक धर्म को प्राथमिकता दी जा सकती है.
क्या बोले मुख्य न्यायाधीश?
मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री की पीठ ने टिप्पणी की कि सरकार ने यह नहीं कहा है कि "कोई अन्य धार्मिक पुस्तक शामिल न करें". एडवोकेट जोशी ने जोर देकर कहा, "लेकिन यह एकमात्र किताब है जिसे निर्धारित किया गया है, और यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के खिलाफ है." वकील ने कोर्ट से सरकारी प्रस्ताव पर रोक लगाने की गुहार लगाई, लेकिन कोर्ट नहीं माना. कोर्ट ने सरकार से 18 जुलाई तक जवाब मांगा है.
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