गुजरात में विपक्षी कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को घेरने के प्रयास के तहत सत्तारूढ़ दल के प्रमुख ओबीसी नेताओं को मंगलवार को गांधीनगर में आयोजित धरने में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है.


कांग्रेस के इस धरने का उद्देश्य अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित विभिन्न मुद्दों को उजागर करना है, जिसमें उनके लिए स्थानीय निकायों में आरक्षण की आवश्यकता भी शामिल है.


गुजरात में कांग्रेस विधायक दल के नेता अमित चावड़ा ने सोशल मीडिया के माध्यम से, बीजेपी के कई ओबीसी विधायकों, सांसदों और मंत्रियों को गांधीनगर के सत्याग्रह छावनी मैदान में सुबह 10:30 बजे आयोजित 'स्वाभिमान धरने' में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.


विधानसभा अध्यक्ष शंकर चौधरी को निमंत्रण दिया
अन्य लोगों के अलावा, लोकसभा सदस्य एवं केंद्रीय मंत्री महेंद्र मुंजपारा और देवुसिंह चौहान, गुजरात के मंत्री कुंवरजी बावलिया, जगदीश विश्वकर्मा और परषोत्तम सोलंकी, विधायक अल्पेश ठाकोर और गुजरात विधानसभा अध्यक्ष शंकर चौधरी को निमंत्रण दिया गया है.


गुजरात कांग्रेस ने बीजेपी पर स्थानीय निकायों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. चावड़ा के अनुसार, विरोध प्रदर्शन ‘‘ओबीसी अनामत बचाओ समिति’’ नामक एक गैर-राजनीतिक संगठन द्वारा आयोजित किया गया है, जिसका गठन पिछले साल समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाने के लिए किया गया था.


कांग्रेस विधायक ने बीजेपी नेताओं को आमंत्रित करते हुए अपने संदेश में कहा, ‘‘आप सभी ओबीसी समुदाय से आते हैं, जिसके साथ लगातार अन्याय और भेदभाव हो रहा है. चूंकि आप सरकार में हैं, इसलिए ओबीसी को आपसे बहुत उम्मीदें हैं. इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप समुदाय के प्रति अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के हिस्से के रूप में इस 'स्वाभिमान धरने' में शामिल हों.’’


विपक्षी दल का मुख्य दलील स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण पर निर्णय लेने के वास्ते पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ का पता लगाने के लिए बीजेपी सरकार द्वारा पिछले साल गठित एक आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को सार्वजनिक करने में 'देरी' है.


आयोग ने रिपोर्ट इस साल अप्रैल में सौंपी थी. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि चूंकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है, इसलिए राज्य में कई स्थानीय निकायों के चुनाव रोक दिए गए हैं.


बीजेपी सरकार ने स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ के बारे में डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने के लिए पिछले साल जुलाई में गुजरात उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के एस झावेरी की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था, जो राज्य में स्थानीय स्वशासन संस्थानों के चुनावों में ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए आवश्यक कवायद थी.


10 प्रतिशत सीटें ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित
उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार, प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटें विस्तृत अध्ययन के बाद आयोग की सिफारिशों के अनुसार तय की जाएंगी.


इससे पहले, ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं जैसे स्थानीय निकायों में 10 प्रतिशत सीटें ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रखी जाती थीं.


कांग्रेस नेता चावड़ा ने कहा, ‘‘हम राज्य में ओबीसी के राजनीतिक अस्तित्व को समाप्त करने की साजिश देखते हैं. (आयोग की) रिपोर्ट अब चार महीने से सार्वजनिक नहीं की गई है. परिणामस्वरूप, 7,100 ग्राम पंचायतों, 75 नगर पालिकाओं, दो जिला पंचायतों और 18 तालुका पंचायतों के चुनाव रोक दिए गए हैं. हम मांग करते हैं कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए और स्थानीय स्वशासन निकायों में 27 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित रखी जाएं.’’


चावड़ा ने जाति आधारित जनगणना और ओबीसी के कल्याण के लिए राज्य के कुल बजट का 27 प्रतिशत आवंटन की भी मांग की. उन्होंने राज्य के सहकारी निकायों में ओबीसी पर बजट खर्च और ओबीसी, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण की निगरानी के लिए उप-योजना समितियों के गठन की मांग की.