Gujarat Riots: गुजरात दंगा मामले में कोर्ट ने कहा- 'किसी पर हत्या का आरोप लगाने से पहले शव होना चाहिए', पढ़ें पूरी खबर
Gujarat Godhra Case: गुजरात कोर्ट ने गुजरात दंगा के एक मामले में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा, पुलिस के पास ‘‘एक शव या उससे जुड़ा कोई सबूत होना चाहिए.’’
Gujarat Court Verdict: गुजरात की एक कोर्ट ने 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के एक मामले में सभी आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि हत्या का आरोप लगाते समय पुलिस के पास कम से कम ‘‘एक शव या उससे जुड़ा कोई सबूत होना चाहिए.’’ इस मामले में लापता 17 व्यक्तियों में से किसी का भी शव नहीं मिला था. गुजरात के पंचमहाल जिले के हलोल कस्बे की कोर्ट ने मंगलवार को पारित अपने आदेश में ‘‘कॉर्पस डेलिक्ती (अपराध से संबंधित शव के बारे में लैटिन वाक्यांश)’’ के नियम का हवाला दिया और कहा कि यह सभी अपराधों, विशेष तौर पर किसी हत्या की जांच में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है.
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि जब तक शव नहीं मिल जाता तब तक किसी को दोषी नहीं ठहराना एक सामान्य नियम है. गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 27 फरवरी, 2002 को पंचमहाल के देलोल गांव में भड़की हिंसा में 150 से 200 लोगों की भीड़ ने अल्पसंख्यक समुदाय के दो बच्चों सहित 17 सदस्यों पर कथित तौर पर हमला करके उन्हें मार डाला था. पुलिस ने इस मामले में 22 आरोपियों को गिरफ्तार किया था और 2004 में उनके खिलाफ दो अलग-अलग आरोपपत्र दायर किए थे. इनमें से पहले आरोपपत्र में तीन और दूसरे आरोपपत्र में 19 का नाम था.
सबूत के अभाव में आरोपी बरी
हलोल की कोर्ट ने मंगलवार को दूसरे आरोपपत्र में 19 में से 14 आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया. इस मामले के आठ अन्य आरोपियों की 18 साल से अधिक समय तक चले मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी और उनके खिलाफ मामला समाप्त कर दिया गया. सभी आरोपी 2006 से जमानत पर थे. पुलिस 17 लापता व्यक्तियों में से किसी के भी शव नहीं खोज सकी, अभियोजन पक्ष ने कोर्ट के समक्ष आरोप लगाया कि सबूत नष्ट करने के प्रयास में उनमें से कुछ को जिंदा जला दिया गया था और अन्य को हत्या के बाद मिट्टी का तेल और लकड़ी का उपयोग करके जला दिया गया था.
क्या बोले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हर्ष त्रिवेदी?
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हर्ष त्रिवेदी की कोर्ट ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि जांच के दौरान बरामद ‘‘पूरी तरह से जली हुई हड्डी के टुकड़ों’’ की डीएनए प्रोफाइलिंग भी नहीं की जा सकी. कोर्ट ने ‘‘कॉर्पस डेलिक्ती’’ के नियम का हवाला दिया और कहा कि यह सभी अपराधों पर लागू होता है, लेकिन यह हत्या की जांच में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘‘किसी पर हत्या का आरोप लगाने से पहले पुलिस के पास एक शव या उससे जुड़ा कम से कम एक सबूत होना चाहिए. जब कोई लापता हो जाता है और पुलिस के पास शव नहीं होता है या कोई सबूत नहीं होता, तो पुलिस आगे कैसे आगे बढ़ सकती है?’’
कोर्ट ने कहा, ‘‘यह एक सामान्य नियम है कि किसी को तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता है जब तक कि कॉर्पस डेलिक्ती नहीं हो, यानि जब तक कि मृत का शरीर नहीं मिल जाता.’’ सात जनवरी, 2004 को, जब एफएसएल (फोरेंसिक) विशेषज्ञ ने रिपोर्ट दी कि पूरी तरह से जले हुए हड्डी के टुकड़ों (जो कथित तौर पर लापता व्यक्तियों के थे) से कोई डीएनए प्रोफाइलिंग प्राप्त नहीं की जा सकती, ‘‘तो स्वत: रूप से कॉर्पस डेलिक्ती के नियम पर विचार करने की आवश्यकता है.’’ कोर्ट ने कहा कि पुलिस को कथित हत्या पीड़ितों के शव नहीं मिले, न ही यह अपराध करने में मिले हथियारों की भूमिका या अपराध के स्थान पर आरोपी व्यक्तियों की मौजूदगी को स्थापित कर सकी.
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी स्थापित नहीं कर सका कि भीड़ ने अपराध के स्थान तक मुस्लिम समुदाय के सदस्यों का पीछा किया, न ही किसी ज्वलनशील तरल पदार्थ की उपस्थिति स्थापित की जा सकी. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि कुछ पीड़ितों को जलाकर मार डाला गया था और अन्य को हत्या के बाद जला दिया गया था. मामले के विवरण के अनुसार, एक मार्च, 2002 को, गोधरा ट्रेन अग्निकांड को लेकर देलोल और पड़ोसी गांवों से धारदार हथियारों और लाठियों से लैस 150-200 लोगों की भीड़ ने मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमला किया था.
एक खेत से मिले थे हड्डियों के अवशेष
अभियोजन पक्ष ने कहा कि लगभग दो हफ्ते बाद, एक राहत शिविर से 17 लोग लापता थे और उन पर भीड़ ने हमला किया था. उसने कहा कि उस साल मई में पुलिस ने गांव के पास एक खेत से कुछ हड्डियों के अवशेष बरामद किए थे. एक फोरेंसिक जांच के बाद, ये बात सामने आयी थी कि वे ‘‘जली हुई हड्डियां थीं.’’ पुलिस के अनुसार, धारदार हथियारों से लैस और मिट्टी तेल लिये लोगों की भीड़ ने 17 लोगों पर हमला किया गया और उन्हें जला दिया था. पुलिस ने बाद में 22 आरोपियों को गिरफ्तार किया और उनमें से तीन के खिलाफ 14 अप्रैल, 2004 को और 19 अन्य के खिलाफ 31 अगस्त, 2004 को आरोप पत्र दायर किया. दोनों मामलों में न्यायिक कार्यवाही एक साथ की गई.
मुकदमे के लंबित रहने के दौरान तीन आरोपियों की मृत्यु हो जाने के बाद गोधरा की एक कोर्ट ने पहले मामले को समाप्त कर दिया. दूसरे मामले को बाद में हलोल स्थानांतरित कर दिया गया था जिनमें 19 व्यक्ति आरोपी थे.