Gujrat Election: गुजरात में पिछले डेढ़ दशक में कांग्रेस के कम से कम 50 विधायक बीजेपी में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ चुके हैं. बीजेपी के दृष्टिकोण से वे पार्टी में शामिल हुए, क्योंकि वे सभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपनाए गए विकास के रोड मैप से प्रभावित थे. वहीं कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी ने पार्टी से बागी हुए नेताओं को मंत्री पद का लालच दिया था या फिर रिश्वत दी गई थी, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे गुजरात हारने के डर और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को धीमे जहर से मारने की दीर्घकालीन रणनीति का परिणाम मान रहे हैं.


वरिष्ठ पत्रकार मनोज करिया ने कहा कि गुजरात विधानसभा की वर्तमान अध्यक्ष निमाबेन आचार्य पहली थीं, जिन्होंने 2007 में कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में जाने का फैसला लिया. तब से अब तक 50 विधायक और कई नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. पिछले पांच वर्षों में (2017 के चुनावों के बाद से) कांग्रेस के 19 विधायक बीजेपी में शामिल हुए हैं, जिसके कारण 20 सीटों के लिए पांच बार उपचुनाव हुए. उन्होंने कहा कि 19 में से 15 ने 2020 से पहले पार्टी छोड़ दी थी. इनमें 11 उपचुनाव में फिर से चुने गए, दो चुनाव हार गए और तीन को बीजेपी ने टिकट से वंचित कर दिया.


2017 में राज्यसभा चुनाव से पहले 12 बीजेपी में शामिल हो गए थे शामिल 
2017 में राज्यसभा चुनाव से पहले करीब 14 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी थी और 12 बीजेपी में शामिल हो गए थे, लेकिन आम चुनाव में बीजेपी ने छह दलबदलुओं को टिकट नहीं दिया .उन्होंने चार को टिकट दिया और वे चुनाव हार गए. शंकर सिंह वाघेला कभी बीजेपी में शामिल नहीं हुए और उनके बेटे महेंद सिंह आम चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल नहीं हुए थे. राजनीतिक विश्लेषक कृष्णकांत झा का मानना है कि बीजेपी को पिछले दो विधानसभा चुनावों से राज्य में हार का डर सता रहा है. वह गुजरात को खोना बर्दाश्त नहीं कर सकती, इसलिए कांग्रेस के मौजूदा विधायकों को लुभा रही है, जो लंबे समय से अपनी सीटों पर जीत रहे हैं. ये ऐसे नेता हैं जो पार्टी के बल पर नहीं बल्कि अपने दम पर चुने जाते हैं.


बीजेपी के लिए बनी हुई है  करो या मरो वाली स्थिति
झा ने कहा कि बीजेपी ने गुजरात मॉडल पर देश में अपना साम्राज्य खड़ा किया है. जिस दिन बीजेपी गुजरात में हार जाएगी, इसका मतलब यह होगा कि राज्य में गुजरात मॉडल विफल हो गया है. इसलिए हर चुनाव में बीजेपी के लिए करो या मरो वाली स्थिति बनी हुई है.सत्ता विरोधी लहर को दूर करने और पार्टी को सत्ता में बनाए रखने के लिए इसके नेता विधायकों को लुभाने में लगे रहते हैं. राजनीतिक विश्लेषक दिलीप पटेल का मानना है कि कांग्रेस विधायकों को बीजेपी की ओर आकर्षित करना और फिर उन्हें बीजेपी के सिंबल पर मैदान में उतारना का वादा कर सीट जीतना सुनिश्चित करना, इससे राज्य और राष्ट्रीय नेताओं का काम आसान हो गया है.


बीजेपी के पक्ष में मतदान प्रतिशत कभी नहीं बढ़ा
पटेल ने कहा, अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वास्तव में एक कद्दावर नेता और प्रभावशाली व्यक्ति हैं, तो उन्हें पाला बदलने वाले विधायकों की जरूरत नहीं होगी. वह मार्केटिंग और अपने चारों ओर उत्साह के कारण एक मजबूत नेता साबित होते हैं. बीजेपी के पक्ष में मतदान प्रतिशत कभी नहीं बढ़ा. इसलिए पार्टी को बचाए रखने के लिए बीजेपी कांग्रेस विधायकों को पार्टी में ला रही हैं.झा ने कहा कि बीजेपी ने कांग्रेस से गैर-पटेल नेताओं के लिए और अधिक द्वार खोल दिए हैं, चाहे वह 2007 में निमाबेन आचार्य हों या 2022 के चुनावों से पहले नवीनतम भगदभाई बराड, मोहन सिंह राठवा या भावेश कटारा हों.


दोनों विश्लेषकों का मानना है कि राज्यसभा, लोकसभा या विधानसभा चुनाव के समय रणनीतिक रूप से ऐसा किया जाता है. इससे न केवल कांग्रेस की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि उसकी विश्वसनीयता को भी चोट लग रही है, इसलिए लोगों का कांग्रेस पर से भरोसा उठना शुरू हो गया है.


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