IIM Ahmedabad Update: ग्रामीण अर्थव्यस्था की रीढ़ समझी जाने वाली गायों को अनुत्पादक होने के बाद मालिकों की उपेक्षा का सामना करना पड़ा है, ऐसी ही गायों की मदद और देखभाल के लक्ष्य से देश के शीर्ष बिजनेस स्कूल भारतीय प्रबंध संस्थान-अहमदाबाद (आईआईएम-ए) ने मवेशियों के चेहरे की पहचान करने वाला टूल विकसित किया है. आईआईएम-ए के एक अध्ययन में बिना मालिक वाले गायों के लिए चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक का उपयोग करके एक मॉडल पेश किया गया है. इस प्रस्ताव के तहत, फेस रिकॉग्निशन टूल की मदद से ऐसे गायों की देखभाल के लिए दान देने वाले लोग देख सकेंगे उनके द्वारा दान में दी गईराशि का उपयोग कैसे और कहां किया जा रहा है.


इस मॉडल से क्या होगा फायदा?
आईआईएम-अहमदाबाद के शिक्षक अमित गर्ग और अन्य द्वारा लिखे गए शोध पत्र से पता चलता है कि दूध न देने वाली आवारा गायों के लिए चेहरे की पहचान तकनीक समेत एआई-आधारित मॉडल दाताओं को दान की रकम पर नजर रखने में मदद करेगा और उनके लिए देखभाल भी करेगा.


‘जीएयू मॉडल’, टेक प्लेटफॉर्म सहित, को इस साल जनवरी में गुजरात के वडोदरा में सजीव प्रदर्शन के लिए शुरू किया गया था. ‘गाय आधार उन्नति (जीएयू): उन्नत प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के माध्यम से गाय-आधारित अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण’ नाम के शीर्षक वाले शोध पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में इस मॉडल को लागू करने की योजना है.


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क्या है मशीन लर्निंग मॉडल?
सजीव प्रदर्शन के लिए एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और एक गोशाला को 1,000 गायों की सेवा करने के लिए चुना गया है. टेक मशीनरी लैब द्वारा किए गए शोध ने एक जीवित गाय या उसकी तस्वीर से गाय के चेहरे को पहचानने के लिए मशीन लर्निंग मॉडल बनाया है.


शोध पत्र के मुताबिक चेहरे को उन सभी गायों के लिए पहचाना जा सकता है जिनके लिए मॉडल को न्यूनतम सटीकता स्तर 92 प्रतिशत के साथ प्रशिक्षित किया जाता है. शोध पत्र में 20वीं पशुधन जनगणना के आधार पर कहा गया कि देश में 50 लाख आवारा गायें हैं और बूचड़खानों पर प्रतिबंध के बाद इनकी संख्या बढ़ रही है.


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