Gujarat HC: गुजरात हाईकोर्ट उस समय हैरान रह गया जब एक महिला याचिकाकर्ता ने अपनी नाबालिग बेटी को अपने साथ घर ले जाने से इनकार कर दिया. दरअसल महिला याचिकाकर्ता की बेटी नाबालिग है और वो एक शख्स के साथ फरार हो गई थी, जिसे पुलिस ने आखिरकार ढूंढ निकाला.


क्या है पूरा मामला? 


यह मामला साबरकांठा जिले के इदर कस्बे का है. इस मामले में बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक नाबालिग लड़की शामिल है. वह एक आदमी के साथ दो बार घर से भाग गई थी. जब लड़की पहली बार घर से भागी तो पुलिस ने परिवार की शिकायत पर दोनों को तलाश की और उन्हें ढूंढ निकाला. पकड़े जाने पर जिसके साथ नाबालिग लड़की भागी थी उस व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण यानी पॉक्सो अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.


हालांकि उसे जल्द जमानत मिल गई और जमानत मिलने के बाद वह फिर से नाबालिग लड़की को लेकर फरार हो गया. इसके बाद उस लड़की की मां ने बेटी के अपहरण और अवैध हिरासत का आरोप लगाते हुए अक्टूबर 2021 में उच्च न्यायालय का दरबाजा खटखटाया था.


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लड़की अपने परिवार वालों के साथ रहना चाहती है


हाईकोर्ट में मामला जाने के बाद फिर एक बार लड़की का पता लगाया गया. 28 जनवरी को जब उसे हाई कोर्ट में पेश किया गया तो उसकी मां वहां मौजूद नहीं थी. अगली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की मां और उसके बेटे ने शिकायत की कि पुलिस ने परिवार को सूचना नहीं दी.


हालांकि, वे उस लड़की से मिलने भी नहीं गए, जिसे आरोपी के चंगुल से छुड़ाने के बाद मेहसाणा के एक महिला सुरक्षा गृह में रखा गया था. अदालत ने उनके अनुचित व्यवहार का संज्ञान लिया. पिछले हफ्ते जब लड़की को दोबारा कोर्ट में पेश किया गया तो उसकी मां और भाई वहां मौजूद थे.


लड़की ने कोर्ट को बताया कि वह प्रोटेक्शन होम में नहीं रहना चाहती और अपने परिवार के साथ जाना चाहती है और पढ़ाई करना चाहती है. हालांकि, महिला बेटी को वापस लेने के लिए तैयार नहीं थी. अदालत ने कहा कि यह देखकर दुख हुआ कि महिला ने बेटी को साथ रखने से मना कर दिया. यह अदालत के लिए समझ से बाहर की चीज है कि वो ऐसा क्यों कह रही है.


याचिकाकर्ता और उसके वकील ने पुलिस जांच और पीड़िता को मेडिकल जांच के लिए नहीं भेजे जाने की शिकायत की. जब अदालत को बताया गया कि लड़की ने जांच कराने से इनकार कर दिया है, तो अदालत ने नाबालिग की सहमति लेने के लिए पुलिस की खिंचाई की और कहा कि पुलिस को पॉक्सो मामले में उसके माता-पिता की सहमति लेनी चाहिए थी.


जब महिला ने अपनी बेटी को वापस घर ले जाने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो उच्च न्यायालय ने महिला और उसके बेटे को लड़की को वापस लेने के लिए मनाने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता शालिन मेहता को न्याय मित्र नियुक्त किया और आखिर में लड़की को सुरक्षागृह भेजा गया.


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