अशोक तंवर की घर वापसी से किसे फायदा और किसे नुकसान? यहां समझें पूरा गणित
Haryana Election 2024: हरियाणा में गुरुवार को बड़ा सियासी घटनाक्रम देखने को मिला. बीजेपी नेता अशोक तंवर अचानक कांग्रेस में शामिल हो गए. 5 साल में तंवर 4 पार्टियां बदल चुके हैं.
Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार के आखिरी दिन बीजेपी नेता अशोक तंवर अचानक कांग्रेस में शामिल हो गए. महेंद्रगढ़ में आयोजित कांग्रेस की रैली के दौरान राहुल गांधी ने उन्हें पार्टी में शामिल किया. 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अशोक तंवर ने कांग्रेस का साथ छोड़ा था, लेकिन इस बार तंवर के अचानक पाला बदलने से कांग्रेस के साथ ही बीजेपी नेता भी हैरान है. क्योंकि शायद किसी को उम्मीद नहीं थी कि वे फिर पाला बदल लेंगे. अब सवाल खड़ा होता है अशोक तंवर की वापसी से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान होगा?
अशोक तंवर की वापसी से किसे नुकसान?
पांच साल बाद अशोक तंवर ने कांग्रेस में वापसी की है. इसके बाद लगातार ये सवाल खड़े हो रहे हैं कि उनकी वापसी से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? अभी वर्तमान में हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा-रणदीप सुरजेवाला गुट सबसे ज्यादा मजबूत है. हुड्डा को सियासी तौर पर तंवर के आने से कोई नुकसान होने की संभावना नहीं है, लेकिन पार्टी के अंदर उनका पावर जरूर बैलेंस होगा.
तंवर के आने से हुड्डा को बड़ा फायदा ये होगा कि सैलजा अब ज्यादा पॉलिटिकल प्रेशर उनके गुट पर नहीं बना पाएंगी. हुड्डा अगर तंवर को अपने साथ लेकर चलते हैं तो इस जाट और दलित समीकरण को भेदना आसान नहीं होगा.
वहीं दूसरी तरफ सिरसा सीट से कुमारी सैलजा और अशोक तंवर चुनाव लड़ते रहे हैं. ऐसे में तंवर की एंट्री से सैलजा अब संख्या को लेकर ज्यादा बार्गेनिंग नहीं कर पाएंगी. हालांकि, अपने कम समर्थकों को टिकट मिलने से सैलजा नाराज चल रही हैं. तंवर के आने के बाद सिरसा की राजनीति कौन संभालेगा ये भी सवाल खड़ा होगा. वहीं, सैलजा को फायदा यह होगा कि तंवर की वापसी से कांग्रेस में दलितों की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी.
वहीं, कुमारी सैलजा के कथित अपमान के मुद्दे पर बीजेपी ने कांग्रेस को खूब घेरा था. उन्हें उम्मीद थी कि ऐसा करने से हरियाणा के दलितों के वोट पाने में उन्हें जरूर सफलता मिल सकती है, लेकिन अब अशोक तंवर के पार्टी छोड़कर जाने से बीजेपी की फजीहत जरूर हुई है. हरियाणा में बीजेपी के पास अब कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है.
वहीं, ऐसा कहना भी मुनासिब नहीं होगा कि वो दलित मतदाता अब कांग्रेस के पक्ष में आ जाएंगे. क्योंकि लगातार पार्टियां बदलने की वजह से अशोक तंवर का राजनीतिक कद पहले जैसा नहीं रहा, जैसा पहले कांग्रेस में रहते हुए हुआ करता था.
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