Haryana Election Results 2024: हरियाणा में बीजेपी जीत गई है. और न सिर्फ जीती है, बल्कि 57 साल पुराना रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है. अब इस बंपर जीत के कोई तीन कारण बता रहा है, तो कोई पांच कारण गिना रहा है. कोई संघ की मेहनत का नतीजा बता रहा है, तो कुछ के लिए इस जीत की वजह प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी भी है. लेकिन अगर हरियाणा चुनाव के नतीजों को कायदे से देखें तो बीजेपी की जीत की कोई तीन-पांच वजह नहीं है. बीजेपी की जीत की सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है. और वो है जाट वोटर्स बनाम गैर जाट वोटर्स.


हरियाणा विधानसभा चुनाव की तैयारियों के दौरान कांग्रेस का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ जाट वोटर्स पर ही था. लिहाजा कांग्रेस ने दो बार के मुख्यमंत्री रहे और हरियाणा के सबसे कद्दावर जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर दांव लगाया. भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री का चेहरा तो कांग्रेस ने घोषित नहीं किया, लेकिन टिकट बांटने से लेकर चुनाव प्रचार अभियान की पूरी कमान भूपेंद्र हुड्डा के ही हाथ रही, जिसमें उन्हें साथ मिला उन्हीं के बेटे दीपेंद्र हुड्डा का.


कांग्रेस की रणनीति से निकला ये मैसेज


नतीजा ये हुआ कि कुमारी सैलजा का दावा हो या फिर रणदीप सुरजेवाला का या फिर प्रदेश अध्यक्ष उदयभान की बात हो, सबकी बात किनारे हो गई और जनता तक ये मैसेज साफ तौर पर चला गया कि हरियाणा में कांग्रेस की सत्ता में वापसी का मतलब जाट का वर्चस्व है.


इसके उलट बीजेपी ने हमेशा से जाट राजनीति के खिलाफ जाकर ही काम किया है. 2014 में जब बीजेपी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा की सरकार के खिलाफ माहौल बनाया और चुनाव में जीत दर्ज की, तो उसने मुख्यमंत्री के नाम के तौर पर गैर जाट चेहरा ही आगे किया. और तब मनोहर लाल खट्टर के तौर पर खत्री ब्राह्मण हरियाणा जैसे जाट बहुल राज्य का मुख्यमंत्री बना.


2019 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने गैर जाट का प्रयोग जारी रखा. और तब भी बीजेपी को नतीजों में ये दिखा कि जो भी जाट वोट हैं, वो या तो कांग्रेस के खेमे में गए हैं या फिर दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के पास. तो बीजेपी ने तय किया कि वो गैर जाट की ही राजनीति करेगी.


बीजेपी ने दिया दिया था मैसेज


तभी तो जब बीजेपी को लगा कि मनोहर लाल खट्टर को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है और उन्हें बदलने का वक्त आ गया है तो बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को केंद्र की राजनीति में उतारा. और उनकी जगह किसी जाट चेहरे पर नहीं बल्कि ओबीसी चेहरे पर ही दांव लगाया और नायब सिंह सैनी के तौर पर हरियाणा को उसका नया मुख्यमंत्री मिला.


नतीजा ये हुआ कि हरियाणा की जनता में साफ-साफ मैसेज गया कि अगर सरकार बीजेपी की बनती है, तो फिर उनका मुख्यमंत्री कोई गैर जाट ही होगा. बाकी जब नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ भी ली, तो आम धारणा यही कहती है कि जिस राज्य में चुनाव हैं, वहां के नेताओं को केंद्रीय कैबिनेट में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलता है. मोदी सरकार में हरियाणा को प्रतिनिधित्व तो मिला, लेकिन किसी जाट नेता को नहीं गैर जाट नेता को.


ओबीसी को किया लामबंद!


अब इस गैर जाट के दांव को कांग्रेस क्यों नहीं समझ पाई, ये तो कांग्रेस ही जाने, लेकिन आंकड़े की जमीनी समझ रखने वाली बीजेपी जानती थी कि हरियाणा में अगर जाट वोटर एकजुट भी होगा तो उनकी कुल आबादी 27 फीसदी से ज्यादा नहीं है. लेकिन नायब सिंह सैनी के जरिए अगर ओबीसी लामबंद होता है, तो उसकी कुल आबादी करीब-करीब 40 फीसदी की है. बाकी तो जाट वोट बैंक के अलावा कांग्रेस के चुनावी मुद्दे थे किसान, जवान और पहलवान. इन्हीं तीनों के ईर्द-गिर्द कांग्रेस और राहुल गांधी ने अपना पूरा कैंपेन बना रखा था, जिसके केंद्र में बेरोजगारी भी एक बड़ा मुद्दा थी.


आंदोलनों का बीजेपी ने कैसे किया मुकाबला?


चुनाव की शुरुआत से ठीक पहले इन सभी मुद्दों को बीजेपी की कमजोरी के तौर पर देखा गया. लेकिन चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपनी इसी कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत के तौर पर इस्तेमाल किया.  अब किसानों का जो पूरा आंदोलन था, उसे जाट आंदोलन के तौर पर ही देखा गया. क्योंकि उस पूरे आंदोलन में या तो पंजाब के किसान थे या फिर हरियाणा के जाट किसान.


पहलवानों के आंदोलन को भी बीजेपी ने उसी जाट रंग में रंग दिया, जिसमें सबसे ज्यादा काम बीजेपी नेता बृजभूषण शरण सिंह ने किया. रही बात जवानों के गुस्से की, तो अग्निवीर को लेकर बीजेपी के सबसे बड़े नेता यानी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने ही ऐसे एलान कर दिए कि टूटा हुआ भरोसा जुड़ता गया. रही-सही कसर नायब सिंह सैनी के सौम्य व्यक्तित्व और ज़मीनी स्तर पर संघ के कैंपेन ने पूरी कर दी.


बागियों के घर गए नायब सिंह सैनी


टिकट बंटवारे के बाद बागियों के घर-घर जाकर मनाने का काम खुद नायब सिंह सैनी ने किया तो संघ के कार्यकर्ता उन घरों तक गए, जहां लोगों में बीजेपी से थोड़ी नाराजगी थी. नतीजा बीजेपी ने वो करिश्मा कर दिखाया, जिसे आज तक कोई कर नहीं पाया था. लगातार 10 साल तक सत्ता में रहने वाली बीजेपी अगले पांच साल के लिए भी जनादेश लेकर आ गई. और ऐसा नहीं है कि इस जनादेश में जाट वोटर बिल्कुल नहीं हैं. वो हैं, लेकिन उतने नहीं, जितने कांग्रेस के होते हैं.


यही वजह है कि इस जाट राजनीति के ईर्द-गिर्द सिमटने वाली कांग्रेस के अंदर से ही आवाज उठी है कि बात बहुजन समाज की करनी होगी. बहुजन समाज को साथ लेकर ही चलना होगा. और इस बहुजन समाज का मतलब बहुजन समाज पार्टी और मायावती का कोर वोटर नहीं बल्कि वो वोटर है, जो पूरे हरियाणा का है. और जिसमें जाट-नॉन जाट, अगड़े-पिछड़े सब आते हैं.


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