हरियाणा में प्रचंड जीत के बाद भी नायब सिंह से अभी दूर है मुख्यमंत्री का पद? समझें
Haryana News: हरियाणा विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत से बीजेपी उत्साहित है. अब जल्द ही मुख्यमंत्री का शपथ हो सकता है. इससे पहले सियासी गलियारों में सीएम पद को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.
Haryana Assembly Election 2024: क्या हरियाणा में प्रचंड जीत के बाद भी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ही होंगे. क्या जिस हरियाणा में जिस हारी हुई बाजी को नायब सिंह सैनी ने जीत में तब्दील कर दिया, उन्हें उनका इनाम मिलेगा. क्या बीजेपी का आलाकमान 2022 के यूपी चुनाव की तरह ही अपने पुराने मुख्यमंत्री को ही कायम रखेगा या फिर आलाकमान की नजर में है, मध्य प्रदेश का चुनाव, जो लड़ा तो शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में गया लेकिन मुख्यमंत्री मोहन यादव बन गए.
आखिर क्या होगा नायब सिंह सैनी का और क्यों इतनी बड़ी जीत के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी नायब सिंह सैनी से दूर दिख रही है? इसमें कोई दो राय नहीं है कि हरियाणा में इतनी बड़ी एंटी इनकम्बेंसी के बावजूद बीजेपी की जीत हुई है, तो उसका श्रेय नायब सिंह सैनी को जाता है.
सौम्य, मृदुभाषी, मिलनसार...जिनके मुख्यमंत्री बनते ही हरियाणा के वोटरों के वो सारे गिले-शिकवे दूर हो गए, जो साढ़े नौ साल में मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल के दौरान हो गए थे. लेकिन नायब सिंह सैनी इस पूरी जीत का श्रेय खुद न लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही दे रहे हैं और ये स्वाभाविक भी है.
नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, प्रधानमंत्री हैं तो जीत का श्रेय तो उन्हें जाता ही है. लेकिन नायब सिंह सैनी ने अपने शपथ ग्रहण की तारीख पूछे जाने पर जो जवाब दिया है, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सबसे पहले तो आप सुनिए कि शपथ ग्रहण की तारीख पर नायब सिंह सैनी का बयान क्या है.
अनिल विज ने सीएम पद का किया था दावा
यानी कि नायब सिंह सैनी कह रहे हैं कि नेता विधायक दल चुनेगा. वो ये भी कह रहे हैं कि ऑब्जर्वर आएंगे. और ये भी कह रहे हैं कि तय तो पार्लियामेंट्री बोर्ड करेगा. और उनके इसी बयान में राजनीति की वो महीन लाइन है, जिसके इस पार नायब सिंह सैनी की मुख्यमंत्री की कुर्सी है और उस पार शायद कोई और ही पद.
क्योंकि न तो चुनाव से पहले, न तो चुनाव के दौरान और न ही चुनावी नतीजे घोषित होने के 24 घंटे बाद तक किसी बड़े नेता का ये बयान आया है कि मुख्यमंत्री तो नायब सिंह सैनी ही होंगे और बस तारीख बतानी बाकी है. ये सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि अनिल विज ने चुनाव से ठीक पहले कहा था कि मुख्यमंत्री का दावेदार तो मैं भी हूं.
राव इंद्रजीत सिंह ने भी किया दावा
अब अनिल विज को रोकना होता तो उन्हें तो सिर्फ एक संदेश भर देना था आलाकमान को कि मत बोलिए. लेकिन संदेश उन तक नहीं पहुंचा तो वो खुद को दावेदार बताते रहे. केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने भी कभी दावेदारी छोड़ी नहीं. और अब शायद नायब सिंह सैनी का भी भरोसा थोड़ा तो हिला हुआ है ही, तभी तो वो आब्जर्वर की बात कर रहे हैं. क्योंकि ऑब्जर्वर की जरूरत तब होती है, जब नेता का नाम तय नहीं हो. ऐसे में ऑब्जर्वर जाते हैं, विधायकों से मिलते हैं और जो नाम विधायक सुझाते हैं उन्हें लेकर वो आलाकमान तक पहुंचा देते हैं. फिर तय ऊपर से होता है.
पहला उदाहरण है उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का. 2022 में चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री थे योगी आदित्यनाथ. और जब नतीजे आए, बीजेपी जीत गई तो न किसी विधायक दल की बैठक करनी पड़ी, न ऑब्जर्वर बुलाने पड़े और न ही किसी पार्लियामेंट्री बोर्ड को दखल देना पड़ा. नतीजे आए और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.
मध्य प्रदेश का उदाहरण
अब एक उदाहरण मध्य प्रदेश का है. 2023 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे. लग रहा था कि इस बार तो बीजेपी हार ही जाएगी. सारे सियासी पंडितों, सारे एग्जिट पोल्स ने बीजेपी को हारता हुआ बता दिया. लेकिन नतीजे आए तो पूरा खेल पलट गया.
बीजेपी न सिर्फ जीती बल्कि बंपर वोट से जीती. और तब भी इस जीत का श्रेय शिवराज सिंह चौहान को दिया गया. लेकिन कुर्सी उनसे दूर हो गई. तब वहां विधायक दल की बैठक भी हुई, आब्जर्वर भी आए और पार्लियामेंट्री बोर्ड का दखल भी हुआ और आखिरकार शिवराज सिंह चौहान की जगह मोहन यादव मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.
तो अब तय आलाकमान को ही करना है कि नायब सिंह सैनी को योगी आदित्यनाथ के बरक्स रखना है या फिर शिवराज सिंह चौहान के बरक्स. नायब सिंह सैनी को भी दोनों उदाहरण याद हैं, लिहाजा वो भी जो बोल रहे हैं, बेहद सधे अंदाज में बोल रहे हैं. बिल्कुल एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह. और यह उनकी सबसे बड़ी ताकत भी है.
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