Haryana Assembly Election 2024: केंद्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा में सियासी ऊहापोह तेज हो गई है. यहां की 90 विधानसभा सीटों पर अगले महीने 5 अक्टूबर को चुनाव है और नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे. 


हरियाणा में एक तरफ देश की सबसे बड़ी पार्टियों में शुमार बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में काबिज होने के लिए जद्दोजहद कर रही है, तो दूसरी तरफ देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस अपनी खोई हुई साख को वापस पाने की कोशिश कर रही है. 


हरियाणा की सीमाएं दिल्ली से लगी हुई हैं. यही वजह है कि यहां की सियासी आबोहवा में दिल्ली का दखल देखने को मिलता है. लोकसभा चुनाव से महज 100 दिन बाद एक बार फिर हरियाणा में चुनावी अखाड़ा सज गया है. लोकसभा चुनाव में यहां की 10 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला टाई रहा था. 


लोकसभा चुनाव के नतीजों से कांग्रेस उत्साहित है, जबकि बीजेपी ने आम चुनाव से ठीक पहले सीएम फेस बदलकर मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश की है. विधानसभा चुनाव में दोनों प्रमुख सियासी दल कांग्रेस और बीजेपी के साथ जेजेपी, आईएनएलडी, आम आदमी पार्टी समेत अन्य दल जातीय समीकरणों को साधने में लगे हैं. इस बार सियासी दलों की नजर प्रदेश के 3 मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा सीटों पर भी है. 


मुस्लिम बहुल सीट पर कांग्रेस-बीजेपी की नजर
जातिगत समीकरणों को साधकर चंडीगढ़ जाने की राह देख रहे सियासी दल इन तीनों सीटों पर प्रत्याशियों का चुनाव करने में बहुत सावधानी बरत रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी ने मुस्लिम बाहुल्य फिरोजपुर झिरका, पुन्हाना और नूंह विधानसभा सीट में से दो पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर सियासी पंडितों को चौंका दिया. 


बीजेपी ने फिरोजपुर झिरका से नसीम अहमद को और पुन्हाना विधानसभा सीट ऐजाज खान को अपना प्रत्याशी बनाया है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, मेवात में लगभग 80 फीसदी आबादी मेव मुस्लिम समुदाय की है. यहां की तीन विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. बीजेपी ने बहुचर्चित नूंह सीट पर प्रदेश सरकार में मंत्री संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया है.


इन विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद यहां से लगातार मुस्लिम प्रत्याशी जीतते रहे हैं. कई बार सियासी पार्टियों की शाख को ताक पर रखकर यहां के मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशियों को जिताकर चंडीगढ़ भेजा है. ऐसे में बीजेपी यहां से पहली जीत दर्ज करने की फिराक में है और वह यहां की सियासी रिवायत के मुताबिक ही जातीय समीकरणों के सहारे इसे हासिल करना चाहती है.  


कांग्रेस ने तीनों सिटिंग MLA को दिया टिकट
कांग्रेस ने इन तीनों विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार को ही टिकट दिया है. तीनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी यहां से वर्तमान में विधायक हैं. इस बार कांग्रेस ने नूंह से सिटिंग विधायक आफताब अहमद, फिरोजपुर झिरका से सिटिंग विधायक मम्मन खान और पुन्हाना से सिटिंग विधायक मोहम्मद इलियास पर दोबारा भरोसा जताया है. यह तीनों सीटें कांग्रेस का स्ट्रांग होल्ड क्षेत्र मानी जाती हैं. इन तीनों ही सीटों पर कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. 


हरियाणा में मुस्लिम वोटर्स की संख्या
विधानसभा चुनाव के सियासी बिसात पर कांग्रेस-बीजेपी समेत दूसरे दल अपनी चाल बहुत सावधानी से चल रहे हैं. हरियाणा में इस बार दो करोड़ से अधिक वोटर्स हैं. इनमें से 7 फीसदी से अधिक वोटर मुस्लिम समुदाय से हैं. इनमें से अधिकतर नूंह और आसपास के क्षेत्र में रहते हैं. मुस्लिम वोटर को साधने के लिए प्रमुख सियासी दल हर संभव कोशिश करने में जुटे हैं. आइये जानते मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा सीटों का सियासी समीकरण-


नूंह विधानसभा
नूंह विधानसभा सीट का गठन 1967 में हुआ था. इस सीट पर पहली बार रहीम खान ने निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में जीत हासिल किया था. इसके बाद यहां से 1968 के विधानसभा चुनाव में खुर्शीद अहमद ने जीत का परचम लहराया. सरदार खान नूंह से जीतने वाले पहले गैर-कांग्रेसी और गैर-निर्दलीय प्रत्याशी थे. इस सीट पर तीन बार रहीम खान और तीन बार खुर्शीद अहमद ने जीत हासिल किया था. 


नूंह विधानसभा सीट पर कांग्रेस और निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवारों का दबदबा रहा है. बीजेपी अपनी पहली जीत की तलाश में है. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में नूंह से जाकिर हुसैन ने आईएनएलडी के टिकट पर जीत हासिल किया था. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी आफताब अहमद को 32 हजार से अधिक वोटों से हराया था.


साल 2014 में जाकिर हुसैन को 52.35 फीसदी वोट मिला था, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी आफताब अहमद ने 25.62 फीसदी वोट हासिल किया था. बीजेपी के प्रत्याशी और वर्तमान में प्रदेश सरकार में मंत्री संजय सिंह को साल 2014 में सिर्फ 19.75 फीसदी वोट मिले थे.


साल 2019 के विधानसभा चुनाव में जाकिर हुसैन ने इंडियन नेशनल लोकदल छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने उनके परिवार के सियासी रसूख और वोटर्स में उनकी लोकप्रियता को देखकर प्रत्याशी बनाया था. हालांकि, बीजेपी को इसका फायदा नहीं मिला और उन्हें कांग्रेस के आफताब अहमद से हार का सामना करना पड़ा. 


साल 2019 में आफताब अहमद ने लगभग 42 फीसदी वोट हासिल किया था. इसके उलट बीजेपी प्रत्याशी जाकिर हुसैन को 38.55 फीसदी वोट मिला और वह दूसरे नंबर पर रहे. जेजेपी के तैयब हुसैन (14.17 फीसदी) वोट के साथ तीसरे और आईएनएलडी के नासिर हुसैन (2.86 फीसदी) चौथे स्थान पर रहे.


साल 2024 के विधानसभा चुनाव में नूंह से बीजेपी ने नायब सैनी सरकार में मंत्री संजय सिंह को मैदान में उतारा है. उनका मुकाबला कांग्रेस के प्रत्याशी और वर्तमान विधायक आफताब अहमद से है. आईएनएलडी ने यहां से पूर्व विधायक जाकिर हुसैन के बेटे ताहिर हुसैन को अपना प्रत्याशी बनाया है.


पुन्हाना विधानसभा
प्रदेश की पुन्हाना सीट पर भी मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. साल 2009 में नूंह और फिरोजपुर झिरका के कुछ हिस्सों को मिलाकर पुन्हाना विधानसभा सीट का गठन किया गया था. साल 2009 के विधानसभा चुना में आईएनएलडी से मोहम्मद इलियास ने जीत हासिल किया था. जबकि साल 2014 में निर्दलीय प्रत्याशी रहीश खान जीत कर यहां से चंडीगढ़ पहुंचे. 


साल 2014 विधानसभा चुनाव में रहीश खान ने 3 हजार 141 वोटों के अंतर से मोहम्मद इलियास को हराने में कामयाब रहे, उन्होंने कुल 29.56 फीसदी वोट हासिल किया. उनके प्रतिद्वंद्वी मोहम्मद इलियास को 26.85 फीसदी वोट मिला था. बीजेपी 2014 में तीसरे नंबर पर रही थी. कांग्रेस के सुबहान खान चौथे और बीएसपी प्रत्याशी दयावती चौथे स्थान पर रहीं.


साल 2019 के विधानसभा चुनाव में मोहम्मद इलियास ने दोबारा जीत हासिल की और वह कांग्रेस के टिकट पर चंडीगढ़ पहुंचे. 2019 में इस सीट पर हारजीत का अंतर महज 816 वोट का रहा था. 


कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद इलियास ने 28.76 फीसदी वोट हासिल किया, जबकि रहीश खान ने 28.09 फीसदी वोट हासिल किया और वह सिर्फ 816 वोट से चुनाव हार गए. बीजेपी प्रत्याशी नौक्षम चौधरी तीसरे स्थान पर रही थीं.


साल 2024 के विधानसभा चुनाव में पुन्हाना से कांग्रेस ने एक बार फिर मोहम्मद इलियास को प्रत्याशी बनाया है. उनके मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी ऐजाज खान से होगा. आईएनएलडी ने यहां से दयावती बढ़ाना को टिकट देकर मैदान में उतारा है. 


फिरोजपुर झिरका विधानसभा सीट
यह सीट साल 1967 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. फिरोजपुर झिरका सीट पर 1967 में पहली बार दीन मोहम्मद ने स्वतंत्रता पार्टी से जीत हासिल किया था. 1967 में दीन मोहम्मद ने विशाल हरियाणा पार्टी और 1977 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीतकर विधानसभा पहुंचे.


फिरोजपुर झिरका सीट से चार बार कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत हासिल किया है. इसके अलावा शकरुल्ला खान ने तीन बार और आजाद मोहम्मद ने दो बार जीत हासिल किया है. साल 2000 से फिरजपुर झिरका सीट आईएनएलडी और कांग्रेस के कब्जे में रही है. 


साल 2014 में फिरोजपुर झिरका सीट से नसीम अहमद ने आईएनएलडी के टिकट पर जीतकर विधानसभाा पहुंचे थे. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी मम्मन खान को 3,254 वोटों के अंतर से हराया था. नसीम अहमद ने साल 2014 में 29.47 फीसदी वोट हासिल किया, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी मम्मन खान को 27.09 फीसदी वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी अमन अहमद और चौथे स्थान पर बीजेपी प्रत्याशी आलम रहे. कांग्रेस प्रत्याशी को सिर्फ 11.65 फीसदी वोट मिला था और वे पांचवे स्थान पर रहे थे.


फिरोजपुर झिरका सीट पर साल 2019 में कांग्रेस के टिकट पर मम्मन सिंह मैदान में उतरे और उन्होंने जीत हासिल की. उन्होंने सिटिंग विधायक और बीजेपी प्रत्याशी नसीम अहमद को 37 हजार वोटों के अंतर से हराया. 


मम्मन खान ने कुल 57.62 फीसदी वोट हासिल किया और बीजेपी प्रत्याशी को 32.40 फीसदी वोट मिले थे. तीसरे नंबर जेजेपी से अमन अहमद रहे थे और चौथे नंबर पर रहे बीएसपी प्रत्याशी रघुबीर को सिर्फ 0.90 फीसदी वोट मिला था.


पिछले चुनावी नतीजों के देखते हुए एक बार फिर बीजेपी ने नसीम अहमद को यहां से प्रत्याशी बनाया है. उनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी मम्मन खान से होगा. जेजेपी ने फिरोजपुर झिरका सीट पर जान मोहम्मद के रुप में मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है. 


मोहम्मद इलियास के नाम अनोखा रिकॉर्ड
इन तीनों मुस्लिम बाहुल्य सीटों के सियासी समीकरणों पर चर्चा करते हुए पुन्हाना से कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद इलियास के सियासी कद की चर्चा जरुरी है. मोहम्मद इलियास के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है. 70 वर्षीय मोहम्मद इलियास अलग-अलग समय पर नूंह, फिरोजपुर झिरका और पुन्हाना विधानसभा सीट से जीत हासिल करने वाले प्रत्याशियों में से एक हैं. 


मोहम्मद इलियास ने साल 1991 में नूंह से जीतकर पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद उन्होंने साल 2000 में आईएनएलडी के टिकट पर फिरोजपुर झिरका से जीतकर दूसरी बार विधायक बने. साल 2009 में आईएनएलडी के टिकट पर पुन्हाना से जीत कर तीसरी बार और 2019 में पुन्हाना से कांग्रेस के टिकट पर चौथी बार जीतकर विधायक बने.


हथीन और सोहना विधानसभा सीट
इन दोनों सीटों पर भी मुस्लिम वोटर्स की संख्या किंगमेकर की रही है. हथीन में हुए पिछले दो विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो यहां मुस्लिम प्रत्याशी भी जीत की दौड़ में शामिल रहे हैं. इस सीट पर सत्तारूढ़ बीजेपी को पहली बार साल 2019 के विधानसभा चुनाव में जीत मिली थी. 


1967 में अस्तित्व में आई हथीन सीट पर पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी डी सिंह ने जीत हासिल किया था. हथीन सीट पर सबसे अधिक दो बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. इसी तरह दो बार कांग्रेस और आईएनएलडी के प्रत्याशियों ने जीत हासिल किया है. 


प्रत्याशी के तौर सबसे अधिक अजमत खान ने दो बार जीत दर्ज किया. अजमत खान ने एक बार जनता पार्टी के टिकट पर साल 1982 में और दूसरी बार 1991 में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल दर्ज करने में कामयाब रहे. हथीन सीट पर 2019 में बीजेपी प्रत्याशी प्रवीण डागर ने कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद इसराइल से महज 2,887 वोटों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे थे.


सोहना सीट पर भी मुस्लिम वोटर्स किंगमेकर की भूमिका में है. इस सीट पर मेव मुस्लिम समुदाय वोटर्स की आबादी लगभग 21 फीसदी है. वर्तमान में यहां से प्रदेश सरकार में मंत्री संजय सिंह विधायक हैं. हालांकि बीजेपी ने इस बार उनकी जगह तेजपाल तवर को अपना प्रत्याशी बनाया है जबकि कांग्रेस ने अपना पत्ता नहीं खोला है.


हरियाणा में कितनी है वोटर्स की संख्या
बता दें, हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 2 करोड़ से अधिक वोटर्स 90 सीटों पर ताल ठोक रहे प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे. इनमें से 1 करोड़ 7 लाख से अधिक पुरुष और 95 लाख 12 हजार से अधिक महिला वोटर हैं. जबकि 4 लाख 53 हजार फर्स्ट टाइम वोटर हैं. इसी तरह 40 लाख से अधिक युवा मतदाता हैं.  इसके अलावा 458 थर्ड जेंडर वोटर्स भी हैं.


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