Himachal Pradesh: वीरभद्र सिंह को घोड़े पर स्कूल ले जाने वाले कृपाराम कौन थे, पढे़ें उनकी पूरी कहानी
Himachal Pradesh: वीरभद्र सिंह के निजी आवास होली लॉज के दरवाजे हमेशा ही आम जनता के लिए खुले रहते थे, लेकिन कृपाराम की पहुंच कुछ कदम आगे तक थी. वो सीधा जाकर वीरभद्र सिंह से मिल लिया करते थे.
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Himachal Pradesh News: साल 1934 में बुशहर रियासत में राजा पदम सिंह और शांति देवी के घर पर वीरभद्र सिंह का जन्म हुआ. वीरभद्र सिंह की स्कूली पढ़ाई शिमला के मशहूर बिशप कॉटन स्कूल से हुई है. वीरभद्र सिंह अपने घर होली लॉज से रोजाना बीसीएस जाया करते थे. स्कूल जाने के लिए वीरभद्र सिंह घोड़े का इस्तेमाल करते थे.
इस घोड़े को वीरभद्र सिंह खुद नहीं बल्कि संचालक कृपाराम चलाते थे. कृपाराम वह खास व्यक्ति थे, जिन्होंने वीरभद्र सिंह को स्कूल के बच्चे से लेकर हिमाचल प्रदेश की सबसे ताकतवर शख्सियत बनते देखा. साल 1947 में वीरभद्र सिंह पिता पदम सिंह की मृत्यु के बाद राजवंश की परंपरा के तहत राज गद्दी पर बैठ गए. इस समय वीरभद्र सिंह की उम्र केवल 13 साल थी. राजा बनने के बाद भी वीरभद्र सिंह का नाता कृपाराम के साथ बेहद खास था.
आत्मीयता के साथ कृपाराम से मिलते थे वीरभद्र सिंह
वीरभद्र सिंह बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई के बाद सेंट स्टीफन कॉलेज चले गए. जल्द ही वीरभद्र सिंह नेता के तौर पर उभरे. सबसे पहले महासू लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर वो लोकसभा पहुंचे. इसके बाद वीरभद्र सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह पांच बार सांसद और छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. बावजूद इसके कृपाराम जब भी वीरभद्र सिंह से मिलने जाया करते, तो वीरभद्र सिंह बेहद आत्मीयता के साथ उनसे मिलते थे. राजा पदम सिंह ने जब शायद उनका नाम रखा, तो यही सोचा होगा कि वीरभद्र राजनीति के वीर और स्वभाव में भद्र होंगे. स्वभाव ऐसा जिससे हर किसी को उनके साथ अपनापन महसूस हो.
कृपाराम का वीरभद्र सिंह के साथ रहा प्रत्यक्ष संबंध
यूं तो वीरभद्र सिंह के निजी आवास होली लॉज के दरवाजे हमेशा ही आम जनता के लिए खुले रहते थे, लेकिन कृपाराम की पहुंच कुछ कदम आगे तक थी. वो सीधा जाकर वीरभद्र सिंह से मिल लिया करते थे. वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत शर्मा बताते हैं कि जब कृपाराम रिज मैदान पर घोड़ा चलाया करते थे, तो छोटी से छोटी परेशानी को लेकर भी वीरभद्र सिंह के पास पहुंच जाते थे. वीरभद्र सिंह भी चुटकियों में कृपाराम और उनके साथियों की हर मुश्किल का हल कर देते थे.
जब तक कृपाराम जीवित रहे, तब तक रिज मैदान पर उनका सिक्का बोलता रहा. नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी भी कृपाराम की वीरभद्र सिंह के साथ नज़दीकियों से वाकिफ थे. घोड़ा संचालकों के लिए कोई नया नियम लाने से पहले भी निगम अधिकारियों को 100 बार विचार करना पड़ता था. वीरभद्र सिंह की अपनों के लिए खास जगह की वजह से ही वे लोकतंत्र में भी लोगों के 'राजा' ही रहे.
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