IIAS Ashtadhatu Bell: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला (Shimla) अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए विश्व भर में मशहूर है. यहां हर इमारत खुद में एक कहानी समेटे हुए है. यहां साल 1888 में बनी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (Indian Institute of Advanced Studies) की इमारत से साल 2010 में चोरी हुआ अष्टधातु का प्राचीन घंटा (Ashtadhatu Bell) अब तक नहीं मिल सका है. मामले में सीबीआई (CBI) के हाथ अब तक खाली हैं.
1903 में नेपाल के राजा ने तोहफे में दिया था घंटा
साल 1903 में नेपाल नरेश राजा रत्न बहादुर सिंह ने तत्कालीन वायसराय को 30 किलो वजन वाला अष्टधातु का प्राचीन घंटा तोहफे में दिया था. ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह इमारत वायसराय का आधिकारिक आवास थी. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज में यह प्राचीन घंटा मुख्य द्वार के नजदीक लकड़ी की खूबसूरत चौखट पर लगा था. अष्ट धातु का यह प्राचीन घंटा देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र था, लेकिन यह आकर्षण का केंद्र चोरों की नजर में खटक रहा था.
21 अप्रैल 2010 को हुई थी चोरी
21 अप्रैल 2010 को यह प्राचीन अष्टधातु घंटा चोरी हो गया. जिस दिन यह अष्टधातु का घंटा चोरी हुआ, उस दिन पूरे संस्थान में सिर्फ एक ही चौकीदार ड्यूटी पर तैनात था. हैरानी की बात यह है कि वारदात के दिन ड्यूटी पर जो चौकीदार तैनात था वह भी विकलांग था. इस दिन संस्थान में आने-जाने वाली गाड़ियों के नंबर तक नोट नहीं किए गए. इस प्राचीन घंटे के आसपास कोई सीसीटीवी कैमरा तक नहीं लगा था. चोरों के हौसले इतने बुलंद थे कि वे 30 किलो वजनी इस घंटे को लकड़ी की चौखट के साथ ही उड़ा ले गए और पुलिस को इसका पता भी नहीं चला.
सीबीआई के हाथ आज तक खाली
जिस फिल्मी अंदाज में अष्ट धातु के प्राचीन घंटे को चोरी किया गया, उससे यह लगा कि घंटे को चोरी करवाने में संस्थान के लोगों की भी मिलीभगत रही होगी. मामले में इंटरनेशनल गैंग का हाथ बताया गया. 5 साल बाद भी जब मामले में गठित एसआईटी को मामले में सफलता नहीं मिली, तो अक्टूबर 2015 में मामले की जांच सीबीआई को दी गई. सीबीआई ने कई दिनों तक पूछताछ की. कर्मचारियों के पॉलीग्राफ टेस्ट करवाए गए. बावजूद इसके आज तक सीबीआई के हाथ खाली हैं. करीब 13 साल का समय बीत जाने के बाद अब तक इस प्राचीन घंटे का पता नहीं चल सका है. अतीत पर वर्तमान का भी अधिकार होता है, लेकिन यह अधिकार उन चोरों ने नई पीढ़ी से छीन लिया जो अब तक इस प्राचीन घंटे को देख तक नहीं सके हैं.
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