Apple in Himachal Pradesh: हिमाचल के सेब सीजन पर मौसम की मार! उत्पादन में आई भारी गिरावट
हिमाचल प्रदेश में बे-मौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से सेब सीजन बुरी तरह प्रभावित हुआ. आपदा के चलते आम जन जीवन प्रभावित होने का भी नकारात्मक असर सेब सीजन पर पड़ा.
Apple Production in Himachal Pradesh: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में सेब की आर्थिकी करीब पांच हजार करोड़ रुपये की है. हिमाचल प्रदेश में आम तौर पर हर साल तीन करोड़ से चार करोड़ पेटियों की पैदावार होती है, लेकिन अबकी बार सेब पैदावार काफी गिर गई है. इस बार पौने दो करोड़ तक सेब की पैदावार के सिमटने के आसार बन गए हैं. साल 2010 के बाद यह तीसरी बार है, जब सेब का इतना कम उत्पादन होगा. इससे पहले 2011 में हिमाचल में सेब का सबसे कम उत्पादन 1.38 करोड़ पेटियां हुई थी.
अब तक 1.67 करोड़ पेटियां बाजार पहुंची
साल 2018 में 1.65 करोड़ पेटियों तक सेब का उत्पादन सिमट गया था. साल 2019 के बाद यह पहली बार है कि जिसमें सेब की पैदावार दो करोड़ भी नहीं पहुंच पाएगी. पिछले साल की तुलना में भी इस साल करीब 45 फीसदी कम फसल है. पिछले साल प्रदेश में 3.36 करोड़ पेटियां सेब की हुई थी, लेकिन अबकी बार पैदावार करीब पौने दो करोड़ पेटियां के करीब रहेगी. प्रदेश में अब की बार सेब उत्पादन करीब पौने दो करोड़ पेटियां होने के आसार हैं. अब तक 1.67 करोड़ पेटियां बाजार में जा चुकी हैं, जबकि सेब सीजन अंतिम चरण में भी आ चुका है. इससे साफ है कि अबकी बार सीजन में दो करोड़ पेटियों का आंकड़ा छू पाना मुश्किल हो गया है.
कम सेब पैदावार के क्या कारण?
सेब पर बागवानों की साल भर की मेहनत होती है. सर्दियों के मौसम में कम बर्फबारी की वजह से सेब पर नकारत्मक असर पड़ा. इसके बाद समय-समय पर होती रही बे-मौसम बारिश और ओलावृष्टि ने सेब को भारी नुकसान पहुंचाया. इन वजहों से सेब को भारी नुकसान हुआ. इसके बाद जब सब को मंडी तक पहुंचाने की बारी आई, तब प्रदेश में भारी आपदा आ गई. जुलाई-अगस्त के महीने में मूसलाधार बारिश की वजह से कई जगह संपर्क मार्ग टूटे. कई जगह तो मुख्य सड़क भी ढह गई. इसकी वजह से सेब बागवानों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा. यह पहली बार था जब सेब मंडियों में किलो के हिसाब से से बिक रहा था. इस फैसले से बागवान काफी खुश भी थे, लेकिन सेब का उत्पादन ज्यादा न होने की वजह से बागवानों को नुकसान झेलना पड़ा.
किस साल कितना उत्पादन? (पेटी में)
साल 2010 में 5.11 करोड़, साल 2011 में 1.38 करोड़, साल 2012 में 1.84 करोड़, साल 2013 में 3.69 करोड़, साल 2014 में 2.80 करोड़, साल 2015 में 3.88 करोड़, साल 2016 में 2.40 करोड़, साल 2017 में 2.08 करोड़, साल 2018 में 1.65 करोड़, साल 2019 में 3.24 करोड़, साल 2020 में 2.84 करोड़, साल 2021 में 3.41 करोड़, साल 2022 में 3.36 करोड़ और साल 2023 में अब तक 1.67 करोड़ पेटी उत्पादन हुआ है.