Hiamchal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश के शिमला (Shimla) में ऐतिहासिक भवन बैंटनी कैसल का मरम्मत का काम लगभग पूरा होने को है. मंगलवार शाम को उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री परिवार सहित बैंटनी कैसल में आयोजित होने वाले डिजिटल लाइट एंड साउंड शो का ट्रायल देखने पहुंचे. शिमला के ऐतिहासिक भवन बैंटनी कैसल में लाइट एंड साउंड शो के माध्यम से ब्रिटिश काल से लेकर शिमला में अब तक हुए बदलाव को दिखाया जा रहा है. बता दें कि, 25 मई तक लाइट एंड साउंड शो का ट्रायल किया जा रहा है. इसके बाद लोगों को टिकट लेकर शो देखना पड़ेगा.


बता दें कि, इस शो में ब्रिटिश काल से लेकर अब तक राजधानी में हुए बदलाव और बैंटनी कैसल के इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों को दिखाया जा रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि, जब से बैंटनी कैसल की ऐतिहासिक इमारत बनी है, उसके बाद से अब तक इसके आसपास के इलाके सहित पूरे शिमला में क्या बदलाव देखने को मिला है. शो दो शिफ्टों में आधे-आधे घंटे के लिए दिखाया जाएगा. डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि विदेशों में इस तरह के आयोजन 1950 से होते आए हैं. शिमला में पहली बार इस तरह का प्रयास किया जा रहा है. इससे शिमला के स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए बैंटनी कैसल एक आकर्षक स्थल बनकर उभरेगा. दरअसल, बैंटनी कैसल में म्यूजियम और कैफेटेरिया बनाना प्रस्तावित है.


140 साल पुराना है बैंटनी कैसल
डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि, 2016-17 में बैंटनी कैसल के अधिग्रहण के बाद सरकार ने करीब तीन साल पहले इसके मरम्मत का काम शुरू किया था. 140 साल पुराने बैंटनी कैसल अपने आप में इतिहास को समेटे हुए है. यह इमारत सिरमौर के महाराजा का ग्रीष्मकालीन महल रहा है. कैसल का मुख्य भवन दिखावटी टयूडर शैली में निर्मित दो मंजिला संरचना है. इसे आंशिक शैलेट और छोटे टावरों के साथ एक ढलान वाली छत के द्वारा ढका गया है. कहा जाता है कि इस इमारत को टीईजी कूपर ने राजा सुरेन्द्र विक्रम प्रकाश की निगरानी में डिजाइन किया था. 


जानें बैंटनी कैसल का इतिहास
वहीं 1880 में इसका निर्माण शुरू होने से पहले यह जगह कैप्टन ए. गॉर्डन से सम्बन्धित थी, जिसमें सेना के अधिकारी रहते थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सिरमौर के शासकों ने औपनिवेशिक सरकार को इस परिसर का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए दिया था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहां धर्मशाला के पास योल में दफनाए गये अधिकांश इतालवी कैदियों के संदेशों को भेजने के लिए ऑल इंडिया रेडियो से सम्बन्धित युद्ध बंदी अनुभाग रखा गया था. आजादी के ठीक बाद लाहौर में स्थित समाचार पत्र 'द ट्रिब्यून' ने चंड़ीगढ़ में स्थानांतरित होने तक यहां काम किया था. देश की आजादी से पहले बैंटनी दरभंगा के महाराजा के हाथों में चला गया. 1957-58 में दरभंगा के महाराजा सर कामेश्वर सिंह ने इस सम्पति को पंजाब सरकार को किराये पर दे दिया, जिसमें शुरू में पंजाब और उसके बाद हिमाचल पुलिस के विभिन्न अनुभाग कई सालों तक यहां स्थापित रहे. 


वहीं पुलिस अधिकारियों की मेस भी इस परिसर में स्थापित रही. 1968 में इस परिसर के पुलिस के पास रहते हुए ही प्रमुख स्थानीय व्यापारिक परिवार रामकृष्ण एंड सन्ज द्वारा इस सम्पति को खरीदा गया. बैंटनी कैंसल का जीर्णोद्वार लगभग 29 करोड़ की लागत से किया गया है, ताकि 3,700 वर्ग मीटर के क्षेत्र में प्रस्तावित विरासत संग्रहालय, बहुउद्देशीय हॉल, कला-शिल्प और लाइट एंड सांउड शो का संचालन किया जा सके. मन्त्रमुग्ध करने वाले 30 मिनट के लाइट एंड साउंड शो में बॉलीवुड अभिनेता अनुपम खेर ने अपनी आवाज दी है. इस शो को देखने के लिए एक साथ 70 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है, जिसे अंग्रेजी और हिन्दी भाषाओं में आम जनता के लिए प्रदर्शित किया जाएगा.


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