VVIP Vehicle Number News: वीवीआईपी नंबर HP-99-9999 खरीदने के लिए एक करोड़ 1 करोड़ 12 लाख 15 हजार 500 रुपये की बोली लगाने वाला देसराज नंबर लेने से पीछे हट गया है. देसराज ने न तो परिवहन विभाग में कुल धन राशि का 30 फीसदी रकम जमा करवाया और न ही क्षेत्रीय कार्यालय से संपर्क साधा.
अब दूसरे बोलीदाता को मौका
ऐसे में अब परिवहन विभाग ने दूसरे बोलीदाता को 30 फीसदी पंजीकरण शुल्क जमा करवाने का मौका दिया है. दूसरे बोली दाता का नाम संजय कुमार है, जिसने 1 करोड़ 11 हजार रुपए की बोली लगाई है. संजय कुमार ने ऑनलाइन बिडिंग में अपना पता ब्लॉक नंबर वन, हाउस नंबर 2, होटल पीटरहॉफ शिमला बताया है, जबकि देशराज ने अपना पता थाना 192, तहसील बद्दी, जिला सोलन बताया था.
फिलहाल, बोलीदाता की नहीं है कोई जानकारी
वीवीआईपी नंबर के लिए लगाई गई करोड़ों रुपये की बोली फ्रॉड नजर आ रही है. एबीपी लाइव में पहले ही मामले में गड़बड़झाले की आशंका जाहिर की थी. अब यह वीआईपी नंबर लेने के लिए न तो देसराज सामने आया और न ही फिलहाल संजय कुमार के बारे में कोई जानकारी है. दोनों ही बोली दाताओं के एड्रेस देख कर भी ऐसा लगता है कि इसे केवल किसी तरह का मजाक करने के लिए बोली लगाई गई थी.
कड़े नियम ला सकता है परिवहन विभाग
परिवहन विभाग भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए रणनीति बनाने के काम में लगा हुआ है. गौरतलब है कि नियमों के मुताबिक अगर दूसरा बोली दाता भी वीआईपी नंबर नहीं खरीदता है, तो विभाग को तीसरा मौका तीसरे बोली दाता को देना होगा. तीसरे बोली दाता का नाम धर्मवीर सिंह है. जिसने अपना पता वार्ड नंबर 4, गांव कंडवाल, तहसील नूरपुर, जिला कांगड़ा भरा है.
पहले ही जताई गई थी फ्रॉड की आशंका
स्कूटी के लिए करोड़ों रुपये की बोली देखकर अधिकारी भी पहले हैरान रह गए थे. हालांकि, उस वक्त भी कई अधिकारियों ने अनाधिकारिक तौर पर यह बात स्पष्ट कर दी थी कि यह किसी तरह का फ्रॉड नजर आ रहा है और किसी नंबर के लिए इतनी अधिक बोली नहीं लग सकती. इतनी महंगी बोली कभी नहीं देखी गई. परिवहन विभाग अब मामले में एक हफ्ते का इंतजार करेगा.
जांच करवा सकता है विभाग
हिमाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के पास परिवहन विभाग है. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार इसे लेकर अब कड़ा कानून ला सकती है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों. साथ ही मामले की जांच एसडीएम को सौंपी जा सकती है, ताकि पता चल सके कि आखिर बोली कहां से लगी थी. फिलहाल, विभाग के पास कड़ी कानूनी कार्रवाई करने के लिए कोई सख्त नियम ही नहीं हैं.