Himachal Government: हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुए पांच महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है. लेकिन हिमाचल प्रदेश सरकार में कुछ स्थिति अलग नजर आ रही है. सोमवार देर रात हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट लिखकर शेयर किया. जिसमे लिखा था कि कैबिनेट रैंक हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता. लोगों के दिलों में नंबर वन रैंक हमारे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है. पदों के पीछे भागना हमारे खून और फितरत में नहीं है.
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में चल रही सरकार में विक्रमादित्य सिंह लोक निर्माण विभाग में मंत्री हैं. पदों के पीछे भागने की फितरत खून में न होने की बात कहकर विक्रमादित्य सिंह अपने स्वर्गीय पिता वीरभद्र सिंह की राजनीति की ओर इशारा करते नजर आ रहे हैं. विक्रमादित्य सिंह की इस पोस्ट को दो अलग-अलग मायने निकाल कर देखा जा रहा है. पहला नगर निगम शिमला में मेयर-डिप्टी मेयर के चयन के लिए होली लॉज से राय-मशवरा नहीं हो रहा और दूसरा प्रतिभा सिंह को हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने की भी बात चल रही है. हालांकि इसके पीछे कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में तय फॉर्मूला का हवाला दिया जा रहा है. इन सबके बीच विक्रमादित्य सिंह का पद के पीछे न भागने की बात कहना हिमाचल प्रदेश की राजनीति को नई दिशा की तरफ मोड़ रहा है. विक्रमादित्य सिंह की इस पोस्ट के बाद विपक्षी दल भाजपा को बैठे-बिठाए सुक्खू सरकार को अस्थिर कहने और अंदर खाते सब कुछ ठीक न होने की बात पर जोर देने की एक और वजह मिल गई है.
क्या है पूरा मामला?
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद प्रतिभा सिंह गुट और सुखविंदर सिंह सुक्खू गुट अलग-अलग काम कर रहे थे. शुरुआत में प्रतिभा सिंह के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा जोरों पर थी. बाद में जब प्रतिभा सिंह इस दौड़ में पिछड़ीं, तो विक्रमादित्य सिंह के उप मुख्यमंत्री बनने की बात आई. इसके बाद यह भी जानकारी मिली कि विक्रमादित्य सिंह के मुख्यमंत्री बनने पर प्रियंका गांधी ने वीटो का इस्तेमाल कर रोक लगा दी है, क्योंकि विक्रमादित्य सिंह अन्य विधायकों के मुकाबले काफी जूनियर हैं. हालांकि बाद में समीकरण साधने के लिए उन्हें भारी-भरकम लोक निर्माण विभाग देकर संतुष्ट करने की कोशिश नजर आई.
हिमाचल प्रदेश की राजनीति का इतिहास बताता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और लोक निर्माण मंत्री की कभी आपस में बनी ही नहीं है. इस सूची में तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार और उनकी सरकार में लोक निर्माण मंत्री जगदेव चंद का नाम सबसे पहले है. वीरभद्र सिंह की सरकार में लोक निर्माण मंत्री रहे जेबीएल खाची पहले तो आपस में काफी करीब रहे, लेकिन बाद में दोनों के बीच सियासी खटपट बढ़ती चली गई. दूसरी बार तो वीरभद्र सिंह ने लोक निर्माण विभाग अपने पास ही रखा. इनके अलावा आपस में समधी तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल और लोक निर्माण मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर की नाराजगी भी रह-रहकर सियासी गलियारों में धीमा शोर मचाती रही. इस सब से सीख लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी पांच साल तक खुद ही लोक निर्माण विभाग चलाते रहे.
हमेशा से ही मुख्यमंत्री और लोक निर्माण मंत्री के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है. हालांकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अपनी सरकार को व्यवस्था परिवर्तन वाली सरकार बताते रहे हैं. क्या लोक निर्माण मंत्री के साथ मुख्यमंत्री के संबंधों में भी व्यवस्था परिवर्तन हुआ है या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. फिलहाल निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के इस पोस्ट के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं.
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