Mining in Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में नियम- 102 के तहत आपदा पर चर्चा चल रही है. इस बीच लगातार माइनिंग का मुद्दा भी जोर-शोर से सदन में गूंज रहा है. कई सदस्यों ने हिमाचल प्रदेश में हो रही इलीगल माइनिंग को आपदा की बड़ी वजह बताया है. बार-बार सदन में कई सदस्य यह भी स्पष्ट करते हुए नजर आए कि माइनिंग और इलीगल माइनिंग में अंतर करना जरूरी है. प्रदेश भर में माइनिंग को लेकर एक नकारात्मक छवि बनती हुई नजर आ रही है.


उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने पेश किए आंकड़े


इस बीच बुधवार को हिमाचल प्रदेश सरकार में उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने माइनिंग को लेकर सदन के सामने आंकड़े प्रस्तुत किए. विपक्ष के सदस्य सतपाल सिंह सत्ती के वक्तव्य के बाद उद्योग मंत्री ने सदन को बताया कि हर साल हिमाचल प्रदेश में 7.5 करोड़ टन रेत और बजरी आ रही है, लेकिन हिमाचल प्रदेश सिर्फ 69 लाख टन ही रेत बजरी निकल पा रहा है. यह कुल आंकड़े का 10 फ़ीसदी भी नहीं है. उद्योग मंत्री ने सदन को बताया कि जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी हिमाचल दौरे पर आए, तब उन्होंने भी यह बात मानी की व्यास का बेसिन उठ गया है. इसे दो से तीन मीटर तक डाउन करने की जरूरत है. नदियों में 25 से 30 फ़ीसदी तक सिल्ट आ चुकी है और इसकी कैपेसिटी भी कम होती चली जा रही है. हर साल नदियों का लेवल डेढ़ मीटर तक उठ रहा है. ऐसे में वैज्ञानिक तरीके से माइनिंग होना बेहद जरूरी है. उन्होंने हिमाचल प्रदेश में लीगल मीनिंग को दोबारा शुरू करने की बात पर जोर दिया.


हिमाचल में माइनिंग पर रोक


गौरतलब है कि इन दिनों हिमाचल प्रदेश सरकार ने माइनिंग पर पूरी तरह रोक लगाई हुई है. इसकी वजह से प्रदेश भर में रेत और बजरी की कमी भी देखी जा रही है. हिमाचल प्रदेश के साथ लगते राज्यों में भी यहां माइनिंग बंद होने की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान भी कई सदस्य लीगल माइनिंग को जल्द दोबारा शुरू करने की वकालत कर चुके हैं. हिमाचल प्रदेश में आई आपदा के दौरान सुक्खू सरकार के दो मंत्री भी माइनिंग के मुद्दे पर आपस में भिड़ गए थे.


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