Dussehra 2024: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बैजनाथ भगवान भोलेनाथ के मंदिर में खीर गंगा घाट के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. बहुत कम लोगों को मालूम है कि बैजनाथ में आज भी दशानन रावण का मंदिर और कुंड मौजूद है. यहां लंका नरेश रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने नौ सिरों को काटकर कुंड में जला दिया था. शिव नगरी बेशक रावण को भूल गई, लेकिन भगवान शिव अभी भी अपने प्रिय भक्त रावण की भक्ति को नहीं भूल सकते.
लंकापति रावण की तपोस्थली रही बैजनाथ में इसका जीता-जागता उदाहरण दशहरा पर्व है. जहां पूरे देश भर में दशहरे को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और रावण, मेघनाथ के साथ कुंभकरण के पुतले जलाए जाते हैं. वहीं, बैजनाथ एक ऐसा स्थान है जहां दशहरे के दिन रावण का पुतला नहीं जलता. कहा जाता है कि अगर कोई रावण का पुतला जलाता है, तो उसकी मृत्यु हो जाती है.
साल 1965 में किया गया था आयोजन
साल 1965 में बैजनाथ में एक भजन मंडली में शामिल कुछ बुजुर्ग लोगों ने उस समय बैजनाथ मंदिर के ठीक सामने रावण का पुतला जलाने की प्रथा शुरू की. इसके बाद भजन मंडली के अध्यक्ष की ही मौत हो गई. यही नहीं, मंडली के अन्य सदस्यों के परिवार पर भी घोर विपत्ति आन पड़ी थी. इसके दो साल बाद बैजनाथ में दशहरे पर पुतला जलाना बंद कर दिया गया. बैजनाथ से करीब दो किलोमीटर दूर पपरोला ठारू गांव में भी कुछ साल रावण का पुतला जलाया गया, लेकिन वहां भी कुछ समय बाद दशहरे पर्व को मनाना बंद कर दिया.
क्या कहते हैं बैजनाथ मंदिर के पुजारी?
मंदिर के पुजारी सुरेंद्र आचार्य बताते हैं कि बैजनाथ शिव नगरी रावण की तपोस्थली है. महाबली रावण ने यहां कई साल तपस्या की थी. उन्होंने बताया कि शायद इसी प्रभाव के चलते रावण का पुतला जलाने का जिसने भी प्रयास किया, वह काल का ग्रास बन गया. यही वजह है कि बैजनाथ में दशहरे के दिन पुतले जलाने की प्रथा का अंत हुआ.
बैजनाथ में नहीं है सोने की दुकान
बैजनाथ में करीब 700 दुकानें हैं, लेकिन विचित्र बात यह है कि यहां कोई भी सोने की दुकान नहीं है. माना जाता है कि कोई यहां सोने की दुकान खोलता है, तो उसका व्यापार तबाह हो जाता है या दुकान नहीं चलती. जानकारी है कि यहां दो बार सोने की दुकान खोली गई, लेकिन दुकान नहीं चल पाई. किंवदंती है कि एक बार सुनार वेष बदलकर विश्वकर्मा के रूप में आ गया और उसने जगत जननी को ठगा था. जब इस बात का भोलेनाथ को पता चला, तो उन्होंने श्राप दिया कि यहां कभी यह काम फल-फूल नहीं सकेगा.
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