आज भी दिल दहला देता है 118 साल पहले कांगड़ा में आया भूकंप, क्या अब भी खतरा बरकरार?
Earthquake Prone HP : हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में आज ही के दिन 1905 में भूकंप आया था जिसमें 20 हजार लोगों की मौत हुई थी, तबाही का खतरा आज भी बरकरार है क्योंकि बेतरतीब ढंग से मकान बन रहे हैं.

Shimla : वर्ष 1905 में आज ही के दिन कांगड़ा में जोरदार भूकंप के झटके लगे थे. यह झटके इतने जोरदार थे कि इसमें करीब 20 हजार लोगों की जान चली गई थी. रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 7.8 मापी गई थी. आज भी जब लोग कांगड़ा के भूकंप के बारे में सुनते हैं, तो उनका दिल दहल उठता है.
कांगड़ा में हुई थी भारी तबाही
4 अप्रैल को सुबह के वक्त आए उस भूकंप ने कांगड़ा में तबाही मचा दी थी. जिला कांगड़ा के साथ हिमाचल प्रदेश के अन्य जिले आज भी खतरे की जद में हैं. हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाके सिस्मिक जोन चार और पांच में आते हैं. साधारण भाषा में कहा जाए, तो अगर भूकंप के झटके रिक्टर स्केल पर 5 और 6 की तीव्रता से आए तो यहां जमकर तबाही हो सकती है. जानकार कई बार पहाड़ी इलाके में भूकंप के खतरे को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं. पहाड़ों में तेजी से हो रहा शहरीकरण से ये खतरा और भी ज्यादा बढ़ा है. प्रदेश भर में पहाड़ों पर बेतरतीबी से बनाए जा रहे मकान खतरे को और ज्यादा बढ़ा रहे हैं. पहाड़ों में भी मैदानी इलाकों की तरह विकास के नाम पर किए जा रहे 'विनाश' से चिंता लगातार बनी हुई है.
भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील इलाका
जानकार मानते हैं कि पहाड़ों में विकास तो जरूरी है, लेकिन इसके लिए किसी पुख्ता तकनीक के साथ आगे आना होगा. चूंकि हिमाचल प्रदेश भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील इलाका है. इसलिए यहां विकास के नाम पर जगह-जगह खड़ी की जा रही इमारतों पर नियंत्रण रखने की जरूरत है. प्रदेश में ऐसे भवन बनाए जाने जरूरी हैं, जो भूकंप रोधी हो.
बड़े भूकंप के झटकों से नुकसान
4 अप्रैल 1905, कांगड़ा, 7.8, 20 हजार लोगों की मौत
1 जून 1945, चंबा, 6.5
19 जनवरी 1975, किन्नौर, 6.8, 60 लोगों की मौत
26 अप्रैल 1986,धर्मशाला, 5.5, 6 लोगों की मौत
1 अप्रैल 1994, चंबा, 4.5, कई घरों को नुकसान
24 मार्च 1995, चंबा, 4.9, कई घरों को नुकसान
9 जुलाई 1997,सुंदरनगर, 5, एक हजार घरों को नुकसान
क्या कहते हैं जानकर ?
पर्यावरणविद टिकेंद्र पंवर के मुताबिक, पहाड़ पर बेतरतीब ढंग से बनाए जा रहे भवन किसी भी समय जमींदोज हो सकते हैं. अगर शिमला शहर में गहराई और अधिक तीव्रता वाला भूकंप आता है, तो सीस्मिक जोन 4 और 5 में होने की वजह से कम से कम 20 हजार लोगों की जान जा सकती है. उनका कहना है कि वे इस आंकड़े के जरिए किसी को डराना नहीं बल्कि जागरूक करना चाहते हैं. इसी तरह राजधानी शिमला के रिज मैदान पर बने अंडर ग्राउंड वाटर टैंक पर बढ़ते दबाव के चलते खतरा पैदा हो रहा है. इस बारे में भी सरकार को विचार करने की जरूरत है. क्योंकि इससे भी एक बड़ी आपदा आने की पूरी संभावना है.
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