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Success Story: जानलेवा कैंसर भी नहीं तोड़ सका HAS अधिकारी शिल्पी बेक्टा के हौसले, हर किसी के लिए प्रेरणादायक है कहानी
Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शिल्पी बेक्टा की कहानी हर किसी के लिए प्रेरणादायक है. जीवन में किस तरह उतार-चढ़ाव को पार किया जा सकता है, शिल्पी इसका जीता-जागता उदाहरण हैं.
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HAS Shilpi Beakta Story: हम आए दिन महिला अफसरों की सफलता की कहानियां सुनते हैं. अमूमन सफलता की कहानी पढ़ने पर ऐसा लगता है जैसे उनकी जीवन की मुश्किलें अब खत्म हो गई हैं, लेकिन, वास्तविकता में ऐसा होता नहीं. प्रशासनिक या पुलिस अधिकारी के तौर पर सफलता पाने के बाद भी जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहता है. इस उतार-चढ़ाव से पार पाने के लिए दृढ़ निश्चय की जरूरत होती है. साल 2018 का वक्त था. एचएएस अधिकारी शिल्पी बेक्टा (HAS Shilpi Beakta) हमीरपुर (Hamirpur) में बतौर एसडीएम तैनात थी. जगह-जगह बेहतरीन काम के चर्चे थे, लेकिन तभी शिल्पी को पता चला कि उन्हें कैंसर है.
शुरुआत में कैंसर के बारे में पता चलना दिल-ओ-दिमाग को हिला देने वाला था. शिल्पी बेक्टा ने बाजू के पास असामान्य तरीके से हो रही बॉल नुमा ग्रोथ के चलते अपना चेकअप करवाया था. हमीरपुर में उन्हें टीवी या कैंसर होने की आशंका जताई गई. इसके बाद तुरंत पीजीआई चंडीगढ़ गई. जहां उन्होंने टेस्ट करवाया. इस टेस्ट में पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है. यही नहीं, डॉक्टरों ने यह भी कहा कि कैंसर तेजी से शरीर में फैल रहा है और जल्द से जल्द इलाज शुरू करना होगा.
कीमोथेरेपी से झड़ने लगे थे बाल
हाथ में कैंसर पॉजिटिव होने की रिपोर्ट और सामने ढाई साल का खेलता छोटा बच्चा. एक क्षण के लिए शिल्पी टूटी, लेकिन उन्होंने सोचा कि जिंदगी जीनी है तो हौसला रख ही आगे बढ़ा जा सकता है. इसके बाद पीजीआई चंडीगढ़ में शिल्पी बेक्टा का इलाज शुरू हुआ. कीमोथेरेपी शुरू होते ही बाल झड़ने लगे. शुरुआत में बाल झड़े, तो शिल्पी ने बालों में सिर पर स्कार्फ लगाना शुरू कर दिया. एक दिन जब अस्पताल गई, तो उसका स्कार्फ खुलते ही सारे बाल स्कार्फ में उतर आए. अब शिल्पी के सिर्फ एक बाल था. इसके बाद शिल्पी ने तय किया कि अब यही असलियत है और उन्हें ऐसे ही आगे बढ़ना है. इलाज के दौरान उन्हें सांस लेने और खाना खाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा था.
इसके बाद उन्होंने जरूरी कीमोथेरेपी के अलावा प्राणायाम, योग, ध्यान और पढ़ाई में समय बिताने शुरू किया. धीरे-धीरे कैंसर उनकी उनके शरीर को छोड़ता चला गया और वह स्वस्थ हो गईं. करीब डेढ़ साल तक चले इलाज के बाद शिल्पी बेक्टा जुलाई, 2019 में वापस अपने काम पर लौट आई. मौजूदा वक्त में वे बतौर एसडीएम धर्मशाला अपनी सेवाएं दे रही हैं और कैंसर पीड़ितों को सकारात्मकता के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित भी कर रही हैं.
साल 2012 में HAS अधिकारी बनीं थी शिल्पी बेक्टा
हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शिल्पी बेक्टा की कहानी हर किसी के लिए प्रेरणादायक है. जीवन में किस तरह उतार-चढ़ाव को पार किया जा सकता है, शिल्पी इसका जीता-जागता उदाहरण हैं. शिल्पी ने पीएचडी की पढ़ाई और बैंक की नौकरी छोड़कर प्रशासनिक सेवा की तैयारी शुरू की थी. साल 2012 में उनका चयन बतौर एचएएस अधिकारी हुआ. शिल्पी बेक्टा के पिता एन.सी. बेक्टा आबकारी आयुक्त रहे हैं और मां कांता देवी बैंक मैनेजर.
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