Hatti Community Sirmaur: हिमाचल HC का बड़ा फैसला, हाटी समुदाय को ST दर्जा देने वाले आदेश के अमल पर लगाई रोक
Hatti Community Himachal Pradesh: हिमाचल हाईकोर्ट ने कहा है जब केंद्र सरकार पहले ही इस मुद्दे को तीन बार नकार चुकी थी, तो ऐसा क्या रह गया था कि हाटी समुदाय को एसटी दर्जा देने का कानून बनाना पड़ा.
Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सिरमौर जिले के गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने से जुड़े कानून के अमल पर रोक लगा दी है. इस मामले में अगली सुनवाई अब 18 मार्च को होगी. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम.एस. रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने इस बारे में अंतरिम आदेश पारित किया है. इस खंडपीठ ने राज्य सरकार के जनजातीय विकास विभाग की तरफ से पहली जनवरी को जारी पत्र पर भी रोक लगा दी है.
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम.एस. रामचंद्र राव की अगुवाई वाली खंडपीठ ने अपने अंतरिम आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि जब केंद्र सरकार पहले ही इस मुद्दे को तीन बार नकार चुकी थी, तो इसमें कानूनी तौर पर ऐसा क्या रह गया था कि अब सिरमौर जिले के हाटी समुदाय को एसटी दर्जा देने का कानून बनाना पड़ा. साल 1995, साल 2006 और साल 2017 में गिरिपार या ट्रांसगिरि इलाके के हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए ये मामला केंद्र सरकार के समक्ष भेजा गया था, तब तत्कालीन केंद्र सरकारों ने हर बार इस मामले को तीन प्रमुख कारणों से नकार दिया था.
अनुसूचित जाति वर्ग और गुर्जर समुदाय ने दी है चुनौती
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में अनुसूचित जाति अधिकार संरक्षण समिति और गुर्जर समुदाय से संबंध रखने वाले लोगों ने ट्रांसगिरी क्षेत्र के लोगों को मिले अनुसूचित जनजाति के दर्जे को गलत ठहराते हुए चुनौती दी थी. केंद्र सरकार के इस कानून को चुनौती देने वाले पक्ष का कहना है कि इस क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति का लाभ नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह उसका उसकी शर्तें पूरी नहीं करता है.
हाईकोर्ट ने जनजातीय दर्जे को पाया गलत
जब देश में तत्कालीन केंद्र सरकारों ने तीन बार यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था, तब इस क्षेत्र की जनसंख्या में एकरूपता न होना, हाटी शब्द का सभी निवासियों को कवर न करना और हाटी शब्द किसी जातीय समूह को इंगित या निर्दिष्ट न करने को लेकर स्वीकार नहीं किया गया था. ऐसे में हाईकोर्ट ने कानूनी तौर पर इस इलाके के लोगों को जनजातीय दर्जा देना प्रथम दृष्टया सही नहीं पाया.
याचिका में क्या कहा गया है?
हाईकोर्ट में जो याचिका दर्ज की गई है, उसमें इसे कानूनी रूप से गलत बताया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि किसी भी भौगोलिक क्षेत्र को किसी समुदाय के नाम पर तब तक अनुसूचित जनजाति घोषित नहीं नहीं किया जा सकता, जब तक वह अनुसूचित जनजाति के रूप में सजातीय होने का मानदंड पूरा न करते हो. गौरतलब है कि अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को पहले से ही मौजूदा कानून के तहत आरक्षण का लाभ मिल रहा है.
मामले में 18 मार्च को होगी अगली सुनवाई
इनमें अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. एससी और एसटी अधिनियम में संशोधन के साथ ही हिमाचल प्रदेश में सिरमौर के ट्रांसगिरी क्षेत्र के सभी लोगों को आरक्षण मिलना शुरू हो जाता. इस पर फिलहाल हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. इस मामले में अगले सुनवाई 18 मार्च को होगी. बता दें कि केंद्र सरकार ने 4 अगस्त, 2023 में इस संबंध में बिल पारित किया, जबकि 1 जनवरी 2024 को हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी संबंध में अधिसूचना जारी कर दी थी. अब तीन दिन में ही हाईकोर्ट ने इसे स्टे कर दिया है.
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