Shimla Famous Places: यूं तो इतिहास किताबों में ही पढ़ा जाता है, लेकिन शिमला (Shimla) में एक ऐसी जगह है जहां इतिहास खुशबू में भी समाया हुआ है. शिमला के लोअर बाजार में करीब 100 साल पुरानी एक ऐसी दुकान है, जहां इतिहास को खुशबू में भी महसूस किया जा सकता है. 


दरअसल, शिमला में एक मशहूर अचार (Pickles) की दुकान है, जिसे ठाकुर भ्राता के नाम से जाना जाता है. इस दुकान की शुरुआत साल 1925 में 3 मई को हुई थी. तब से लेकर अब तक यह दुकान यहां अपने स्वाद का जादू बिखेर रही है. अचार के साथ यहां लोगों को आयुर्वेदिक दवा भी मिलती है. दुकान की पहचान 100वें साल के प्रवेश करने के बाद भी शुद्धता के लिए है.


दर्जनों किस्म के मिलते हैं अचार


ठाकुर भ्राता दुकान में 25 से 30 अलग-अलग किस्म के अचार और मुरब्बा मिलता है. आजादी से पहले इस दुकान का नाम ठाकुर ब्रदर्स था. देश को जब आजादी मिली, तो ठाकुर ब्रदर्स का नाम बदलकर ठाकुर भ्राता कर दिया गया. साल 1925 में जब दुकान की शुरुआत हुई थी, तब ठाकुर चंद ने जब में 350 रुपए के साथ इस दुकान की शुरुआत की थी. दुकान शुरू करने के लिए उन्हें 500 रुपए उधार भी लेना पड़ा था. साल 1925 में यह एक भारी-भरकम रकम थी. जब ठाकुर चंद का काम चल पड़ा, तो दो साल बाद उन्होंने अपने छोटे भाई पृथ्वी चंद को भी इस काम में जोड़ लिया. अब 86 साल की उम्र पूरी कर चुके ठाकुर चंद के बेटे विजय कुमार अपने भाई के साथ इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं.


ठाकुर भ्राता दुकान में अचार 150 साल से भी ज्यादा पुराने बैटरी बॉक्स में रखे जाते हैं. इन बैटरी बॉक्स में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान इंग्लैंड से बैटरी आया करती थी. साल 1912 से पहले शिमला के यूएस क्लब में कैप्टन रैंक के अधिकारी रहा करते थे, उनके आधिकारिक आवास पर रोशनी के लिए इन बैटरी का इस्तेमाल होता था. उस वक्त लिक्विड बैटरी इस्तेमाल में लाई जाती थी. इसी बॉक्स में बैटरी इंग्लैंड से शिमला तक पहुंचती थी. जब शिमला में चाबा पावर प्रोजेक्ट से बिजली आ गई, तब यह बैटरी बॉक्स कुछ अप्रासंगिक हो गए और कबाड़ में चले गए. उस वक्त ठाकुर चंद ने इन बैटरी बॉक्स को कबाड़ की दुकान से एक रुपए में खरीदा था. ठाकुर चंद ने  इस तरह के 25 से ज्यादा बॉक्स खरीदे थे, जिसमें आज भी यहां अचार  रखा जाता है.


हिसाब-किताब के लिए होता है तख्ती का इस्तेमाल 


दुकान में रोजमर्रा का हिसाब-किताब रखने के लिए एक तख्ती का इस्तेमाल होता है. यह तख्ती साल 1925 के बाद से लगातार इस्तेमाल में लाई जा रही है. एक महीने बाद जब तक तख्ती पूरी भर जाती है, तब इसे साफ कर इस पर दोबारा मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाया जाता है. दुकान में हिसाब-किताब के लिए कोई डिजिटल माध्यम नहीं, बल्कि सालों पुरानी तख्ती पर लिखने की तकनीकी इस्तेमाल में लाई जा रही है. तख्ती का इस्तेमाल करते हुए यहां लाखों रुपए का कागज बचाया जा चुका है. हालांकि, बहीखाता रखने के लिए यहां लेजर बुक ही इस्तेमाल में लाई जाती है. यहां तख्ती का इस्तेमाल भी लोगों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बनी नहीं रहती है. 


Lok Sabha Elections: सुखविंदर सिंह सुक्खू ने जनता से मांगी माफी, जनसभा में छिड़ गई बहस