Shimla News: हिमाचल प्रदेश को यूं ही देवभूमि कहकर नहीं पुकारा जाता. यहां की संस्कृति देव परंपराओं के बिना अधूरी है. हिमाचल प्रदेश के जिला शिमला के रोहड़ू में शुक्रवार को मंगल अवसर पर देवता शिकड़ू के नवनिर्मित मंदिर की प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न हुआ. दो साल के इंतजार के बाद देवता शिकड़ू अपनी नई बनी देउठी (देवस्थान) में विराजमान होंगे. हिमाचल की पारंपरिक काठकुनी तकनीक से तैयार हुआ यह मंदिर आधुनिक तकनीक से बना हुआ है.


भारत की विविधता इसकी सनातन धर्म परंपरा में भी नजर आती है. पहाड़ों पर धार्मिक कार्यक्रमों में स्थानीय विधि विधानों का पुट सहज ही देखा जा सकता है. हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाकों में भी इसे महसूस किया जा सकता है. रोहड़ू के स्थानीय निवासी मोहित शर्मा बताते हैं मंदिर प्रतिष्ठा कार्यक्रम की शुरुआत बुधवार 5 दिसंबर से हुई.


पहले दिन 'संघेड़ा' यानी मेहमान देवताओं का आगमन हुआ और 'बड़छणी' का दैविक खेल हुआ. शुक्रवार को शुभ मुहूर्त पर 'शिखाफेर' के साथ मंदिर की प्रतिष्ठा संपन्न हुई. शनिवार को उच्छड़-पाच्छड़ होगा, जिसमें सभी मेहमान देवता अपने स्थान के लिए प्रस्थान करेंगे. उन्होंने बताया कि इस मंदिर प्रतिष्ठा कार्यक्रम में रतनाड़ी के मोरिश देवता, चिउनी से परशुराम के साथ किलबालू शामिल हुए.


तकनीक से लैस है यह पारंपरिक शैली का मंदिर 
काठकुनी शैली में बना यह मंदिर करीब 58 फीट ऊंचा है. मंदिर में चार मंजिल हैं, जिनका निर्माण रोहड़ू के साथ लगते पारसा गांव के बढ़ई कारीगरों द्वारा किया गया. मंदिर में सीसीटीवी के साथ द्वारों पर सेंसर भी लगाए गए हैं. यह दरवाजे सेंसर से ओपन किए जा सकते हैं, जिनका कंट्रोल मंदिर कमेटी के चुनिंदा लोगों के पास होगा. अगर मंदिर के दरवाजों को कोई जबरदस्ती खोलने की कोशिश करेगा, तो हूटर बज जाएंगे.


रोहड़ू के देवता शिकड़ू की क्या है मान्यता?
बताया जाता है कि देवता शिकड़ू चंद्रनहान से रोहड़ू आए थे. इस बारे में ऐसी ही किवदंती प्रचलित है. रोहड़ू के साथ बहती शिकड़ी खड्ड में देवता प्रकट हुए थे. आज रोहड़ू शहर समेत कुल पांच बासों में देवता शिकड़ू को इष्ट के रूप में माना जाता है. रोहडू, थमटाड़ी, दीशालनी, गंगटोली और मांदली बासे में देवता शिकड़ू की बड़ी मान्यता है.


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